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राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार: सुपर सीएम से नेता प्रतिपक्ष तक डॉ इंदिरा ह्रदयेश पहाड़ पॉलिटिक्स में एक छोर पर डटी रही, कुमाऊं की आयरन लेडी की भरपाई आसान न होगी

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हल्द्वानी/ देहरादून: कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और विधानसभा में नेता विपक्ष डॉ इंदिरा ह्रदयेश पंचतत्व में विलीन हो गई। रानीबाग चित्रशिला घाट में उनके पुत्र बॉबी ह्रदयेश, सौरभ ह्रदयेश और सुमित ह्रदयेश ने उनकी चिता को मुखाग्नि दी। रविवार को दिल्ली के उत्तराखंड सदन में 80 वर्षीय इंदिरा ह्रदयेश का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। रविवार देर शाम डॉ इंदिरा ह्रदयेश का पार्थिव शरीर हल्द्वानी उनके आवास पहुँचा तो हज़ारों की संख्या में लोग इकट्ठा हो गए उनके अंतिम दर्शन के लिए। सोमवार सुबह उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए उनके आवास पर रखा गया, जहां उनके समर्थकों और नेताओं का लगातार तांता लगा रहा।

उनको श्रद्धांजलि देने पहुँचने वालों में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत, सांसद अजय भट्ट, मंत्री बंशीधर भगत, यशपाल आर्य, अरविंद पांडे सहित बीजेपी और कांग्रेस के कई नेता रहे।शासकीय प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल भी डॉ इंदिरा को श्रद्धांजलि देने हल्द्वानी पहुँचे।


सुबह 10 बजे डॉ इंदिरा के पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए स्वराज आश्रम लाया गया, जहां कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह, पूर्व सीएम हरीश रावत, कांग्रेस प्रभारी देवेन्द्र यादव और पूर्व विधानसभा स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल सहित कई नेताओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की।स्वराज आश्रम से इंदिरा ह्रदयेश की शवयात्रा नैनीताल रोड होते हुए चित्रशिला घाट पहुँची, जहां पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनको विदाई देने पहुँचे हर शख़्स की आँखें नम थी आखिर कुमाऊं की आयरन लेडी अब लौट कर नहीं आने वाले सफर पर निकल चुकी हैं।

साधारण शिक्षिका से असाधारण राजनेता तक का सफर:-

अपने करीब पचास साल के राजनीतिक सफर में डॉ इंदिरा ह्रदयेश ने साफ़गोई से अपनी बात कहने का हुनर तो हासिल किया ही, नौकरशाही पर नकेल कसकर काम कराने का दमखम भी दिखाया। तिवारी सरकार में सुपर सीएम की हैसियत रखने वाली इंदिरा ने PWD मंत्री रहते जितनी सड़कें बनवाई उसके बाद किसी सरकार में इसकी बराबरी न हो सकी। यूपीए के जमाने और कांग्रेस के ‘अच्छे दिनों’ के दौर में भी सोनिया गांधी डॉ इंदिरा ह्रदयेश को बैठकों में न केवल याद करती थी बल्कि यूपी से उत्तराखंड तक उनके अनुभव की क़ायल भी रहती थी।
पिथौरागढ़ के बेरीनाग ब्लॉक के दशौली गांव में स्वतंत्रता सेनानी पंडित टीकाराम पाठक और समाजसेवी रमा पाठक के घर जन्मी डॉ इंदिरा ने 1974 में यूपी विधान परिषद सदस्य बनने के बाद राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। चार बार लगातार यूपी विधान परिषद सदस्य रहने के बाद उत्तराखंड के चार में से तीन विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की। तिवारी सरकार में सुपर सीएम की हैसियत रही तो बहुगुणा से हरदा सरकार में रुतबा बना रहा। 2016 के पाला बदल के बाद हरदा सरकार को अदालती झंझावातों से लेकर विधायी चुनौतियों से पार दिलाने में आयरन लेडी का अहम रोल रहा।
2017 में बीजेपी की डबल इंजन सरकार बनी तो डॉ इंदिरा को नेता प्रतिपक्ष की ज़िम्मेदारी संभालने की चुनौती दी गई और ऐसे कई मौके आए जब अपनी विधायी और संसदीय मामलों की गहरी समझ के चलते इंदिरा ने प्रचंड बहुमत की सरकार की कसकर घेराबंदी की। हालॉकि मुख्यमंत्री बनकर काम करने की उनकी अधूरी हसरत उनके साथ ही चली गई लेकिन निकट भविष्य में न विधानसभा के सदन में उनकी खाली जगह भरना आसान होगा और न ही पुरुष वर्चस्व वाली पहाड़ पॉलिटिक्स में बेबाक़ी और साफ़गोई से ख़म ठोककर अपनी बात कहने वाली दूसरी नेत्री जल्द हम देख पाएंगे।अलविदा आयरन लेडी!

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