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अड्डा In-Depth 22 बैटल की सियासी बिसात सबको धर्म से ही आस: बीजेपी जय श्रीराम, केजरीवाल के ‘भोले के फौजी’ और अब हरदा का ‘जय श्रीगणेश’

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देहरादून: देवभूमि में 2022 में भले सियासी दंगल होना हो लेकिन राजनीतिक दल बखूबी जानते हैं कि पहाड़ की पॉलिटिकल पिच पर बल्लेबाज़ी के लिए धर्म का तड़का जरूरी है। खासतौर पर जब केन्द्र से लेकर यूपी और उत्तराखंड की सत्ता पर क़ाबिज़ बीजेपी राममंदिर के बहाने सियासी बढ़त का दांव खेल रही तब विपक्षी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भला कहां पीछे छूटने वाली ठहरी! लिहाजा सत्ताधारी बीजेपी के हिन्दुत्व की काट अपने-अपने तरीके से अरविंद केजरीवाल और हरीश रावत करने में जुट गए हैं।
पहले बात AAP और दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल की कर लेते हैं। 17 अगस्त को देहरादून दौरे में केजरीवाल ने बीजेपी के हिन्दुत्व की काट में उत्तराखंड को विश्वभर के हिन्दुओं की ‘आध्यात्मिक राजधानी’ बनाने का ऐलान कर गए। केजरीवाल अपने मुख्यमंत्री चेहरे कर्नल अजय कोठियाल (जो केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्यों के लिए जाने जाते हैं) को ‘भोले के फौजी’ संबोधन के ज़रिए भी हिन्दू वोटरों को अपनी और लुभाने का दांव चल रहे हैं। आप के कैंपेन में कर्नल को ‘भोले के फौजी’ के तौर पर ही जमकर प्रचारित किया जा रहा है।

अब बात कांग्रेस और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की करते हैं। कांग्रेस 3 सितंबर को खटीमा से ‘परिवर्तन यात्रा’ का आगाज कर रही है और कांग्रेस के कैंपेन कमांडर हरीश रावत ने इसे लेकर प्रेस वार्ता बुलाई तो बाक़ायदा ‘जय श्रीगणेश’ के उद्घोष के साथ इसका आगाज किया। हरदा अपने प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के बहाने भी मैसेज देने की कोशिश करते हैं।
बीजेपी के हिन्दुत्व कार्ड का जवाब देते हरदा ने कहा है कि बीजेपी ने तो हिन्दुत्व का तत्व यानी हिन्दुत्व का जूस निकाल लिया है अपने राजनीतिक फ़ायदे के लिए जबकि कांग्रेस हिन्दू की रक्षा करती है और सनातन धर्म के ‘सर्वधर्म समभाव’ सिद्धांत को मानती है जबकि बीजेपी का मूलमंत्र ही ‘सर्वधर्म झगड़ा भाव’। हरदा ने केजरीवाल के उत्तराखंड को हिन्दुओं का आध्यात्मिक राजधानी बनाने के बयान पर हल्लाबोल करते कहा कि उत्तराखंड तो पहले से ही देवभूमि है और यहां सबकुछ समाहित है।

जाहिर है चाहे हरीश रावत हों या अरविंद केजरीवाल, दोनों नेता और उनकी पार्टियां देवभूमि दंगल में बीजेपी को जय श्रीराम और राममंदिर के बहाने बढ़त लेने का मौका नहीं देना चाहते हैं। लेकिन सवाल यही है कि क्या यह बीजेपी की पिच पर जाकर उसे ललकारना नहीं होगा? जिन मुद्दों को उठाकर हरीश रावत और अरविंद केजरीवाल खुद को बाक़ियों से बड़ा हिन्दू हितैषी साबित करने पर तुले उस खेल की तो बीजेपी पुरानी चैंपियन ठहरी! या फिर हरदा और केजरीवाल चुनावी जंग से पहले ही बीजेपी के हिन्दुत्व कार्ड की हवा निकालने की रणनीति के तहत इस मुद्दे को हवा दे रहे, ताकि यहां सत्ताधारी दल विपक्षियों के ख़िलाफ़ अपना एजेंडा आगे न बढ़ा पाए!

वजह जो भी हो लेकिन क्या पांच साल राज्य की सत्ता में रहे दल की घेराबंदी के लिए रोजगार, भ्रष्टाचार, भू-क़ानून, लोकायुक्त, बार-बार नेतृत्व परिवर्तन कर राजनीतिक अस्थिरता और विकास के रास्ते पर डबल इंजन की रेस कैसी रही 57 विधायकों ने अपने क्षेत्र में जनता का कितना काम किया जैसे सवालों का जवाब मांग लेना ही पर्याप्त नहीं होगा!

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