वनाधिकार आन्दोलन के संस्थापक व प्रणेता किशोर उपाध्याय ने हरीश रावत को वनाधिकार के 9 बिन्दुओं पर लिखा पत्र, इन मांगों पर समर्थन मांगा

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टिहरी/देहरादून: वनाधिकार आन्दोलन के संस्थापक व प्रणेता किशोर उपाध्याय ने श्री हरीश रावत को वनाधिकार के 9 बिन्दुओं पर पत्र लिखा है।
साथ में सभी राजनैतिक दलों के मुखियाओं को भी पत्र की प्रतिलिपि भेजी है।


उपाध्याय ने कहा है कि:-


“परम आदरणीय श्री रावत जी,
सस्नेह अभिवादन।
सुबेर उठते ही मन आह्लादित हो गया, जब मैंने घरेलू रसोई गैस के सम्बन्ध में आपका वक्तव्य समाचार पत्रों में देखा कि सरकार आने पर रसोई गैस पर ₹200/- की छूट उत्तराखंडियों को दी जायेगी।पूर्व में मैंने बिजली की 100 यूनिट मुफ़्त देने का आपका वक्तव्य भी अख़बारों में देखा है। कुछ महानुभावों और एक राजनैतिक दल के हर गाँव व क़स्बे में 300 यूनिट बिजली मुफ़्त देने के बड़े-बड़े होर्डिंग दिखायी दे रहे हैं।
मुझे “मुफ़्त” शब्द देख कर कोफ़्त हुयी, और मुफ़्त देने वालों की मानसिकता पर हंसी आयी।
क्यों, अभी कल ही हमारे दो होनहार नौजवानों ने देश की रक्षा के लिये अपनी जान दे दी, अपने प्राण न्यौछावर कर दिये।
हम देने वाले हैं, 60 करोड़ देश वासियों को पीने का पानी दे रहे हैं और आप जानते ही हैं, बिना पानी के जीवित रहना सम्भव नहीं है।गंगा और यमुना का पानी न हो तो दिल्ली प्यासी मर जायेगी।उत्तराखंड का पानी न हो तो गोमुख से गंगा सागर की क्या स्थिति होगी? आप भली-भाँति जानते हैं।
अभी सुप्रीम कोर्ट की एक कमेटी ने कहा है कि एक वृक्ष प्रतिवर्ष ₹75,000/- का पर्यावरणीय योगदान दे रहा है।
हमने अपनी 91% भूमि देश और दुनिया के लिये भलाई के लिये समर्पित कर रखी है।
मेरा कहने का आशय है कि हम मुफ़्तख़ोर नहीं हैं, हम निस्वार्थ भाव से देने वाले हैं।
टिहरी बांध से हम कितनी बिजली, पीने का पानी और सिंचाई का पानी दे रहे है, आप भली भाँति जानते हैं, हमारा टिहरी का पानी न हो तो ‘देश का दिल’ 40 लाख राजधानी वासी प्यास से तड़प जाएँगे।
मैं लड़-झगड़ कर THDC का मुख्यालय ऋषिकेश न लाता तो राज्य को आय का एक बड़ा स्रोत न मिलता।
राज्य को THDC का मुख्यालय ऋषिकेश में स्थापित होने पर कितना लाभ हो रहा है? पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार जी ने उस पर हाल में ही प्रकाश डाला है।
ONGC के बारे में महावीर त्यागी जी का जो योगदान है, वही योगदान THDC के बारे में आपके अनुज
किशोर उपाध्याय का भी है।
लेकिन, टिहरी को क्या मिला?
संघर्ष और लांछन।
हम और तत्कालीन हमारे जन प्रतिनिधि समझदार होते तो देश आज़ाद होते ही हम लोगों को प्रदेश और देश की सरकारी और अर्द्ध-सरकारी सेवाओं में Forest Dweller मानते हुये आरक्षण मिलना चाहिये था, लेकिन हम चूक गये।
वन क़ानून जब बने तो हम रौ में बह गये और हमने वनों पर अपने हक़-हक़ूक़ों की बात ही नहीं की।
मण्डल कमीशन लागू हुआ, उसके सारे मानक़ों पर हम खरे उतरते हैं, हमने OBC आरक्षण की परिधि में अपने बच्चों को लाने की बात की नहीं की, मंडल कमीशन ने कहा कि:-

