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ADDA IN-DEPTH मोदी-शाह के एक फैसले पर यूपी-उत्तराखंड के दो दिग्गजों की क़िस्मत दांव पर: केशव प्रसाद मौर्य पर जो फैसला होगा धामी की सत्ता में वापसी या विदाई भी उसी से तय हो जाएगी!

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देहरादून/ दिल्ली: उत्तराखंड के कार्यवाहक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लगातार दिल्ली में कैंप कर रहे हैं लेकिन अभी भी ‘अगला मुख्यमंत्री कौन होगा?’ इस पर फैसला नहीं हो पाया है। 10 मार्च को नतीजे आने के बाद अगर हफ्तेभर में सीएम चेहरे पर मुहर नहीं लग पाई है तो इसकी बड़ी वजह है, ‘सेना जीत गई और सेनापति हार गया’ वाली स्थिति खड़ी हो जाना। धामी की अगुआई में भाजपा को बंपर जीत हासिल हो गई लेकिन खुद सीएम रहते वे खटीमा में हार गए। खटीमा की यह हार धामी के लिए सत्ता में वापसी की राह की सबसे बड़ी बाधा बन गई है।

भाजपा आलाकमान चाहकर भी हारे को मुख्यमंत्री बनाकर नई परिपाटी शुरू नहीं करना चाहता है क्योंकि इससे न 47 विधायकों में अचछा मैसेज जाएगा और न ही धामी विरोधी इसे आसानी से पचा पाएंगे। ऐसे में सवाल है कि क्या पुष्कर सिंह धामी के लिए सीएम की कुर्सी तक पहुँचने के सारे रास्ते बंद हो चुके हैं? शायद इसका जवाब अभी भी पूरी तरह से ना नहीं है।

दरअसल जो उत्तराखंड में हुआ करीब करीब वैसा ही उत्तरप्रदेश में भी होता नजर आया। यूपी में डिप्टी सीएम होकर भी केशव प्रसाद मौर्य अपना चुनाव हार गए। मौर्य 2014 से लेकर 2022 तक हुए चार चुनावों में भाजपा का सबसे बड़ा ओबीसी चेहरा रहा है और इसी आधार पर भाजपा का एक धडा सरकार में उनकी वापसी की वकालत कर रहा है। हालाँकि इसकी काट में कुर्मी समाज से आने वाले भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को डिप्टी सीएम बनाने का दांव भी काउंटर में खेला जा रहा है लेकिन मौर्य के भविष्य को लेकर अभी भी सस्पेंस बरक़रार है।

जाहिर है अगर यूपी में केशव प्रसाद मौर्य को विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी विधान परिषद के रास्ते सरकार में लाया जाता है तो यह उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी के लिए भी उम्मीद की नई किरण साबित हो सकता है। धामी भी किसी विधायक से सीट खाली कराकर उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुँचने का दाव ठोक रहे हैं और आधा दर्जन विधायक अपनी सीट छोड़ने का ऑफर भी दे चुके हैं। लेकिन न तो इसे जीतकर आए 47 विधायकों में अच्छे संदेश के तौर पर देखा जाएगा और न ही धामी विरोधी धड़ा इसे पचा पाएगाा। सीएम पर फैसले से पहले ही विरोधी कैंप दिल्ली में डेरा डाले है और पुष्कर सिंह धामी की जड़ों में जमकर मट्ठा डालने का काम कर रहा है।

छोंक इस तर्क के साथ मारा जा रहा है कि दरअसल मोदी लहर के बावजूद न केवल धामी हार गये बल्कि आठ माह की सत्ता में उनकी पूरी मित्रमंडली जो हमेशा उनके अग़ल-बगल मँडराई रहती थी वह भी निपट गई है।

साफ है दो राज्यों के दिग्गजों मौर्य-धामी का सियासी भविष्य अब एक फैसले से टिका है! यानी एक हफ्ते बाद भी सीएम चेहरे पर पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त!

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