देहरादून (पवन लालचंद): उत्तराखंड की 22 साल की BJP सियासत पर गौर करें तो एक शख़्सियत ऐसी उभरती है जिसने खुद भले लंबे समय तक सत्ता का सफर तय न किया हो लेकिन अपने शिष्यों को पॉवर शिखर पर कई बार पहुँचाकर दिखा दिया। जी हाँ हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड की राजनीति के सबसे बड़े किंगमेकर भगतदा की। भगतदा यानी भगत सिंह कोश्यारी जो फिलहाल हैं तो सियासी लिहाज से बेहद अहम महाराष्ट्र राज्य के राज्यपाल हैं लेकिन पहाड़ पॉलिटिक्स पर न केवल मुंबई स्थित राजभवन से पैनी नजर बनी हुई है बल्कि धामी सरकार के हर छोटे-बड़े कदम के पीछे उनका दिमाग रहता है। कह सकते है कि अगर पुष्कर सिंह धामी किंग हैं तो भगतदा किंगमेकर!
भगतदा न केवल उत्तराखंड के पॉवर कॉरिडोर्स में ज़बरदस्त दखल बनाए हुए हैं बल्कि उत्तराखंड भाजपा की ध्रुवीय राजनीति में भी अब उनके सामने कोई ध्रुव शेष बचा नहीं दिखता है। एक जमाने में भगतदा, जनरल खंडूरी और फिर निशंक की एंट्री से भाजपा के भीतर ध्रुवीय त्रिकोण बन गया था। लेकिन आज अगर पलटकर देखें तो जनरल उम्र और हेल्थ के चलते राजनीति से हथियार डाल चुके हैं और डॉ निशंक अर्थ से फ़र्श और फिर मोदी सरकार में मंत्री पाने और गँवाने के दौर अर्श से फ़र्श पर आ चुके हैं।
अब न खंडूरी का धड़ा रहा न निशंक ही ध्रुव रह पाए हैं लेकिन भगतदा आज भी महाराष्ट्र में होकर भी उत्तराखंड की सत्ता और राजनीति का रिमोट बखूबी थामे नजर आ रहे हैं।
अगर यह कहा जाए कि खटीमा की चुनावी जंग हारकर भी पुष्कर सिंह धामी की मुख्यमंत्री के सिंहासन पर ताजपोशी हो गई तो इसके पीछे पूरी न सही लेकिन एक बड़ी भूमिका भगत सिंह कोश्यारी की जरूर रही है। संघ में आज भी गहरी पैठ रखने वाले भगतदा महाराष्ट्र की अपनी अहम भूमिका के चलते मोदी-शाह के लिए तुरुप का पत्ता बने हुए हैं। अगर त्रिवेंद्र के बाद तीरथ सिंह रावत पर दांव लगातार हाथ जला बैठे मोदी-शाह को ठीक चुनाव से पहले गढ़वाल छोड़ कुमाऊं पर सियासी बिसात बिछाने का गेमचेंजर आइडिया किसी ने दिया तो वह किरदार भगतदा ही थे।
यह भगतदा ही थे जिनपर भरोसा कर कुमाऊं को बाइस बैटल का अखाड़ा बनाया गया और न केवल हरदा की सफल घेराबंदी कर ली गई बल्कि भाजपा की सत्ता में वापसी का मार्ग भी प्रशस्त हो गया। सत्रह में सीएम बने त्रिवेंद्र सिंह रावत भी भगतदा कैंप से ही थे और अगर पुष्कर सिंह धामी को दोबारा किंग बनाया गया तो इसके पीछे भी किंगमेकर कोश्यारी ही रहे। भगतदा ने थारू वोटर्स के रुख और खटीमा सीट के बदले मिज़ाज को भी समय रहते ताड़ लिया था।
