
देहरादून: बाइस बैटल जीतने के बड़े-बड़े दावों के साथ उतरी कांग्रेस में अब हार के बाद ‘आपसी हल्लाबोल’ शुरू हो गया है। शुरूआत नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ने हार की वजह गिनाते ‘पांच साल फसल कोई बोये और काटने कोई और पहुंच जाए’ अंदाज में हरदा के रामनगर से चुनावी ताल ठोकने और मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसे वजहों को ज़िम्मेदार ठहराया, तो अब पूर्व सीएम का पलटवार आया है। हरीश रावत ने पहले रामनगर और फिर लालकुआं से चुनाव लड़ने और मुस्लिम यूनिवर्सिटी विवाद मामले पर अपना पक्ष रखा है।
अब रावत ने सवाल खड़ा किया है कि उनकी इच्छा 2017 में भी रामनगर से चुनाव लड़ने की थी और 2022 में भी लेकिन पहले किच्छा आना पड़ा और फिर लालकुआं। हरीश रावत ने इसके लिए सीधे सीधे रणजीत रावत को ज़िम्मेदार ठहराया है। रावत ने कहा कि रामनगर से टिकट होने के बाद वे चुनाव कार्यालय तक कर नामांकन की तिथि का ऐलान कर चुके थे लेकिन बीच रास्ते सामूहिक फैसले के तहत लालकुआं भेज दिया गया। रावत ने कहा कि वो जानते थे कि लालकुआं से लड़ना आसन्न हार को गले लगाना था लेकिन उन्होंने पार्टी के सामूहिक फैसले को स्वीकार किया।
रावत ने पूछा है कि मुस्लिम यूनिवर्सिटी की तथाकथित मांग करने वाले व्यक्ति को पदाधिकारी बनाने का फैसला किया था? इस फैसले की जांच होनी चाहिए। रावत ने कहा कि उस व्यक्ति से उनका दूर दूर तक वास्ता नहीं रहा है और उसे उपकृत करने वालों को सभी जानते हैं। रावत ने कहा कि उसे हरिद्वार ग्रामीण सीट का प्रभारी बनाने में किसका हाथ रहा यह भी जांच का विषय है।
कुल मिलाकर करारी हार के बाद अब कांग्रेस में आने वाले दिनों में कलह कुरुक्षेत्र और तेज होगा। आगाज प्रीतम-हरदा में वार-पलटवार के साथ हो गया है। निशाने पर प्रदेश प्रभारी देवेन्द्र यादव भी हैं तो संगठन के दिग्गजों की खेमेबाज़ी से आहत कांग्रेस कार्यकर्ता लगातार दूसरी हार से निराश-हताश होकर नाउम्मीदी की तरफ बढ़ रहा है।
बहरहाल यहाँ पढ़िए हरदा ने क्या कहा हूबहू
मैं सभी #उम्मीदवारों की हार का उत्तरदायित्व अपने सर पर ले चुका हूं और सभी को मुझ पर गुस्सा निकालने, खरी खोटी सुनाने का हक है। श्री Pritam Singh जी ने एक बहुत सटीक बात कही कि आप जब तक किसी क्षेत्र में 5 साल काम नहीं करेंगे तो आपको वहां चुनाव लड़ने नहीं पहुंचना चाहिए, फसल कोई बोये काटने कोई और पहुंच जाए, यह उचित नहीं है। मैं बार-बार यह कह रहा था कि मैं सभी क्षेत्रों में चुनाव प्रचार करूंगा। स्क्रीनिंग कमेटी की मीटिंग में राय दी गई कि मुझे चुनाव लड़ना चाहिए अन्यथा गलत संदेश जाएगा। इस सुझाव के बाद मैंने रामनगर से चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की। रामनगर मेरे लिए नया क्षेत्र नहीं था, मैं 2017 में वहीं से चुनाव लड़ना चाहता था। मेरे तत्कालिक सलाहकार द्वारा यह कहे जाने पर कि वो केवल रामनगर से चुनाव लड़ेंगे, सल्ट से चुनाव नहीं लड़ना चाहते, तो मैंने रामनगर के बजाय किच्छा से चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस बार भी पार्टी ने जब रामनगर से मुझे चुनाव लड़ाने का फैसला किया तो रामनगर से उम्मीदवारी कर रहे व्यक्ति को सल्ट से उम्मीदवार घोषित किया और सल्ट उनका स्वाभाविक क्षेत्र था और पार्टी की सरकारों ने वहां ढेर सारे विकास के कार्य करवाए थे।
मुझे रामनगर से चुनाव लड़ाने का फैसला भी पार्टी का था और मुझे रामनगर के बजाय लालकुआं विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाने का फैसला भी पार्टी का ही था। मैं रामनगर से ही चुनाव लड़ना चाहता था, मैंने रामनगर में कार्यालय चयनित कर लिया था और मुहूर्त निकाल कर नामांकन का समय व तिथि घोषित कर दी थी और मैं रामनगर को प्रस्थान कर चुका था। मुझे सूचना मिली कि मैं लालकुआं से चुनाव लड़ूं, यह भी पार्टी का सामूहिक फैसला था। मैंने न चाहते हुए भी फैसले को स्वीकार किया और मैं रामनगर के बजाय लालकुआं पहुंच गया। मुझे यह भी बताया गया कि मुझे लालकुआं से चुनाव लड़ाने में सभी लोग सहमत हैं। लालकुआं पहुंचने पर मुझे लगा कि स्थिति ऐसी नहीं है। मैंने अपने लोगों से परामर्श कर दूसरे दिन अर्थात 27 तारीख को नामांकन न करने का फैसला किया और पार्टी प्रभारी महोदय को इसकी सूचना दी। उन्होंने कहा कि यदि मैं ऐसा करता हूं तो उससे पार्टी की स्थिति बहुत खराब हो जाएगी, मैं ऐसा न करूं। 27 तारीख को न चाहते हुए भी मैंने नामांकन किया और मैंने अपने आपसे कहा कि हरीश रावत तुम्हें पार्टी हित में यदि आसन्न हार को गले लगाना है तो तुम उससे भाग नहीं सकते हो।
मैं केवल इतना भर कहना चाहता हूं कि श्री प्रीतम सिंह जी की बात से सहमत होते हुए भी मुझे किन परिस्थितियों में रामनगर और फिर लालकुआं से चुनाव लड़ना पड़ा। यदि उस पर सार्वजनिक बहस के बजाय पार्टी के अंदर विचार मंथन कर लिया जाए तो मुझे अच्छा लगेगा।
मुस्लिम यूनिवर्सिटी की तथाकथित मांग करने वाले व्यक्ति को पदाधिकारी बनाने का फैसला किसका था! इसकी जांच होनी चाहिए। न उस व्यक्ति के नामांकन से मेरा दूर-दूर तक कोई वास्ता था, क्योंकि वह व्यक्ति कभी भी राजनीतिक रूप से मेरे नजदीक नहीं रहा था। उस व्यक्ति को राजनीतिक रूप से उपकृत करने वालों को भी सब लोग जानते हैं। उसे किसने सचिव बनाया, फिर महासचिव बनाया और उम्मीदवार चयन प्रक्रिया में उसे किसका समर्थन हासिल था, यह तथ्य सबको ज्ञात है, उस व्यक्ति के विवादास्पद मूर्खतापूर्ण बयान के बाद मचे हल्ले-गुल्ले के दौरान उसे हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा का प्रभारी बनाने में किसका हाथ रहा है, यह अपने आप में जांच का विषय है!