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दृष्टिकोण: चुनाव से पहले 15 लाख ख्वाब था, सत्ता आने के बाद यह डरावना आंकड़ा है !

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  • अगस्त में देश में 15 लाख नौकरियां खत्म हो गयी: सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) रिपोर्ट
  • भारत में नौकरी की तलाश करने वालों के संख्या जुलाई में 3 करोड़ थी, अगस्त में बढ़ कर 3.6 करोड़ हो गयी: CMIE रिपोर्ट
  • साल में 2 करोड़ नौकरियां तो नहीं दी गयी पर एक महीने में 15 लाख नौकरियां जरूर खत्म हो गयी

देहरादून: 2014 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी का वह भाषण अक्सर याद आता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि विदेशों में जमा चोर-लुटेरों का काला धन वापस लाया जाये तो एक-एक भारतवासी को 15-20 लाख रुपए तो यूं ही मुफ्त में मिल जाएँगे।
इन सात वर्षों में वो काला धन तो वापस नहीं आया, लेकिन 15 लाख का वह आंकड़ा एक बार फिर सामने खड़ा हो गया। जी हाँ 15 लाख, लेकिन इस बार यह आंकड़ा डरावना है।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) की हालिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बीते अगस्त महीने में देश में 15 लाख नौकरियां खत्म हो गयी। सीएमआईई की रिपोर्ट के अनुसार जुलाई में देश की बेरोजगारी की दर 6.95 प्रतिशत थी, जो अगस्त में बढ़ कर 8.32 प्रतिशत हो गयी। शहरी बेरोजगारी की दर जुलाई में 8.3 प्रतिशत थी और अगस्त में यह बढ़ कर 9.78 प्रतिशत हो गयी। मार्च में कोविड की दूसरी लहर से पहले शहरी बेरोजगारी की दर 7.27 प्रतिशत थी। आंकड़े बता रहे हैं कि शहरी बेरोजगारी की यह दर निरंतर बढ़ रही है।
सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार भारत में नौकरी की तलाश करने वालों के संख्या जुलाई में 3 करोड़ थी, अगस्त में यह संख्या बढ़ कर 3.6 करोड़ हो गयी।
देश के कई राज्यों में बेरोजगारी की दर दो अंकों में है। इसमें सबसे ऊपर हरियाणा है, जहां बेरोजगारी की दर 35.7 प्रतिशत है। जबकि राजस्थान में यह दर 26.7 प्रतिशत, झारखंड में 16 प्रतिशत, बिहार में 13.6 प्रतिशत, गोवा में 12.6 प्रतिशत और दिल्ली में 11.6 प्रतिशत है। धारा 370 हटा कर जम्मू-कश्मीर को स्वर्ग बनाने के दावे की हकीकत भी सीएमआईई का आंकड़ा खोलता है। जम्मू-कश्मीर भी उन राज्यों में शामिल है, जहां बेरोजगारी की दर दो अंकों में है। वहां अगस्त के महीने में बेरोजगारी की दर 13.6 प्रतिशत थी।
पहली बार सत्ता में आने से पहले वर्तमान हुकूमत ने वायदा तो हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार देने का भी किया था। पर उसका हश्र भी काला धन वापस लाकर हर किसी के खाते में 15 लाख रुपये डालने जैसा ही हुआ। साल में 2 करोड़ नौकरियां तो नहीं दी गयी पर एक महीने में 15 लाख नौकरियां जरूर खत्म हो गयी।


और 15 लाख का जहां तक सवाल है, चुनाव से पहले 15 लाख हसीन ख्वाब था, सत्ता में सात साल रहने के बाद यह डरावना आंकड़ा है!


साभार एफबी
(लेखक एक्टिविस्ट व सीपीआई(एमएल) गढ़वाल सचिव हैं। विचार व्यक्तिगत हैं)

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