अग्रवाल को धामी बचा रहे या बीजेपी, सिंघल को किए की सजा देने के लिए स्पीकर ऋतु खंडूरी ने कर ली है ये बड़ी तैयारी

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Uttarakhand Assembly Backdoor Recruitment Scam, CM Dhami Cabinet colleague Minister Premchand Agarwal is safe, but now his favourite suspended secretary Mukesh Singhal is on Speaker’s radar: उत्तराखंड विधानसभा में बैकडोर भर्तियों के नाम पर चलते आए भ्रष्टाचार पर स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण ने जो एक्शन लिया है, अब उसके अगले पड़ाव में कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के स्पीकर रहते बार बार विशेषाधिकार के दुरुपयोग से एक के बाद प्रमोशन पाकर विधानसभा सचिव बन बैठे मुकेश सिंघल की बारी है।

हालांकि, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कैबिनेट प्रेमचंद को इस्तीफा देने से बचा रहे हैं या फिर दिल्ली दरबार में अग्रवाल का रसूख इतना है कि भले स्पीकर रहते बैकडोर भर्ती भ्रष्टाचार की कालिख अपनी सियासी कमीज पर पुतवाने के बावजूद वे मंत्री पद बचाने में सफल रहे हैं। वजह जो भी हो लेकिन स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण ने अग्रवाल के करीबी निलंबित विधानसभा सचिव को उनकी असल जगह दिखाने की ठान ली है।

स्पीकर ऋतु खंडूरी एक तो विधानसभा में सचिव की नियुक्ति के मनमाने नियमों को तिलांजलि देकर हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर कड़े नियम बनवा रही हैं ताकि भविष्य में कोई स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल की तरह किसी करीबी को विशेषाधिकार के नाम पर मनमाने प्रमोशन ही ना दे सके। माना जा रहा है कि नई नियमावली बनने के बाद अगले साल मार्च तक विधानसभा को विधायी नियमों के जानकार के तौर पर नया सचिव मिल जाएगा। इसी के साथ निलंबित विधानसभा सचिव मुकेश सिंघल से कारण बताओ नोटिस दिया गया है। जवाब आने के बाद उनका डिमोशन कर उनको वास्तविक पद पर बिठाया जा सकता है।

जाहिर है स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण बैकडोर भर्तियों और स्पीकर के विशेषाधिकार के बहाने एक के बाद के प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा लुटाई गई मेहरबानियों का नियमसम्मत हिसाब लेने को दृढ़ संकल्पित दिख रही हैं और हर कानूनी पहलू से अपने फैसले की बुनियाद मजबूत दिखाने को प्रयासरत हैं। लेकिन इसके बावजूद विधानसभा में चले बैकडोर भर्तियों और सचिव के प्रमोशन के खेल और उस पर अब जाकर हो रहे एक्शन के बावजूद कई सवाल हैं जिनका जवाब स्पीकर,सीएम धामी, मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल से लेकर गोविंद सिंह कुंजवाल और कांग्रेस-बीजेपी को खोजना होगा।

उत्तराखंड विधानसभा में चले बैकडोर भर्ती भ्रष्टाचार के खिलाफ स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण के अभूतपूर्व एक्शन ने प्रदेश में नई बहस छेड़ रखी है कि क्या दोष सिर्फ अवैध नौकरी पाने वालों का ही था या फिर अवैध रूप से नौकरी बांटने वाले भी बराबर के दोषी हैं? अब तो स्पीकर रहते हरीश रावत सरकार में महज “अर्जी पर मर्जी” से बंपर बैकडोर भर्तियां करने वाले गोविंद सिंह कुंजवाल भी जनता से माफी मांग कह रहे कि अगर मैं दोषी तो जेल जाने को तैयार हूं।

जाहिर है कुंजवाल की तर्ज पर ही सही कम से कम धामी सरकार में वित्त और शहरी विकास से लेकर संसदीय कार्य मंत्री जैसे भारी भरकम विभाग संभाल रहे प्रेमचंद अग्रवाल को भी आगे आकर सफाई पेश करनी चाहिए। न केवल कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को यह बताना चाहिए कि हाई कोर्ट की डबल बेंच से लेकर सुप्रीम कोर्ट की डबल तक जिन बैकडोर भर्तियों को अवैध करार दिया जा रहा और स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण के फैसले पर मुहर लगाई जा रही, उसके बाद भी वे राजनीतिक नैतिकता के किस तराजू के आधार पर खुद को पाक साफ मान कर इस्तीफा देने से बच रहे हैं?

साथ ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भी इस सवाल का जवाब साफ साफ देना चाहिए कि आखिर जिस सदन की स्पीकर ने प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा की गई बैकडोर भर्तियों को अवैध और भ्रष्टाचार पूर्ण करार देकर निरस्त कर डाला और वे खुद स्पीकर के कड़े फैसले का क्रेडिट लेने से नहीं चूक रहे हैं और उनके फैसले को आज की तारीख में सुप्रीम कोर्ट तक का संरक्षण मिल चुका, तब प्रेमचंद अग्रवाल को कैबिनेट में बगलगीर बनाकर वे अपनी साख पर बट्टा लगवाने का जोखिम क्यों उठा रहे?

क्या मुख्यमंत्री को खुद पहल कर मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को राजनीतिक नैतिकता और शुचिता का पाठ पढ़ाते हुए जब तक इस मामले में अंतिम कानूनी विकल्प न आजमा लिए जाएं तब तक इस्तीफा देकर घर बैठे को नहीं कह देना चाहिए? आखिर आज की तारीख तक तो स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण का फैसला ही सत्य है और न्याय के तराजू में भारी भी पड़ रहा। फिर सीएम धामी और मंत्री अग्रवाल क्यों इस आलोचना का सामना करें! अगर सुप्रीम कोर्ट में अंतिम लड़ाई बर्खास्त कर्मचारी जीत जाते हैं तो राजनीतिक नैतिकता के लिहाज से स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण के लिए उसी सदन में उस पद पर बने रहना कठिन होगा लेकिन आज तो बॉल सीएम धामी और मंत्री अग्रवाल के पाले में है।

फिर स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण को भी तो उस सवाल का जवाब देना होगा कि उन्होंने सिर्फ 2016 के बाद 2021 तक हुई नियुक्तियों पर ही क्यों एक्शन लिया, पहले वाली बैकडोर भर्तियों को क्यों नहीं छुआ? आखिर गोविंद सिंह कुंजवाल ने भी तो यही तर्क रख दिया है कि जब स्पीकर ऋतु खंडूरी द्वारा बनाई एक्सपर्ट कमेटी ने राज्य गठन के बाद विधानसभा में हुई सभी नियुक्तियों को गलत ठहराया है तब एक्शन आधा अधूरा क्यों? जाहिर है स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण को अपने सामने खड़े इस बड़े सवाल से जूझना होगा और आगे अगर सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर अन्य बर्खास्त कर्मचारी जाते हैं तो यह सवाल कानूनी बहस के दौरान बिलकुल उठ सकता है।

जवाब कांग्रेस को प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे की मांग के साथ साथ कुंजवाल पर एक्शन लेकर भी देना होगा। आखिर जब कुंजवाल का स्पीकर रहते किया गया कृत्य आज कटघरे में खड़ा है तब उनके बचाव का मामूली प्रयास भी क्यों किया जाए बल्कि उनको पार्टी से बाहर कर धामी सरकार से कानूनी एक्शन की मांग क्यों न की जाए?


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