पहाड़ पॉलिटिक्स: यहां नेता सदन वहां नेता विपक्ष पर पेंच, इसे 2022 का ट्रेलर ही समझिए पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त!

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देहरादून/ दिल्ली: पहाड़ पॉलिटिक्स का भी ये अजब-गजब सियासी संयोग देखिए कि कल तक प्रदेश कांग्रेस के पराक्रमी विधानसभा में अपने नेता प्रतिपक्ष यानी सीएलपी लीडर खोजने को दिल्ली में आपसी द्वन्द्व में से दो-चार हो रहे थे। अब सत्ताधारी दल बीजेपी ने भी उनको ज्वाइन कर लिया है और यहां भी दिल्ली दरबार ने संकेत दे दिया है कि नेता सदन यानी मुख्यमंत्री के भाग्य पर नए सिरे से मंथन महाभारत के बाद फैसला होगा। अब तीरथ रहेंगे या नहीं रहेंगे इसका फैसला बीजेपी नेतृत्व करेगा लेकिन जब भी करेगा तब करेगा उससे पहले परसों से यानी 48 घंटे से ज्यादा समय से राज्य में कामकाज सब चौपट हो चुका है और नौकरशाही से लेकर सियासी गलियारे का हर शख़्स दिल्ली की तरह ताक रहा है कि आगे क्या!


तीरथ रहेंगे तो इस तरह दिल्ली तलब कर बिठाकर क्यों रखा गया और अगर बीजेपी आलाकमान अपनी पॉलिटिकल लैबोरेटरी में तब्दील उत्तराखंड में नया एक्सपेरिमेंट करने पर आमादा है तो वह नया चेहरा कौन होगा? बीजेपी में आकर पत्तल उठाने का दम भरते महाराज को सरकार चलाने का चांस मिलेगा या धनदा की धमक दिखने का वक्त करीब है। फूलमालाओं से लदे स्वागत सत्कार कराते टीएसआर1 के फिर अच्छे दिन लौटेंगे, ये सब सवाल है जो बीजेपी कॉरिडोर्स से लेकर प्रदेशभर में दौड़ रहे।


बात नेता सदन की हो गई तो अब चर्चा नेता प्रतिपक्ष के बहाने पहाड़ कांग्रेसी क्षत्रपों में मचे आर-पार कुरुक्षेत्र की भी कर ली जाए। प्रीतम-इंदिरा जोड़ी टूट चुकी है लिहाजा अब हरदा कैंप को साढ़े चार साल का हिसाब चाहिए यानी अध्यक्ष भी उनकी मर्ज़ी का बने और अगर प्रीतम रूठकर कोपभवन में चले जाएँ तो नेता प्रतिपक्ष भी मिल जाए। लेकिन प्रीतम सिंह न हरदा के सामने घुटने टेकने को तैयार न ही उनको अध्यक्ष पद गंवा 2022 से पहले ही मैदान से बाहर होना मंजूर। अब सवाल उस थ्योरी का जिसके तहत चलाया जा रहा कि प्रीतम नेता प्रतिपक्ष बनेंगे और अध्यक्ष हरदा की पसंद का होगा। अगर ऐसा हुआ भी तो क्या पार्टी नेतृत्व अध्यक्ष और आगे कैंपेन कमेटी की अगुआई यानी चुनावी लिहाज से दोनों अहम ज़िम्मेदारियां हरदा कैंप को दे देगा? फिर प्रीतम क्या चकराता तक महदूद होकर रह जाएंगे या यहाँ से कलह कुरुक्षेत्र का नया मोर्चा खुल जाएगा?


साफ है नया नेता प्रतिपक्ष चुनना या फिर अध्यक्ष और सीएलपी नेता दोनों नए बना देना इतना आसान होता तो कांग्रेस आलाकमान कब का फैसला कर चुका होता। अभी पहुंच पेचोखम बाकी हैं इस रास्ते।
कुल मिलाकर 2022 की चुनावी बैटल दिलचस्प होने जा रही है और चुनावी शंखनाद से पहले बीजेपी और कांग्रेस नए सिरे से कील-काँटे दुरुस्त कर लेना चाहती हैं लेकिन क्या ये जनता को रास आएगा!


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