इसी का परिणाम है कि धामी के लिए चंपावत सीट खाली करने वाले कैलाश गहतोड़ी के चुनाव पूर्व सर्वे के नाम पर कटते टिकट को बचाने के लिए भगतदा और मुख्यमंत्री ने ही पसीना बहाया था। कुमाऊं में अपनी टीम को लेकर बेहद संजीदा और सक्रिय रहे भगतदा ने ही सुरेश गढ़िया को टिकट दिलाया था और इस तरह धामी के लिए सीट डोनर्स का प्लान भी तैयार कर लिया गया था। सीएम बनने के बाद धामी ने भी भगतदा के दिखाए रास्ते चलकर न केवल अपने विरोधियों को बौना साबित कराया बल्कि दिल्ली दरबार को भी अपना मुरीद बना डाला।
धामी को उपचुनाव लड़ाने के लिए 22 सीटों से ऑफर आए थे जिसमें प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक की हरिद्वार सीट भी शामिल है। कौशिक धामी को कम्फर्टेब्ल जीत दिलाकर खुद राज्यसभा का रास्ता पकड़ना चाहते थे। ऐसे ही ऑफर कई और सीटों से भी थे जहां से सीएम के नाते धामी आसानी से जीत जाते लेकिन ‘गुरु’ भगतदा भविष्य की राजनीति के लिहाज से पुष्कर के लिए परमानेंट सीट का जुगाड़ करना चाहते थे।
यही वजह है कि पहाड़ी मिज़ाज वाली चंपावत सीट को चुना गया जहां से धामी अब भविष्य की चुनावी भी राजनीति करेंगे और कैलाश गहतोड़ी अपने गृह़ क्षेत्र लोहाघाट की तरफ लौट जाएँ तो आश्चर्य नहीं होगा। भुवन कापड़ी के लिए भी यह राहत की खबर हो सकती है कि खटीमा में अब शायद उन्हें धामी जैसे दिग्गज से दोबारा न लड़ना पड़े!
धामी की चंपावत में जीत सुनिश्चित करने के लिए भगतदा के इशारे पर ही आईएएस नरेंद्र सिंह भंडारी को डीएम बनाकर भेजा गया तथा कैलाश गहतोड़ी के साथ अपने विश्वस्त शिष्य और मंत्री चंदन राम दास की डयूटी लगाई गई। विधायक सुरेश गढ़िया भी चंपावत उपचुनाव को लेकर डटे हैं और कुमाऊं की सारी ‘टीम कोश्यारी’ चंपावत में कैंप कर रही ताकि धामी की निर्विघ्न जीत सुनिश्चित हो सके। भगतदा रेगुलर टच में रहकर पूरी सियासी पिक्चर पर नजर बनाए हुए हैं ताकि पार्टी के कुछ विघ्नसंतोषी खटीमा का खेल न दोहरा सकें।
पहाड़ प्रदेश में भाजपा की बिग पिक्चर पर नजर दौड़ाएँ तो आज खंडूरी-निशंक कैंप कहीं एग्जिस्ट नहीं करते नजर आते हैं। अलबत्ता एक जमाने में भगतदा के सियासी शिष्य रहे पूर्व सीएम टीएसआर ही हैं जो सीएम धामी के लिए किसी न किसी रूप में चुनौती पेश कर भगतदा की राजनीति को चैलेंज करते दिखते हैं।
दूसरे चेहरे अनिल बलूनी भी हैं जो भविष्य की भाजपाई राजनीति में टीम कोश्यारी का रास्ता काट सकते हैं लेकिन बलूनी मौजूदा दौर में इस सियासी हैसियत में नहीं कि वे भगतदा के शिष्य धामी के लिए खतरा बनें।
जाहिर है खिचड़ी वाले बाबा खुद भले चंद महीनों के लिए ही सत्ता के शिखर पर रहे हों लेकिन टीएसआर से लेकर केन्द्रीय रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तक भगतदा की अंगुली पकड़कर ही सियासत के चमकते सितारे बन पाए हैं।