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VIEDO हादसे का इंतज़ार या टूटेगी नींद? गोमुख में श्रद्धालु, पर्यटक, पर्वतारोही जान जोखिम में डाल कर रहे क्षतिग्रस्त ट्रॉली से गंगा पार

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उत्तरकाशी (Ground Report लोकेन्द्र सिंह बिष्ट): आखिर हिमालय को रौंदने, हिमालय को लांघने और हिमालय पर विजय पाने की होड़ क्यों मची है? सवाल अपने आप में अटपटा जरूर है। इसलिए इसको जानने के लिए आज गंगोत्री में गंगा नदी पर सबसे छोटे पुल के बाद आज आपको लिए चलते हैं सीधे मां गंगा के उदगम स्थल गोमुख। जहाँ पृथ्वी पर अवतरित होती हैं मां गंगा। 

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गोमुख! में क्यों लगी है या लगाई गई है माँ गंगा को पार करने के लिए ट्रॉली?

दरअसल श्रद्धालु, पर्यटक ,तीर्थयात्री, साधु-संत संन्यासी, पर्वतारोही गंगोत्री से गोमुख, तपोवन, नंदनवन और अति उत्साही पर्वतारोही व श्रद्धालु हिमालय को लांघते हुए बदरीनाथ तक पहुंच जाते हैं। 

गोमुख से आगे उच्च हिमालय में तपोवन, नंदनवन, सुंदरवन जैसे दिव्य स्थल हैं। इसके अलावा गोमुख से आगे हिमालय की 100 से अधिक हिम चोटियां हैं जो पर्वतारोहण के लिहाज से पर्वतारोहियों के लिए खास आकर्षण व चुनौतीपूर्ण हैं। प्रतिवर्ष सैकड़ों हजारों की संख्या में पर्वतारोही गंगोत्री ग्लेशियर से आगे पहुंचते हैं। 

गंगोत्री से गोमुख तक का 18 किलोमीटर पैदल मार्ग गंगा के बाएं तट से ही होकर गुजरता है। ये अलग बात है कि दशकों पहले ये मार्ग गंगा के दाएं तट से होकर गुजरता था, जो भूस्खलन व दूसरी घटनाओं के चलते बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। अभी पिछले 50 वर्षों से गोमुख तक गंगा के बाएं तट से होकर गोमुख पहुंच रहे हैं लोग। और गोमुख से 5 किलोमीटर आगे तपोवन का रास्ता गोमुख से आगे बाएं तट से होकर और फिर गंगोत्री ग्लेशियर को लांघकर दाएं ओर आ जाते थे। इसके बाद आगे 5 किलोमीटर दूर तपोवन पहुंचा जाता है।

लंबे समय तक देश के प्रतिष्ठित संस्थान NIM यानी नेहरू पर्वतारोहण संस्थान ने अपने सभी तरह के कोर्स के प्रशिक्षण गंगोत्री ग्लेशियर के ऊपर ही संचालित किए। लेकिन जब दुनियाभर में ग्लेशियर के पिघलने का शोर मचा तो NIM ने गंगोत्री ग्लेशियर के ऊपर से अपने सभी प्रशिक्षण बंद कर दिए। ये अलग बात है कि आज भी हिमालय और उसकी विभिन्न चोटियों को रौंदने से पहले बर्फीले इलाकों पर जाने का प्रशिक्षण किसी न किसी ग्लेशियर में ही लिया जा रहा है।

खैर, ये अलग विषय व मुद्दा है। आज हम बात कर रहे हैं गोमुख में लगी ट्रॉली के बारे में। जैसा कि बताया गया है कि तपोवन जाने के लिए गंगोत्री ग्लेशियर को लांघकर जाते थे इसलिए धार्मिक आधार पर ये मांग थी कि माँ गंगा के उदगम ग्लेशियर को न लाँघा जाए। दूसरा पिछले 20 वर्षों से गोमुख में गंगोत्री ग्लेशियर के दोनों ओर की पहाड़ियों पर भूस्खलन सक्रिय हैं जो माँ गंगा के उद्गम गोमुख को विकृत कर रहे हैं। इन्ही भूस्खलन के चलते माँ गंगा की धारा कभी इधर कभी उधर धकेली जा रही है।

20 वर्ष पहले जिन लोगों ने गोमुख को देखा होगा वे आज गोमुख को देखेंगे तो दृश्य ठीक उलट व विकृत नज़र आएगा।

धार्मिक आस्था तो छोड़ दीजिए लेकिन इन सक्रिय भूस्खलन के चलते तपोवन जाने का रास्ता पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। इसलिए गोमुख में ट्रॉली लगाई गई ताकि श्रद्धालु, पर्यटक व पर्वतारोही, साधु संत तपोवन व उससे आगे हिमालय की यात्रा निर्बाध कर सकें। लेकिन आजकल गोमुख में लगी ट्रॉली क्षतिग्रस्त है। 

हालांकि गंगोत्री नेशनल पार्क के रेंजर प्रताप सिंह पंवार ने भरोसा दिया था कि एक दो दिन में ट्रॉली को ठीक करा लिया जाएगा।

हमने महेश रावत से प्राप्त विसुअल्स जो गोमुख में लगी ट्रॉली की स्थिति व ट्रॉली को खींचने के लिए पसीना बहाते पर्यटक व जान जोखिम में डालकर नदी पार कर रहे लोगों का ताजा मंजर दिखा रहे हैं। तस्वीरों को जस का तस आप सभी तक THE NEWS ADDA के माध्यम से पहुंचाया जा रहा है। उम्मीद है ट्रॉली जल्द ठीक होगी! या हादसे के बाद ही जिम्मेदारों की नींद टूटेगी? 

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( लेखक प्रांत संयोजक, उत्तराखंड नमामि गंगे गंगा विचार मंच NMCG,जलशक्ति मंत्रालय, भारत सरकार, हैं। विचार निजी हैं।) 

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