देहरादून/लखनऊ: इस साल नौ मार्च को अचानक सत्ता गँवा बैठे पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत उसके बाद से लगातार अपने राजनीतिक विरोधियों को छकाते नजर आ रहे हैं। अचानक बने सियासी समीकरणों के चलते जिस तेजी के साथ टीएसआर के हाथों से सत्ता की डोर छिन गई थी उससे यह भी लगने लगा था कि शायद अब त्रिवेंद्र रावत को लंबे समय के लिए अज्ञातवास की तरफ बढ़ना होगा। लेकिन हुआ ठीक इसके उलट!
टीएसआर मुख्यमंत्री पद गँवाने के बाद ज्यादा सक्रिय नजर आ रहे और दिल्ली से लेकर उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से पहले जिलों में पहुंचकर अपनी इसी सक्रियता का मैसेज भी दे रहे हैं। पिछले दिनों दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह से लेकर तमाम केन्द्रीय नेताओं से मिल चुके पूर्व सीएम टीएसआर ने सोमवार को लखनऊ पहुंचकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की है। यूपी पहुंचकर योगी आदित्यनाथ के साथ पूर्व सीएम त्रिवेंद्र की मुलाकात कोई सामान्य शिष्टाचार मुलाकात नहीं है।
पॉवर कॉरिडोर्स में इस मुलाकात के गहरे राजनीतिक निहितार्थ खोजे जा रहे हैं क्योंकि मार्च में उत्तराखंड में हुए नेतृत्व परिवर्तन के बाद टीएसआर की योगी के साथ यह पहली मुलाकात है। यह मुलाकात ऐसे समय हुई है जब यूपी में बाइस बैटल फतह करने को बीजेपी इलेक्शन की कमान तेजी के साथ गृहमंत्री अमित शाह के हाथों मे पहुंच रही है। बीजेपी कॉरिडोर्स में यह चर्चा पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद से ही जोर पकड़ने लगी थी कि पीएम नरेंद्र मोदी मिशन यूपी को लेकर फिर से अमित शाह के रणनीतिक कौशल की आजमाइश का मन बना चुके हैं। यूपी में 2014, 2017 और 2019 की तीनों चुनावी बैटल अमित शाह के रणनीतिक कौशल और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व का परिणाम मानी जाती हैं।
ऐसे में बाइस बैटल में भी शाह की यूपी में बड़ी भूमिका देखी जा रही है। 2014 में अमित शाह के साथ यूपी के सह-प्रभारी रहे त्रिवेंद्र रावत की लखनऊ यात्रा और योगी से मुलाकात को इस लिहाज से भी अहम माना जा रहा कि छह माह पहले कुर्सी गँवा चुके टीएसआर को संगठन में बड़ी ज़िम्मेदारी की चर्चा पिछले दो-तीन महीनों से रह-रहकर उठ रही है।
सवाल है कि क्या योगी आदित्यनाथ के साथ अच्छे संबंध रखने वाले त्रिवेंद्र रावत को यूपी में अहम चुनावी ज़िम्मेदारी देकर दिल्ली और लखनऊ में बेहतर कॉर्डिनेशन बनाने की योजना है। यह भी कि क्या त्रिवेंद्र के ज़रिए अमित शाह यूपी में चुनावी चक्रव्यूह रचना की अपनायी बिसात बिछा रहे हैं। 2014 में यूपी की ज़िम्मेदारी के समय से ही त्रिवेंद्र सिंह रावत के अमित शाह के साथ अच्छे रिश्ते माने जाते हैं और गृह मंत्रालय की अहम ज़िम्मेदारी संभाल रहे शाह टीएसआर के ज़रिए यूपी के जमीनी सियासी हालात पर नजर बनाए रख सकते हैं। जाहिर है टीएसआर की बढ़ती चहल-कदमी कई तरह के बनते-बिगड़ते राजनीतिक संकेतों की तस्वीर पेश कर रही है।