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मोदी के बाद कौन! क्या अभी से योगी से मोदी और उनके सियासी साया समझे जाते शाह होने लगे इन्सिक्योर? पर योगी को बदलना इतना आसान न होगा

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पिछले तीन दिनों से दिल्ली से लेकर लखनऊ तक संघ और बीजेपी में ज़बरदस्त अंदरूनी द्वंद्व है। बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने लखनऊ में कैंप कर सीएम योगी, दोनों डिप्टी सीएम, मंत्रियों, चुनिंदा विधायकों-सांसदों-पदाधिकारियों और संघ के प्रदेश नेताओं से वन टू वन बातचीत कर बाइस बैटल को लेकर सवाल-जवाब किया है। मीडिया रिपोर्ट्स और सियासी गलियारे में चर्चा यही है कि मिशन 2022 फतह करने के लिए यूपी की बीजेपी सरकार और संगठन में बड़ी सर्जरी की तैयारी हो रही है। लेकिन अंदरूनी तौर पर एक लाइन ये भी है कि योगी का बढ़ता कद प्रधानमंत्री मोदी और उनके सियासी साया शाह के लिए भविष्य का ख़तरा साबित हो सकता है। ये भी कि योगी की हिन्दुत्व की छवि जिस तेजी के साथ गोरखपुर-पूर्वांचल और यूपी से निकलकर चुनावी दौर में केरल तक में भीड़ जुटाने लगी है, ये बीजेपी की अंदरुनी राजनीति में नंबर दो कौन के सवाल पर अमित शाह को पसीना पसीना कर दे रही है।

ये सौ टका सही है कि आज के दौर में बीजेपी के भीतर मोदी के मुकाबले दूर-दूर तक कोई दूसरा चेहरा नहीं दिखता है, लेकिन मोदी की सियासी ढलान के मुहाने पर अगर कोई बीजेपी काडर से लेकर संघ को विकल्प खड़ा नजर आता है तो वह है यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। आज मोदी प्रधानमंत्री हैं जेपी नड्डा पार्टी अध्यक्ष लेकिन गृहमंत्री अमित शाह के सियासी रुतबे पर इंच भर का फर्क नहीं है क्योंकि वे प्रधानमंत्री के सबसे विश्वस्त ठहरे। प्रधानमंत्री शुरू से आलोचक रहे हैं लुटियंस दिल्ली और दिल्ली दरबार कल्चर के और खुद को अकेला भी मानते हैं इस लिहाजा से। लेकिन इसी लुटियंस दिल्ली में शाह उनके हैं और वे शाह के साहेब। प्रधानमंत्री के रूप में मोदी का गुज़रा सातवाँ साल सबसे मुश्किलों भरा गुज़रा है। कोरोना महामारी को क़ाबू करने में फेल्योर को लेकर प्रधानमंत्री की ग्लोबल इमेज पर दुनियाभर के बड़े अखबारों में छपी खबरों से बट्टा लगा ही, घरेलू मोर्चे पर भी राहुल गांधी से लेकर विपक्ष ने जीना मुहाल करके रखा है। ऊपर से पश्चिम बंगाल में जीत के सपने का टूट जाना मोदी के करिश्माई आभामंडल पर गहरी खरोंच मार गया है।
अब यूपी का विधानसभा चुनाव चंद महीनों की दूरी पर है और भले 2017 और 2019 में योगी कहीं नहीं थे जीत को मोदी सूनामी ही कहा जाना उचित होगा। लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद जिस अंदाज में योगी ने साढ़े चार साल सरकार चलाई है उसके बाद 2022 में बीजेपी की जीत हो या हार, श्रेय योगी को दिया जाएगा। मोदी-शाह बखूबी जानते भी हैं कि यूपी की राजनीति छोड़िए योगी की उग्र हिन्दुत्व वाली छवि बाइस बैटल जीतने के बाद लखनऊ तक रुकी रह जाएगी ये सोचना आडवाणी सरीखी नासमझी होगी। इसलिए 2022 की बैटल से रहले नंबर दो और 2024 का रास्ता साफ करने की बेताबी दिल्ली दरबार में होना स्वाभाविक है। आखिर जिस सियासी ध्रुवीकरण दांव ने मोदी-शाह को गुजरात से दिल्ली तख़्त दिला दिया उसके दांव-पेंच गोरखपुर का सांसद रहते ही योगी पूर्वांचल में आज़माते रहे हैं।

इसीलिये गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर वाया बनारस-यूपी दिल्ली तख़्त पाए मोदीजी बखूबी जानते हैं कि अब नहीं तो फिर योगी को कभी नहीं रोका जाएगा। ये बड़ा अजीब तर्क गढ़ा जाता है कि योगी या कोई दूसरा भाजपाई सीएम चंद नौकरशाहों में उलझकर रह गया है। लेकिन ये सवाल कोई दिल्ली के स्तर पर नहीं पूछता कि राजनाथ सरीखे कितने क़द्दावर केन्द्रीय मंत्री मन के फैसले छोड़िए मन की बात कर पाते हैं? क्या सबकुछ पीएमओ केन्द्रित नहीं चल रहा सात सालों से? दरअसल ये चंद सालों की सियासी फ़ितरत हो गई है कि अपने घर के बराबर खड़े नेताओं से घबराए पीएम से लेकर सीएम अधिकारियों के ज़रिए सरकार हाँकते हैं। फ़िर योगी या कोई सीएम ऐसा कर रहा तो अलग क्या! आखिर पीएमओ रिटायर्ड आईएएस शर्मा को एमएलसी बनाकर सरकार में बड़ा कद दिलाने की जो कोशिशें कर रहा छह महीने से उसे क्या कहेंगे! आखिर एक रिटायर्ड नौकरशाह ही काम करेंगे क्यों सवा तीन सौ विधायकों में ऐसा चेहरा दिल्ली को नजर नहीं आता जो योगी को काउंटर कर रहे! हैरत की बात नहीं!
जाहिर है सामने यूपी का बाइस बैटल है और यही चुनाव से पहले का वो वक्त होता है जब बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व या कहिए दिल्ली दरबार हरकत में आकर अपनी सियासी चालें तेज करता है। लेकिन उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में मुख्यमंत्री का ताज कभी खंडूरी से छीनकर निशंक और फिर निशंक से खंडूरी या चंद माह पहले अचानक त्रिवेंद्र सिंह रावत के सिर से ताज उठाकर तीरथ सिंह रावत को पहना देना बहुत आसान है लेकिन मोदीजी यही मंत्र यूपी में दोहराएँगे और पत्ता तक नहीं खड़केगा ऐसी ग़लतफ़हमी कौन पालना चाहेगा, भला!
बीजेपी और संघ की जिस तरह की सियासी नीत-रीत रही है उस लिहाज से योगी अब बहुत आगे बढ़ चुके हैं उनको बीच रास्ते रोकना मोदी-शाह के लिए भी हाथ जलाने वाला साबित हो सकता है! आप कितना असंतोष शांत करने के लिए बीएल संतोष या किसी और को भेजिए योगी को रोक पाना कठिन डगर जान पड़ता है फिलहाल। इसलिए ज्यादा से ज्यादा यही रास्ता निकल सकता है कि चंद नए मंत्री बना दिए जाएँ कुछ बाहर कर दिए जाएँ लेकिन योगी बीजेपी की अंदरूनी राजनीति के वो गरम दूध हो चुके जिन्हें हाथ लगाने से शायद प्रधानमंत्री मोदी भी बचें!

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