JAB शाह, नड्डा & CM मेट: आधी रात के बाद आधे घंटे से लंबी चली मुलाकात का क्या है पूरा सियासी सच? गंगोत्री से हार का अंदरूनी फीडबैक सता रहा या दिल्ली के दिमाग में चल रहा कोई और ही गेमप्लान!

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दिल्ली/देहरादून: यूँ सियासी दलों में देर रात्रि की मुलाक़ातें-बैठकें कोई अजीब बात नहीं, कांग्रेस में तो पुरानी परिपाटी रही कि टिकट वितरण से लेकर तमाम अहम फैसलों की बैठकें देर रात्रि से तड़के तक भी होती रही हैं। जबकि बीजेपी में बैठकें अकसर समय से निपटा जाया करती रही हैं, लेकिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के साथ ऐसा नहीं हो पाया।

तीरथ सिंह रावत बुधवार को दोपहर होने से पहले ही दिल्ली लैंड कर चुके थे और टीम तीरथ को उम्मीद थी कि दोपहर दो बजे तक उनकी मुलाकात पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से हो जाएगी। फिर पता चला नागालैंड से सीएम और कुछ और नेता बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलने पहुँचे हैं लिहाजा सीएम तीरथ को वेट करना होगा। लेकिन वेटिंग पीरियड इतना लंबा खिंच जाएगा कि सीएम की मुलाकात आधी रात्रि तक भी न हो पाएगी, ऐसा कहां किसी ने सोचा था। पर मुलाकात रात्रि 12:30 बजे के आसपास हुई और जेपी नड्डा नहीं बल्कि गृहमंत्री अमित शाह के आवास पर हुई जहां पार्टी अध्यक्ष भी पहले से पहुँचे हुए थे।

टीम तीरथ का दावा है कि मुलाकात में सीएम तीरथ सिंह रावत के उपचुनाव को लेकर फंसे पेंच पर बात हुई है और जल्द पार्टी के स्तर पर भी और अधिकारियों के माध्यम से भी चुनाव आयोग से सरकार के समक्ष पैदा होने वाले भविष्य के संवैधानिक संकट का हवाला देकर जल्द से जल्द उपचुनाव कराने की दरख्वात की जाएगी। लेकिन जिस तरह से मुख्यमंत्री को आनन-फ़ानन में दिल्ली तलब किया गया और फिर मुलाकात के लिए 11-12 घंटे इंतजार कराया गया उससे अटकलबाज़ी को नए सिरे से खाद-पानी खुद बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने दे दिया है।


राजनीतिक गलियारे में मौजूदा हालात और पूर्व सीएम त्रिवेंद्र को हटाए जाने के समय की परिस्थितियों को जोड़कर भी देखा जा रहा है। कुछ राजनीतिक पंडितों का तर्क है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत भी कुर्सी बचाने को आखिरी दांव खेलने दिल्ली जरूर पहुँचे थे लेकिन खूब इंतजार के बाद हुई आलाकमान से मुलाकात में निराशा ही हाथ लगी थी। हालाँकि इस थ्योरी के निष्कर्ष पर पहुंचना अभी जल्दबाज़ी होगी क्योंकि जुलाई महीने के अगले कुछ ही दिनों में उपचुनाव को लेकर तस्वीर साफ हो सकती है।

दरअसल, पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व का रुख रहा है उसने खुद अटकलबाज़ी और राजनीतिक अस्थिरता के माहौल को निर्मित करने का काम किया है। पार्टी का प्रदेश नेतृत्व पिछले दो महीने से दम भर रहा कि छह विधायक सीट छोड़ने को तैयार हैं और गंगोत्री दौरे पर गए सीएम तीरथ को तमाम स्थानीय पदाधिकारियों ने उपचुनाव लड़ने का सुझाव भी दे दिया था लेकिन इस सबके बावजूद केन्द्रीय नेतृत्व की तरफ से पत्ते नहीं खोले गए। यहां तक कि राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष प्रदेश के दो दौरे कर चुके और प्रदेश प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम भी कई बार प्रदेश आ चुके हैं और अनेक बार नेताओं से वर्चुअल संवाद भी हो चुका।

