बिहार में का बा, पलटूराम! टूटा बीजेपी-जेडीयू गठबंधन आ रहे लालटेनधारी, बिहार में नीतीश कुमार के आगे BJP के सियासी सरेंडर की वजह?

file photo
TheNewsAdda

Bihar Political Crisis: बिहार विधानसभा की एक चौथाई से भी कम सीटों के बावजूद जेडीयू नेता नीतीश कुमार भाजपा से गठबंधन तोड़कर भी सियासत के सबसे बड़े सिकंदर बनने जा रहे हैं।

भाजपा और जेडीयू का गठबंधन टूट चुका है और बिहार में विपक्षी धड़े के साथ मिलकर सुशासन बाबू नीतीश कुमार फिर पलटी मार कर नई पटकथा लिख रहे हैं। नीतीश कुमार चार बजे बिहार के राज्यपाल से फागू चौहान से मिल रहे हैं।

बिहार विधानसभा में कौन कहां खड़ा?

बिहार की 243 सीटों में बहुमत का आंकड़ा 122 सीटों पर ठहरता है जिसमें सबसे बड़े दल के रूप में आरजेडी के पास 79 विधायक हैं। बीजेपी के पास 77, जेडीयू 45, कांग्रेस 19, वामदलों के 16, एआईएमआईएम एक और हम के चार विधायक है। अब अगर आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस, लेफ्ट, हम और एक निर्दलीय को जोड़ देते हैं तो बहुमत का आंकड़ा कुल 164 हो जायेगा जो 122 के जादुई आंकड़े से काफी अधिक है।

भाजपा भले अंदर ही अंदर नीतीश कुमार और जेडीयू को खत्म करने का ऑपरेशन लोटस चला रही हो। लेकिन अटल आडवाणी से लेकर मोदी शाह तक बिहार इकलौता राज्य है जहां ताकतवर होकर भी भाजपा ने सूबे में बड़े भाई की भूमिका जेडीयू को देकर नीतीश कुमार के सामने सरेंडर किए रहना मुनासिब समझा।

यहां तक कि उसने महाराष्ट्र में एक जमाने तक इसी सियासी फॉर्मूले के साथ चलते रहे भाजपा शिवसेना गठबंधन को तिलांजलि दे डाली। पहले देवेंद्र फडणवीस के साथ एनसीपी नेता शरद पवार के भतीजे अजीत पवार को शपथ दिलाकर भाजपा ने शिवसेना को उसको असल जमीन दिखाने की कोशिश की लेकिन चाल उल्टी पड़ गई तो एकनाथ शिंदे से बगावत कराकर मराठा सियासी गढ़ फतह कर लिया। लेकिन बिहार में उसके लिए आज तक नीतीश को किनारे कर आगे बढ़ जाना आसान नहीं हो पाया।

शायद इसकी वजह नीतीश की सियासी छवि और सामने पहले लालू प्रसाद यादव और अब उनके पुत्र तेजस्वी यादव के जरिए आरजेडी के रूप में कठिन चुनौती का होना मन लिया जाए। या फिर नीतीश और लालू के मुकाबले का नेता तैयार न कर पाना उसे लालू को रोकने के लिए नीतीश के पीछे खड़े होने को मजबूर करता रहा हो।

कहने को अब नीतीश कुमार और जेडीयू भाजपा और मोदी शाह पर तोहमत लगा रहे हों कि पहले चुनाव में चिराग पासवान को हवा देकर नीतीश कुमार की सियासत गुल करने की साजिश हुई और अब आरसीपी सिंह के जरिए महाराष्ट्र वाली पटकथा बिहार में लिखने की तैयारी चल रही थी। अब यह तो आने वाले दिनों में पता चल पाएगा कि क्या वाकई आरसीपी सिंह जेडीयू के एकनाथ शिंदे बनने की मोदी शाह की योजना के किरदार बनकर काम कर रहे थे।

फिलहाल भाजपा जेडीयू से टूटते अपने सियासी रिश्ते की तल्खी इत्मीनान से बर्दाश्त करने का मन बना चुकी है। वैसे भी बिहार में भाजपा जानती है कि उसके पास विकल्प सीमित हैं और अगर आज नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोला तो भविष्य के सियासी समझौते की संभावनाएं भी क्षीण हो जाएंगी।

दरअसल भाजपा अपने बूते बिहार में अभी भी चुनावी समर जीतने का हौसला शायद नहीं हासिल कर पा रही है। उसे अभी भी लगता है कि आरजेडी और जेडीयू की दोस्ती बहुत दिन नहीं टिकेगी और जैसे 2013 में मोदी को पीएम चेहरा बनाने पर गठबंधन तोड़ लालू से जा मिले नीतीश 2017 में फिर लौटकर भाजपा के साथ आ गए थे, वैसी पलटी आगे न हो इससे कौन इनकार करेगा भला।

यही वजह है कि भाजपा टूटते गठबंधन को महज तमाशबीन होकर देखना चाहती है क्योंकि उसने भविष्य को लेकर अभी भी नीतीश से मोहभंग का मन नहीं बनाया है। इसीलिए अब वह न खुलकर जेडीयू तोड़ने की कोशिश कर रही बल्कि वेट एंड वॉच की मुद्रा में चली गई है।

सवाल है कि क्या नीतीश कुमार की ताजा सियासी पलटी राष्ट्रीय राजनीति की अपनी महत्वाकांक्षा को नए सिरे से परवान चढ़ाने की रणनीति का हिस्सा है? या वाकई नीतीश कुमार को 31 जुलाई को दिए भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के उस बयान कि धीरे धीरे सब मिट (राजनीतिक दल) जाएंगे सिर्फ भाजपा रहेगी,में अपने भविष्य का अक्स दिख गया?


बहरहाल लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने ट्वीट कर कहा है- राजतिलक की करो तैयारी, आ रहे हैं लालटेनधारी।’ तो जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाह ने ट्वीट किया है-नीतीश जी आगे बढिए। देश आपका इंतजार कर रहा है।

फिलहाल इंतजार तो बिहार की सियासत को भी नए अध्याय के आरंभ होने का हो रहा। यहां से सिर्फ बिहार की राजनीति का स्वरूप नहीं बदलने जा रहा बल्कि 2024 की चुनावी चुनौती से पहले मगध का महाभारत भारतवर्ष के पूरे सियासी समीकरण उलट पलट सकता है। याद है न! आज 9 अगस्त यानी क्रांति दिवस है।


TheNewsAdda
error: Content is protected !!