देहरादून/दिल्ली: भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई क़ुरैशी से एक्सक्लूसिव बातचीत के आधार पर सीएम तीरथ सिंह रावत के सामने उपचुनाव को लेकर कोई संवैधानिक संकट नहीं है, ये बड़ी खबर आपके The News Adda के लाइव डिबेट शो में मंगलवार शाम छह बजे ब्रेक की गई थी। और उसकी फॉलोअप खबर बुधवार सुबह भी प्रकाशित की गई।
लेकिन अभी भी मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत विधानसभा का उपचुनाव नहीं लड़ पाएंगे? संविधान का अनुच्छेद 164(4) बिना सदन का सदस्य बने मंत्री-मुख्यमंत्री बनने का मौका देता है लेकिन जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151 (क) के तहत उनको छह महीने के अंदर यानी 10 सितंबर से पहले पहले विधायक बनना चाहिए था लेकिन इसी जन प्रतिनिधित्व एक्ट की उपधारा कहती है कि रिक्ति से संबंधित सदस्य की पदावधि एक वर्ष से कम होती तो चुनाव कराना जरूरी नहीं है। यानी उत्तराखंड की चौथी विधानसभा का कार्यकाल 23 मार्च 2022 को खत्म हो रहा लिहाजा सीएम तीरथ सिंह रावत के लिए अब विधानसभा का उपचुनाव संभव नहीं होगा, जैसे सवाल खड़े तीरथ सिंह रावत के सामने संवैधानिक संकट बताया जा रहा है और विपक्षी कांग्रेस भी इसे मुद्दा बना चुकी है।
हम आपके सामने इस संवैधानिक संकट के हौव्वे की हवा निकालने के लिए सिर्फ संविधान और चुनाव क़ानूनों के जानकारों की राय ही नहीं एक पूर्व का उदाहरण भी दे रहे हैं ताकि इस मुद्दे पर बहस को विराम दिया जा सके।
याद कीजिए ओडीशा के उस सांसद को जिनके एक वोट से 12वीं लोकसभा में 1999 में वाजपेयी सरकार एक वोट से गिर गई थी। जी हाँ कोरापट से 1972 से लगातार नौ बार सांसद( एक अपवाद 1999 में वे सीएम थे तो उनकी पत्नी हेमा गमांग सांसद चुनी गई थी) चुने गए गिरधर गमांग की ही बात हो रही है। कांग्रेस सांसद गिरधर गमांग को अचानक पार्टी नेतृत्व 17 फरवरी 1999 को सांसद रहते ओडीशा का मुख्यमंत्री बना देती है। लेकिन इसके दो महीने बाद वाजपेयी सरकार को विश्वासमत की परीक्षा से गुज़रना होता है और सीएम रहते गमांग ने सांसद पद से इस्तीफा नहीं दिया था और वे वोट डालने लोकसभा पहुँचते हैं और वाजपेयी सरकार एक वोट यानी 269-270 से विश्वासमत खो देती है।
यही गिरधर गमांग यानी कांग्रेस के ओडीशा सीएम 23 जून 1999 को लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से भारी मतों से BJD उम्मीदवार बिभीषण माँझी को हराकर उपचुनाव जीतते हैं। जबकि ओडीशा की वो 11वीं विधानसभा थी जिसका कार्यकाल मार्च 2000 में पूरा होना था। लेकिन एक साल से कम पदावधि के बावजूद तब चुनाव आयोग ने राज्य सरकार पर संवैधानिक संकट खड़ा न हो जाए इसलिए मुख्यमंत्री गिरधर गमांग का उपचुनाव कराया था।
संविधान और चुनाव क़ानूनों के जानकार इतिहास में खंगालने पर ऐसे और भी उदाहरण मिलने की बात कहते हैं। यानी मुद्दा बस इतना भर है कि जैसे ही केन्द्रीय चुनाव आयोग ये महसूस करेगा कि कोरोना से उपजे हालात सामान्य हो रहे हैं तभी विधानसभा उपचुनाव का बिगुल बज जाएगा। यानी बॉल चुनाव आयोग के पाले में हैं और आयोग के पास सीएम तीरथ का उपचुनाव कराने के पर्याप्त आधार भी मौजूद हैं।