“मंडल कमीशन की रिपोर्ट के पेज 52, में शैक्षिणिक स्थित से सम्बंधित मानदंड में लिखा है कि जिन जाति या वर्गों में, 25 प्रतिशत लोगों ने कभी शिक्षा न ली हो या 25 प्रतिशत लोग शिक्षा को बीच में छोड़ देते हों, या 25 प्रतिशत से कम लोग दसवीं पास हों, ऐसी जाति या वर्गों को OBC की सूची में शामिल किया जाये।”
आज भी उत्तराखंड का पर्वतीय और ग्रामीण क्षेत्र इस मानदंड में पूरी तरह से खरा उतरता है।

इसी रिपोर्ट, में आर्थिक आधार में, प्रमुखतः चार मानदंड दिए गए हैं –

• “25 प्रतिशत लोगों की पारिवारिक सम्पति की कीमत राज्य के औसत से कम हो।

• जहाँ 50 प्रतिशत लोगों को पीने के पानी के लिए आधा किलोमीटर से अधिक दूर जाना पड़ता हो।

• तीसरा मानदंड है कि 25 प्रतिशत से अधिक लोगों ने, राज्य औसत से अधिक का ऋण घरेलू उपयोग के लिए लिया हो।

• 25 प्रतिशत से अधिक लोग कच्चे घरों में रह रहे हों।”
अब आप ही सोचिये, क्या हम इन मानक़ों पर खरे नहीं उतरते हैं?
अतः, मेरा अनुरोध है, सभी राजनैतिक दल उत्तराखंडियों के साथ इतने लम्बे समय से हो रहे अन्याय का निराकरण करें और वनाधिकार आन्दोलन की निम्न माँगों को स्वीकार कर न्याय का पथ प्रशस्त करें:-

  1. परिवार के एक सदस्य को योग्यतानुसार पक्की सरकारी नौकरी दी जाय।
  2. केंद्र सरकार की सेवाओं में आरक्षण दिया जाय।
    3.बिजली पानी व रसोई गैस निशुल्क दी जाय।
  3. जड़ी बूटियों पर स्थानीय समुदायों को अधिकार दिया जाय।
  4. जंगली जानवरों से जनहानि होने पर परिवार के एक सदस्य को पक्की सरकारी नौकरी तथा ₹50 लाख क्षति पूर्ति दी जाय।फसल की हानि पर प्रतिनाली ₹5000/- क्षतिपूर्ति दी जाय।
  5. एक यूनिट आवास निर्माण के लिये लकड़ी, रेत-बजरी व पत्थर निशुल्क दिया जाय।
  6. उत्तराखंडियों को OBC घोषित किया जाय।
  7. भू-क़ानून बनाया जाय, जिसमें वन व अन्य भूमि को भी शामिल जाय।
  8. राज्य में तुरन्त चकबंदी क़ी जाय।
    हम मुफ़्तख़ोर नहीं हैं।
    मैं अपने जल, जंगल और ज़मींन पर अपना हक़ माँग रहा हूँ।
    लोग उसका उपयोग करें, लाभ उठायें, लेकिन उसका लाभ हमारे लोगों और बच्चों को हो, उसकी क्षतिपूर्ति हमें दी जाय।
    मैं इस पत्र की प्रतिलिपि मुख्यमन्त्री जी व अन्य राजनैतिक दलों के मुखियाओं को भी सादर प्रेषित कर रहा हूँ।
    आशा है, आप मेरी बात से सहमत होंगे और न्याय के इस गिलहरी जैसे प्रयास को आशीर्वाद प्रदान करेंगे।
    सादर,
    आपका,
    किशोर उपाध्याय
    18 अक्तूबर, 2021
    सेवामें,
    श्री हरीशचन्द्र सिंह रावत जी।”

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