यहाँ कि पिछले दिनों कोर ग्रुप बैठक में सीएम की सीट को लेकर भी मंथन की बात निकलकर आई लेकिन फैसला अभी तक नहीं हो पाया। खुद मुख्यमंत्री तीरथ के तीन दिल्ली दौरे हो चुके हैं। यहाँ तक कि चुनाव आयोग के कानूनी जानकारों से लेकर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई क़ुरैशी कह चुके हैं कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 151(क) के तहत साल भर से वक्त कम रहने के बावजूद भी मुख्यमंत्री के उपचुनाव को लेकर कोई संकट नहीं है। राज्य सरकार को संवैधानिक संकट से बचाने के लिए चुनाव आयोग गिरिधर गमांग से लेकर पहले भी कई उपचुनाव करा चुका है और आगे भी करा सकता है।


अब बीजेपी कॉरिडोर्स में एक चर्चा ये भी है कि गंगोत्री पर पार्टी ने मन बनाया था लेकिन इंटरनल सर्वे में सीएम तीरथ की जीत सुनिश्चित न होते देख पार्टी वहाँ से उपचुनाव को लेकर पीछे हट रही है और बुधवार आधी रात की मुलाकात में पौड़ी जिले की अन्य महफ़ूज़ सीट को लेकर भी मंथन हुआ है। दरअसल जिस तरह से कांग्रेस के पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण एक्टिव हुए हैं और पहले जहां बीजेपी AAP नेता कर्नल अजय कोठियाल से अंदरखाने नुकसान पहुँचने की आशंका से घबराई हुई थी, वहीं आज AAP खुलकर मुख्यमंत्री के खिलाफ कर्नल अजय कोठियाल को लड़ाने का ऐलान कर चुकी है, यानी गंगोत्री में घिरने का खतरा बढ़ता देखकर भी पार्टी निर्णय नहीं ले पा रही है।

फिर भी बीजेपी का राष्ट्रीय नेतृत्व पत्ते नहीं खोल रहा जिसके चलते कुछ जानकार पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उपचुनाव के फंसे होने को भी एक वजह के तौर पर देख रहे हैं। हालांकि ममता बनर्जी के पास पूरे पांच साल हैं और वहाँ मुख्यमंत्री को 5 नवंबर से पहले विधानसभा सदस्यता लेनी है जबकि तीरथ के पास 9 सितंबर तक का ही वक्त है।

अब अंदरूनी तौर पर बीजेपी का राष्ट्रीय नेतृत्व उत्तराखंड को लेकर क्या सोच रहा है इसकी पूरी भनक तो प्रदेश नेताओं को भी नहीं है। लेकिन जिस तरह से ये दावे किए जा रहे कि अक्तूबर से ही राष्ट्रीय नेता जिनमें पीएम मोदी, गृहमंत्री शाह और अध्यक्ष नड्डा शामिल हैं, प्रदेश में दौरे लगाने शुरू कर देंगे इसमें भी राजनीतिक अस्थिरता के संकट की आहट देखी जा सकती है। आखिर यूपी से पहले उत्तराखंड को लेकर बड़े कार्यक्रमों का हल्ला इशारा करता है कि पहाड़ पॉलिटिक्स को लेकर बीजेपी के भीतर बहुत कुछ उमड़-घुमड़ रहा है जो फिलहाल सतह पर दिख नहीं रहा है।


कई तरह के सवाल और क़यासबाजी फिर जोर पकड़ने लगी है। पहला सवाल तो यही कि क्या बंगाल में ममता बनर्जी के साथ खिंची सियासी जंग के बीच बीजेपी उत्तराखंड में नौ सितंबर के बाद नए मुख्यमंत्री या राष्ट्रपति शासन के विकल्पों पर भी विचार करके बैठी है? कयासबाजी को बल इसलिए भी ज्यादा मिल रहा क्योंकि बीजेपी का राष्ट्रीय नेतृत्व जिस तरह से उत्तराखंड को लेकर खासतौर पर सीएम तीरथ रावत के उपचुनाव को लेकर रुख अपनाए है, उससे तीरथ के लिए कोई अच्छा मैसेज नहीं निकलता दिख रहा। अब आधी रात की इस मीटिंग का पूरा सच अगले चंद दिनों में उजागर हो ही जाएगा क्योंकि अगर उपचुनाव होना है तो इसी महीने यानी जुलाई में रणभेरी बज जाएगी। फिलहाल ये दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ है कि तीरथ का दिल्ली दौरा सियासी अटकलबाजी थामने की बजाय और बढ़ा गया है।


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