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रासुका पर राजनीतिक रण: धामी सरकार के रासुका लगाने को किशोर उपाध्याय ने बताया काला फैसला, सीएम पुष्कर सिंह धामी को चिट्ठी लिख कही ये बड़ी बात, ये भी दिलाया याद

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देहरादून: सूबे के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष व वनाधिकार आन्दोलन के संस्थापक प्रणेता किशोर उपाध्याय ने मुख्यमन्त्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर राज्य में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम यानी रासुका लगाने पर गम्भीर चिंता व्यक्त की और इस काले निर्णय को वापस लेने को कहा है। किशोर उपाध्याय ने नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह को भी पत्र की प्रतिलिपि इस अनुरोध के साथ भेजी है कि वे इस सम्बन्ध में कदम उठायेंगे।

उपाध्याय ने अपने पत्र में कहा है कि:-

“आदरणीय मुख्यमंत्री जी,
राज्य में रासुका लागू करने के आपके निर्णय से अत्यंत दुःख हुआ है।
आप जैसे युवा मुख्यमंत्री से कम से कम मुझे ऐसी आशा नहीं थी। सम्भवतः राज्य में पहली बार इस तरह का निर्णय लिया गया है, वह भी अक्तूबर का महीना लोकतांत्रिक मूल्यों, सरकारी दमन और जन अधिकारों की रक्षा के ख़ातिर स्वयं को बलिदान करने वाले अद्वितीय पुरुष महात्मा गांधी जी के जन्म का महीना है, उनकी जयन्ती के एक दिन बाद सरकार का यह निर्णय उस भावना पर कुठाराघात करता है, जिस भावना से राज्यों की सरकारें और केंद्र सरकार उनकी जयन्ती के कार्यक्रम आयोजित कर रही है।
इसी महीने राज्य आन्दोलनकारियों के साथ रामपुर तिराहे पर क्या-क्या नहीं हुआ? आप अच्छी तरह से जानते हैं।
संभवतः आपने राज्य आन्दोलन में युवा आन्दोलनकारी के रूप में हिस्सा भी लिया हो।
मैं तो 13 दिन आमरण अनशन पर रहा। जेल भी गया। पुलिस की लाठियाँ और धक्के भी खाये हैं।
रासुका लगाना उन हुतात्माओं का अपमान है, जिन्होंने अपना वर्तमान और भविष्य इस राज्य को बनाने के लिये क़ुर्बान कर दिया। यह निर्णय राज्य की नारी शक्ति का भी अपमान है, जिसने रामपुर तिराहे पर राज्य के लिये अपना सर्वस्व खो दिया।
असहमति के स्वरों को सुनने की व्यवस्था ही नहीं, अपितु उसे सम्मान देने के उत्सव का नाम ही लोकतन्त्र है।
एक-एक वोट की शक्ति हमें लोकतन्त्र में सर्वोच्च स्थान पर स्थापित करती है, रासुका लगाना उस शक्ति को भी अपमानित करता है।
वोट माँगा जाता है और भिक्षुक का हाथ और सिर सदैव झुके हुए होते हैं, तभी भिक्षा फलीभूत होती है।
आप विचार करिये, अगर राज्य न बनता तो क्या न्यायपालिका, नौकरशाही और राजनैतिक क्षेत्र की हस्तियाँ इस मुक़ाम तक पहुँचती?
कितने लोग जज, मुख्य न्यायाधीश, महाधिवक्ता, सरकारी वकील, मुख्य सचिव, सचिव, मुख्यमंत्री, मन्त्री, दायित्व धारी मंत्री, विधायक, संवैधानिक संस्थाओं के अध्यक्ष व सदस्य बन पाते?
संवाद अनेकानेक समस्याओं का समाधान है।
मेरा आपसे विनम्र आग्रह है, इस रासुका के निर्णय को वापस लेंगे।
शुभकामनाओं के साथ,
आपका,
किशोर उपाध्याय
पूर्व विधायक
05 अक्तूबर, 2021
प्रतिलिपि:-
श्री प्रीतम सिंह जी,
मा. नेता प्रतिपक्ष
किशोर उपाध्याय”

उत्तराखंड में हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए शासन ने DMs को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाने के अधिकार की समयावधि को तीन माह के लिए और बढ़ा दिया है। जो व्यक्ति या समूह माहौल खराब करने और हिंसक घटनाओं को बढ़ावा देने का काम करेगा उस पर जिलाधिकारी राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत कार्रवाई कर सकते हैं। सरकार के इस कदम को रुड़की में एक चर्च में हुई हिंसा, ऊर्जा निगम कर्मचारियों की हड़ताल और आंदोलनों में हिंसक घटनाओं की आशंका से जोड़कर देखा जा रहा है।

अपर मुख्य सचिव (गृह) आनंद बर्द्धन का कहना है कि कानून पहले से लागू है और समय समय पर तीन-तीन माह की अवधि में जिलाधिकारी को रासुका के तहत प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार दिया जाता है।

अपर सचिव गृह रिधिम अग्रवाल के मुताबिक, सितंबर में तीन माह की समयसीमा समाप्त हो गई थी, जिसे एक अक्तूबर से31 दिसंबर तक बढ़ाया गया है।

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