देहरादून: गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत को महज 114 दिनों में मुख्यमंत्री की कुर्सी से चलता कर देने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को रत्तीभर भी अफ़सोस नहीं हो रहा होगा! 2017 में मोदी सूनामी चली तो उत्तराखंड में भाजपा की प्रचंड बहुमत वाली डबल इंजन सरकार बनी और मार्च 2021 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को नकारा मान सत्ता से पैदल किया गया तो लॉटरी तीरथ सिंह रावत की लगी। तीरथ सिंह रावत का 2017 के चुनावी दंगल में भाजपाई जीत में रत्तीभर भी रोल नहीं था, उलटे कांग्रेस से टपक पड़े सतपाल महाराज ने उनकी चौबट्टाखाल सीट छीन ली जिसके एवज में तीरथ को 2019 में पौड़ी गढ़वाल से लोकसभा टिकट दे दिया गया। लेकिन जुबानी तीरंदाज़ी के लिए पहले से पहचाने जाने वाले तीरथ दा जैसे ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे जुबानी तीर विवादों की तलवार बनकर चौतरफा मार-काट मचाने लगे।
कभी अमेरिका से दो सौ साल की ग़ुलामी का इतिहास तीरथ सिंह रावत पढ़ाने लगे तो कभी समय पर 20 बच्चे पैदा न करने को लेकर हिन्दुओं पर तोहमत मढ़ने लगे। कभी राम और कृष्ण की तरह प्रधानमंत्री मोदी को अवतार बताकर पूजे जाने की कहानी सुनाने लगे। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही तीरथ बोलने लगे तो चुप होना मानो मंजूर ही नहीं था। कोरोना में कुंभ आयोजित हो रहा था तो कह दिया कि माँ गंगा की कृपा से कुंभ में कोरोना नहीं फैलेगा। फिर लड़कियों के हाथ पैंट पहनकर कॉलेज आने पर लड़कों के पीछे पड़ जाने को जायज ठहराने लगे, तो फटी जींस पर संस्कार का पाठ पढ़ाकर ऐसे घिरे की कोरोना में उपचुनाव न होने पाने का संवैधानिक संकट बताकर मोदी-शाह ने तीरथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी से चलता करना ही बेहतर समझा।
हालाँकि, विवादित बयानों पर जब चौतरफा बवाल मचा और मोदी-शाह से लेकर असहज भाजपा ने भी किनारा करना बेहतर समझा, तो मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने को तीरथ भी माफी मांगते नजर आए और उनकी पत्नी ने भी आगे आकर सफाई दी। लेकिन अपने कामकाज की बजाय बयानों से सुर्ख़ियां बंटोरते तीरथ की कुर्सी कहां बचने वाली थी! अब पिछले साल जुलाई में मुख्यमंत्री की कुर्सी गँवाने के बाद सांसद तीरथ सिंह रावत अपने पुराने रंग-ढंग में लौट आए हैं और फटी जींस पर अपने बयान पर कायम होने का दम भर दिया है। वो तो न तीरथ अब मुख्यमंत्री रहे न मोदी सरकार में हुए मंत्रीमंडल विस्तार में जगह पा सके लिहाजा बयान पर पिछले साल वाला बवंडर भी नहीं मचना था। लेकिन तीरथ दा तो ठहरे तीरथ दा! बता दिया वे जो हैं सो हैं। फिर चाहे 2024 में मोदी-शाह लोकसभा का टिकट ही क्यों न दे लेकिन वे फटी जींस पर संस्कार का पाठ पढ़ाने से नहीं हिचकेंगे।
दरअसल, श्रीनगर में इस्कॉन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बतौर चीफ गेस्ट तीरथ सिंह रावत ने कहा कि एक बार फटी जींस को लेकर अपनी राय सबके सामने रखी थी। तीरथ ने कहा कि वे फटी जींस के विरोधी हैं न कि जींस का विरोध करते हैं। उन्होंने कहा बाहर से आकर अंग्रेज़ और दूसरे देशों के लोग भी यहाँ साड़ी जैसे परिधान पहनते हैं लेकिन यहाँ के लोग अपनी संस्कृति को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर रहे हैं और फटी जींस से हमारा आचरण दिख जाता है।
जाहिर है सांसद के नाते तीरथ सिंह रावत के पास अपने क्षेत्र की जनता के जीवन को सुगम बनाने के लिए कितने कामकाज कराए यह बताने के लिए बहुत कुछ दिख नहीं रहा। लिहाजा मौका मिलते ही वे नैतिक पुलिस बनकर डंडा लेकर समाज को रास्ता दिखाने निकल पड़ते हैं। सवाल है कि अगर फटी जींस पर वे सही थे और आज भी अपने बयान पर कायम हैं तो बयान देकर माफी किसको खुश करने के लिए मांग रहे थे? तब क्या सिर्फ मुख्यमंत्री की अपनी कुर्सी बचाने को माफी माँगने का ढोंग कर रहे थे या मोदी-शाह और पार्टी के दबाव में मजबूर हो गए थे? और अगर तब बयान देकर माफी माँगनी पड़ी थी तो आज उसी बयान पर कायम रहकर किसके ठेंगा दिखाना चाह रहे?