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सीएम रेस में तेज दौड़ते धनदा कहीं चौथी बार भी इस कारण चूक न जाएं!

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देहरादून: नतीजों के तीन दिन बाद भी भाजपा नेतृत्व न मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर स्थिति साफ नहीं की तो दावेदारों की संख्या बढ़ती जा रही है और दिल्ली दौड़ भी तेज हो गई है। साथ ही भाजपा कॉरिडोर्स में दावेदारों के लेकर तमाम तरह ही चर्चाएं भी चल रही हैं। डॉ धन सिंह रावत का नाम भी मुख्यमंत्री की रेस में चलाया जा रहा है।

पौड़ी जिले की श्रीनगर सीट पर कांग्रेस को प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल को पोस्टल बैलेट की मदद से बमुश्किल 587 वोटों से हराने में सफल रहे धनदा मुख्यमंत्री की रेस में आगे बताए जा रहे हैं। यह अलग बात है कि भाजपा कॉरिडोर्स में उनके पिछले मंत्रित्वकाल की चर्चा भी खूब हो रही है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि धनदा के मंत्री के तौर पर पांच साल के कामकाज के बाद संघ बहुत ज्यादा खुश होकर उनका समर्थन नहीं करने वाला है। यह अलग बात है कि केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान जैसे कई केन्द्रीय नेता धन सिंह रावत के लिए फ़ील्डिंग सजा रहे हैं।

हालांकि धन सिंह रावत कार्यवाहक सीएम पुष्कर सिंह धामी के रास्ते जाते-जाते बचे हैं। अगर प्रचार के आखिरी दौर में प्रधानमंत्री मोदी की रैली श्रीनगर में ना हुई होती तो धनदा को 587 मतों से जीत भी नसीब न हुई होती। यह अलग बात है कि श्रीनगर में धनदा का ग्राफ़ इतना गिर चुका था कि मोदी मैजिक के बावजूद बमुश्किल चुनाव जीत पाए।

ग़नीमत रही कि चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में कोरोना नियमों में ढील मिल गई जिससे श्रीनगर में पार्टी रणनीतिकारों ने प्रधानमंत्री मोदी की रैली रख दी। आलम यह रहा कि जब नतीजों में साफ तौर पर मोदी मैजिक दिख रहा तब भी प्रधानमंत्री की रैली के बावजूद धनदा को चुनाव जीतने में पसीने छूट गए और जैसे जैसे कामयाबी मिल गई। धन सिंह की जीत का आंकड़ा यह भी इशारा करता है कि मंत्री रहते अपने विधानसभा क्षेत्र में धनदा की अलोकप्रियता किस चरम पर रही होगी, जो मोदी रैली के बावजूद चंद वोटों से ही जीत दिला पाई जबकि अग़ल बगल की सीटों पर मोदी लहर आंधी बनकर चली।

सवाल है कि क्या CM धामी के चुनाव हार जाने के बाद अब धन सिंह रावत मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे मुफीद चेहरे साबित होंगे? या फिर उच्च स्तर पर संघ का स्पोर्ट न मिलना और पिछली सरकार में मंत्री रहते नियुक्तियों और दूसरी वजहों से चर्चा में रहना उनके लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है!

वजह यह भी है कि क्या सीएम चेहरा तय करते प्रधानमंत्री मोदी और शाह डिलिवरी के पॉइंट ऑफ व्यू से भी सोचेंगे ताकि पिछली बार की तरह इस बार भी तीन-तीन बार सीएम चेंज करने की नौबत न आए।

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