देहरादून: बाइस बैटल जीतकर भी भाजपा संकट में फंस गई है क्योंकि ‘सेना जीत गई पर सेनापति हार गए’! ‘बारी बारी सत्ता में भागीदारी’ का मिथक तोड़ते हुए भाजपा ने 70 में से 47 सीटों पर फतह हासिल कर ली लेकिन जहां जीत की सबसे ज्यादा दरकार थी उसी खटीमा विधानसभा सीट पर पार्टी प्रत्याशी और सूबे के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी करारी शिकस्त खा गए। धामी के हारने के बाद हालात पेचीदा हो गए हैं और पार्टी नेतृत्व को नए चेहरे के चुनाव को लेकर कठिन परीक्षा से गुज़रना पड़ रहा है।
एक तरफ जीती हुई सेना के हारे हुए नायक पुष्कर सिंह धामी खड़े हैं तो दूसरी तरफ चीफ मिनिस्टर बनने की चाहत रखने वाले दावेदारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। जीतकर आए विधायकों में सतपाल महाराज, धन सिंह रावत, ऋतु खंडूरी से लेकर मदन कौशिक और सुबोध उनियाल जैसे आधा दर्जन नाम चर्चाओं में दौड़ रहे तो सांसदों में अनिल बलूनी से लेकर केन्द्रीय राज्यमंत्री अजय भट्ट और पूर्व केन्द्रीय मंत्री निशंक के नाम उछाले जा रहे हैं। लेकिन इन सबके बावजूद अपनी खास रणनीति के तहत पुष्कर सिंह धामी दोबारा ताजपोशी को लेकर बिसात पर अपनी चालें चलते जा रहे हैं।
एक भाजपाई दिग्गज ने ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ आपके THE NEWS ADDA पर दावा किया कि धामी के समर्थन में सीट छोड़ने को एक के बाद एक विधायकों का उमड़ना एक खास रणनीति के तहत हो रहा है। दावा किया कि चुनाव प्रभारी प्रह्लाद जोशी से लेकर सूबे में विधानसभा चुनाव के तमाम केन्द्रीय रणनीतिकार पुष्कर सिंह धामी के समर्थन में उतर चुके हैं और जोशी के इशारे पर विधायकों को धामी के लिए सीट छोड़ने का मैसेज देने को कहा गया है।
सबसे पहले चंपावत विधायक कैलाश गहतोड़ी ने कार्यवाहक मुख्यमंत्री धामी के लिए सीट छोड़ने की इच्छा जताई, तो फिर जागेश्वर से जीते मोहन सिंह मेहरा ने भी सीट ऑफर कर दी। अब रूड़की विधायक प्रदीप बत्रा ने भी बहती गंगा में हाथ धोते हुए धामी को रूड़की से चुनाव लड़ने का ऑफर कर दिया है। निर्दलीय विधायक उमेश शर्मा भी धामी के लिए सीट छोड़ने को तैयार हैं। अभी होली तक शपथग्रहण नहीं हो रहा है लिहाजा अभी आने वाले दिनों में कई और विधायक पु्ष्कर सिंह धामी के समर्थन में अपनी सीट ऑफर करने के अभियान में भागीदारी करते नजर आ सकते हैं।
यह अलग बात है कि भाजपा ने आज तक अपने हारे हुए मुख्यमंत्री चेहरे की किसी विधायक से सीट खाली कराकर दोबारा ताजपोशी नहीं की है। लेकिन बदली राजनीति में कहीं न कहीं पुष्कर सिंह धामी को उम्मीद है कि उनको अपवाद स्वरूप मौका दिया जा सकता है क्योंकि पार्टी ने उनके नाम पर ही चुनाव जीता है। फिर भले वे खुद अपनी सीट खटीमा से बुरी तरह हार गए हों और उनके सबसे करीबी मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद भी चुनावी जंग में ढेर हो गए हों। धामी कैंप इसे पार्टी के भीतर के विध्नसंतोषियों की कारस्तानी करार दे रहा जिनके भीतरघात ने पूरी टीम धामी (जिसमें खुद सीएम के अलावा मंत्री स्वामी और विधायक संजय गुप्ता और राजेश शुक्ला आदि उनके करीबी शामिल हैं) को हरा दिया।
जबकि भाजपा के भीतर ही एक धड़ा यह भी आरोप लगा रहा कि टीम धामी ने चुनाव में उनकी सीटों पर भी अंदर ही अंदर खूब गदर काटा, यह अलग बात है कि वे भीतरघात के पार जीत कर निकल गए। सवाल है कि क्या भाजपा नेतृत्व भीतरघात के तमाम ऐसे आरोपों का संज्ञान लेगा भी या फिर नहीं? सवाल यह भी कि क्या केन्द्रीय मंत्री और चुनाव प्रभारी प्रह्लाद जोशी पुष्कर सिंह धामी के लिए बनाई अपनी रणनीति में कामयाब हो पाएंगे? क्या धामी के लिए एक के बाद एक विधायकों के सीट छोड़ने के अभियान का असर पार्टी आलाकमान पर सकारात्मक पड़ेगा या इसे दबाव की रणनीति का हिस्सा मानते हुए नए चेहरे की ताजपोशी कराकर टीम धामी को झटका दिया जाएगा?
जाहिर है अभी कुछ भी कह पाना कठिन है क्योंकि मोदी-शाह अक्सर अपने फैसलों से चौंकाते आए हैं और इस बार भी कुछ न कुछ सरप्राइज़ तत्व सीएम चेहरे के ऐलान में दिख सकता है। लेकिन इस फैसले से लॉटरी धामी की लगेगी या विरोधियों की, यह देखना दिलचस्प होगा।