BJP Leadership frowns over TSR 1 & TSR 2 remarks! गढ़वाल से बीजेपी सांसद तीरथ सिंह रावत के उत्तराखंड में बिना कमीशन कोई काम न होने के बयान और त्रिवेंद्र सिंह रावत के स्मार्ट सिटी के कार्यों के बहाने धामी सरकार पर उठाए गए सवालों ने विपक्षी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को तो हमलावार होने का अवसर दे ही दिया, पूर्व मुख्यमंत्रियों के अपनी ही सरकार की तरफ आरोपों की तोप का मुंह करने से बीजेपी का प्रदेश नेतृत्व असहज और राष्ट्रीय नेतृत्व खफा हो गया है। यह महज संयोग नहीं बल्कि राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि दोनों नेताओं के अपनी ही पार्टी की सरकार को असहज करने वाले बयानों का संज्ञान लेकर शीर्ष नेतृत्व ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट को दिल्ली बुला लिया।
बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने भी दोनों पूर्व मुख्यममंत्रियों के ताबड़तोड़ एक के बाद दूसरे के बयानों को गंभीरता से लिया है और प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट का उनसे जाकर मिलना बताता है कि शीर्ष नेतृत्व ने इस बयानों को ‘गुड सेंस’ में कतई नहीं लिया है। भट्ट ने प्रदेश प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम से भी मुलाकात की। मुलाकात के बाद महेंद्र भट्ट ने स्वीकार किया है कि उनकी केंद्रीय नेताओं से मुलाकात में दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के हाल में आए बयानों को लेकर बातचीत हुई है।
पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता ने अंग्रेजी दैनिक द हिंदू को बताया कि केंद्रीय नेतृत्व इस बात से खफा है कि पार्टी के दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों को अगर राज्य की धामी सरकार के कामकाज को लेकर कुछ बात रखनी ही थी तो फिर उसके लिए पार्टी फोरम यानी पार्टी नेतृत्व या बाकी उचित मंचों पर उठाने की बजाय मीडिया में लगातार बयानबाजी क्यों की। नेस्तुला हेब्बर की रिपोर्ट के मुताबिक “Whatever concerns they may have over thr Dhami Government should be discussed on forums provided by the party rather than give out public statements,” पार्टी के एक सीनियर नेता ने यह जानकारी देते हुए कहा।
दरअसल, तीरथ के कमीशनखोरी बयान और त्रिवेंद्र के उनके कार्यकाल में स्मार्ट सिटी 9वें स्थान पर और बुरा हाल संबंधी बयान के बहाने भले दोनों नेताओं ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अप्रत्यक्ष रूप से निशाने पर लेना चाहा हो लेकिन इस बयानबाजी ने पूरी पार्टी कर लिए ही असहज स्थिति पैदा कर डाली।
कांग्रेस ने तुरंत पूर्व मुख्यमंत्रियों के बयान लपक लिए और पूर्व सीएम हरीश रावत ने झट तीरथ त्रिवेंद्र के साथ साथ बीजेपी को आइना दिखाते हुए कहा कि जब उनकी सरकार (कांग्रेस) लोकायुक्त पर सारा होमवर्क कर गई थी तब दोनों त्रिवेंद्र और तीरथ मुख्यमंत्री रहते इस पर चुप्पी साधे रहे वरना आज भ्रष्टाचार को लेकर रोना नहीं रोना पड़ता और लोकायुक्त के यहां शिकायत करते तो एक्शन होता।
राजनीतिक जानकर इस सारी बयानबाजी को लेकर दोनों नेताओं की अगले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पोजिशनिंग से जोड़कर देख रहे हैं। तीरथ सिंह रावत सांसद रहते क्या छाप छोड़ पाए इसका आकलन तो चौबीस में होगा लेकिन ठीक चुनाव से पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत को अचानक हटाकर मुख्यमंत्री बनाए गए तीरथ सिंह रावत को जिस तरह से मात्र 115 दिन बाद हटाया, उसका मैसेज साथ है कि दिल्ली उनसे बहुत खुश नहीं है। ऐसे में 2024 में लोकसभा टिकट को लेकर उनका चिंतित होना स्वाभाविक है।
त्रिवेंद्र सिंह रावत के सामने चुनौती राजनीतिक रिवाइवल की है। पिछले साल मार्च में मुख्यमंत्री की कुर्सी से बेदखल करने के बाद से उनको संगठन ने कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी इसकी चर्चा खूब होती रही, लेकिन हकीकत यह है कि उनको अभी तक कुछ मिल नहीं पाया है।
जबकि त्रिपुरा के मुख्यमंत्री पद से हटाए गए बिप्लब कुमार देव को हरियाणा का प्रभारी बनाने से लेकर राज्यसभा भेजकर मोदी शाह मैसेज दे चुके कि उनके लिए अब ‘ऑल इज वेल’ है। लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत को राज्यसभा जाने का मौका भी नहीं मिल पाया जबकि राज्य से एक सीट पर चुनाव हुआ और उसमें किसी बाहरी दिग्गज नेता की बजाय हरिद्वार से पार्टी की महिला नेता कल्पना सैनी को तवज्जो दी गई।
इतना ही नहीं कई और ऐसे ही नेताओं का राजनीतिक वनवास खत्म करते हुए मोदी शाह ने अहम संगठन की जिम्मेदारियां दे दी हैं। ऐसा नहीं है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ऑप्शन नहीं पेश कर पा रहे हैं। कुछ दिनों तक उनकी चहलकदमी हरिद्वार लोकसभा सीट को लेकर नजर आई, जहां उनको सांसद डॉ रमेश पोखरियाल निशंक को चित कर टिकट पाना होगा।
दूसरे दावेदार उन्हीं के करीबी पूर्व मंत्री और वरिष्ठ विधायक मदन कौशिक भी हैं जो 2009 से लगातार टिकट पाते पाते चूक जा रहे हैं। ये पहली बार है जब कौशिक को बीजेपी सरकार के बावजूद कोई जिम्मेदारी नहीं मिल पाई है और इस तरह हरिद्वार जिला कैबिनेट में जगह को तरस रहा। लिहाजा कौशिक भी चौबीस ने मोदी के सिपाही बनकर संसद पहुंचने के अरमान लिए हैं।
शायद हरिद्वार में इसी कड़े मुकाबले को देख बाद में त्रिवेंद्र का फोकस पौड़ी गढ़वाल सीट पर हुआ। पीएम मोदी से मुलाकात के बाद उनके सीधे पहाड़ चढ़ना इसकी ओर इशारा भी कर गया था लेकिन फिर एक के बाद एक आए अपनी ही पार्टी की सरकार को असहज करने वाले बयान संकेत देते हैं कि अभी दाल पौड़ी सीट को लेकर भी गल नहीं पा रही है!
यही वजह है कि स्मार्ट सिटी से लेकर यूपी और उत्तराखंड में काम कराने को लेकर कमीशनखोरी को लेकर अब अचानक बयान आना ‘विद इन द पार्टी’ अंतर्द्वंद्व की तस्वीर दिखाता है। शायद यही वजह है कि बीएल संतोष को संज्ञान लेना पड़ा है और महेंद्र भट्ट को दिल्ली दौड़ना पड़ा है।