देहरादून: कहते हैं दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है! मसला अगर सियासी हो और नेता हरीश रावत जैसे हों तो हर कदम चार बार सोच-सोचकर ही उठेगा। बाइस बैटल की रणभेरी बजी हुई है और सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी कांग्रेस दोनों ही प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी कर चुकी हैं। भाजपा ने सीएम पुष्कर सिंह धामी से लेकर प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक सहित तमाम नेताओं को चुनाव मैदान में टिकट देकर झोंक दिया है। कांग्रेस ने भी प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह को मैदान में उतार दिया है लेकिन पार्टी के चुनाव अभियान को लीड कर रहे पूर्व सीएम हरीश रावत का नाम कांग्रेस की पहली लिस्ट में नहीं दिखा।
चर्चाएं हैं कि क्या हरीश रावत चुनाव लड़ेंगे, तो कहां से लड़ेंगे और अगर नहीं लड़ेंगे तो इसका औपचारिक ऐलान कब करेंगे! वैसे हरदा रामनगर से चुनाव लड़ना चाहते हैं ऐसी चर्चा भी खूब हो रही है और रामनगर से उनके धुर विरोधी रणजीत रावत भी चुनावी ताल ठोक रहे यह भी जगज़ाहिर है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर जिस नेता के कंधों पर कैंपेन का सारा दारोमदार है उनके ही चुनाव को लेकर रायता फैला पड़ा है तो फिर पार्टी की चुनावी तैयारियों की इसे सबसे बड़ी कमजोरी माना जाना चाहिए।
कांग्रेस के जानकार सूत्रों की मानें तो रामनगर में हरदा चाहते हैं कि रणजीत रावत न केवल पीछे हटें बल्कि ढोल-नगाड़े बजाकर समर्थन करते भी दिखें। हरदा चाहते हैं कि रणजीत रामनगर हरदा के लिए छोड़कर हर हाल में सल्ट से चुनाव लड़ें। दरअसल हरदा बखूबी जानते हैं कि अगर रणजीत नाराज होकर घर बैठ गए तो इसका ख़ामियाज़ा रामनगर में उनको भुगतना पड़ सकता है और इस अंदरूनी कलह कुरुक्षेत्र का फायदा उठाने में भाजपा देरी नहीं करेगी। वैसे भी सीएम रहते भाजपा और संघ की चौकस घेराबंदी की क़ीमत हरदा हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा में भुगत चुके हैं। लेकिन रावत के सामने दिक्कत यह है कि रणजीत रामनगर से सल्ट जाने को तैयार नहीं।
दरअसल, रावत को जैसे रणजीत से रामनगर में ‘खेल’ करा देने का डर है वही डर रणजीत को सल्ट में खुद को लेकर भी है। हालाँकि असल कहानी तो यह है कि हरदा खुद चुनाव लड़ने की बजाय एक परिवार एक टिकट फ़ॉर्मूले के तहत अपने कोटे से अपनी बेटी अनुपमा रावत को लड़वाने के इच्छुक थे। लेकिन ऐसी जानकारी है कि कांग्रेस की टॉप लीडरशिप ने रावत को रण में भाजपा से दो-दो हाथ करने को कह दिया है। इसके बाद से हरदा रामनगर पर फोकस कर रहे हैं। रामनगर कांग्रेस के लिहाज से इस बार मुफ़ीद सीट बनी हुई है जहां हरदा को ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी और वे राज्यभर में कैपेन का मोर्चा आसानी से संभाले रख सकते हैं।
दरअसल, हरदा इस बार हरिद्वार या ऊधमसिंहनगर की ऐसा किसी सीट से चुनाव नहीं लड़ना चाहते जहां वोटर्स का समीकरण देखकर उनकी विरोधी भाजपा 2017 की तर्ज पर ध्रुवीकरण का दांव खेल दे। 2017 के संग्राम में सीएम रहते हरदा पहाड़ छोड़कर मैदान और तराई में इसीलिए कूदे थे कि हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर, दोनों जिलोें की 20 सीटों पर कांग्रेस को इक्कीस साबित करा ले जाएंगे। लेकिन हुआ इसके ठीक उलट। हरदा दोनों जगह से हारे और कांग्रेस 20 सीटों में से महज 4 ही जीत पाई।
कांग्रेस के जानकार सूत्रों ने कहा कि रामनगर का पेंच सुलझाने के लिए हरदा-रणजीत की बैठक भी कराई जा चुकी है और कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल और उत्तराखंड की स्क्रीनिंग कमेटी चीफ अविनाश पांडेय के साथ भी रणजीत रावत की मीटिंग हुई है। सूत्रों के अनुसार रणजीत रावत ने हरदा को फोन पर कह दिया है कि वे रामनगर लड़ लें लेकिन वे सल्ट नहीं जाएंगे। जाहिर है रणजीत का सल्ट गए बिना रामनगर छोड़ देने का सियासी अर्थ हरदा बखूबी समझते हैं। आखिर दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँककर पीता है और हरदा इस बार कहीं ज्यादा चौकन्ना रहना चाहते हैं। ऐसे में सवाल है कि क्या वे रामनगर का मोह त्यागकर कोई दूसरी सीट चुनेंगे या फिर पार्टी की टॉप लीडरशिप रणजीत रावत को रामनगर के बदले कुछ ऐसा ऑफ़र करेगी कि वे सल्ट के संग्राम में निश्चिंत होकर कूद पड़ेंगे?
जाहिर है कांग्रेस नेतृत्व के सामने पेंडिंग 17 सीटों पर समीकरण साधने का सारा श्रम हरदा की सीट तय करने पर ही लगना है। उसके बाद 16 सीटों पर फैसला करने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा लेकिन क्या यह इतना आसान होगा?