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चम्पावत में जमानत ज़ब्त करा संभलने को तैयार नहीं कांग्रेसी, सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगा शर्मनाक शिकस्त पर निकाल रहे खीज, माहरा-आर्य-यादव तिकड़ी पर बुरी गत के बाद क्यों न हो एक्शन? 

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ADDA ANALYSIS (@pawan lalchand): चम्पावत उपचुनाव को लेकर शुरू से हर कोई यह मान रहा था कि यहां कांग्रेस भाजपा उम्मीदवार मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को हरा नहीं पाएगी  लेकिन पार्टी फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में मिले 27 हज़ार 243 वोटों में भाजपा को ज्यादा सेंधमारी नहीं लगाने देगी। हुआ ठीक इसके उलट। धामी की सूनामी चम्पावत में ऐसी चली कि कांग्रेस के 24 हज़ार वोट एक झटके में हवा में उड़ गए और वह 3233 वोटों पर सिमटकर जमानत ज़ब्त करा बैठी। सवाल है कि चम्पावत में पहली पहली बार जमानत ज़ब्त कराकर रसातल पर पहुंची कांग्रेस की इस बुरी गत के जिम्मेदार कौन कौन हैं? 

क्या इस हार का ठीकरा विद्यानसभा चुनाव के बाद हुए पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन के फलस्वरूप प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे करन माहरा और नेता विपक्ष यशपाल आर्य के सिर नहीं फोड़ा जाना चाहिए? क्या विधानसभा चुनाव की हार के बाद जब अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बदले गए तब भी प्रदेश प्रभारी की कुर्सी कब्जाए बैठे देवेंद्र यादव को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए। केजरीवाल दौर में दिल्ली में लगातार दो चुनाव हार चुके यादव ने राहुल गांधी से नजदीकी के नाम पर क्या उत्तराखंड में कांग्रेस की जड़ों में तबियत से मट्ठा डालने का ठेका ले रखा है? 

ऐसा प्रभारी भला कैसे पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकता है जो न पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को पसंद रहे हैं और जिसे न अब प्रीतम सिंह फूटी आंख पसंद करते हैं। तो क्या कांग्रेस नेतृत्व ने उत्तराखंड को एडहॉक सियासी सिस्टम पर यादव के हवाले कर डाला है? जो प्रभारी नेताओं को एक मंच पर न इकट्ठा कर पा रहा हो वह उपचुनाव में मुख्यमंत्री से मुकाबले की क्या खाक रणनीति और व्यूहरचना बनाएगा? 

राजनीतिक लिहाज से छोटा राज्य होने के बावजूद जिस राज्य पर प्रधानमंत्री मोदी का सीधा ध्यान केंद्रित रहता हो और जहाँ आने का एक अवसर वे नहीं छोड़ते हैं उस राज्य में सोनिया-राहुल-प्रियंका चुनाव के एकाध दौरे के अलावा कब आते हैं, यह कोई पहेली या रहस्य नहीं है, सबको पता है। फिर कांग्रेस के प्रभारी भी महीने दो महीने में एकाध बार ऐसे आते हैं जैसे प्रदेश कांग्रेसियों पर कोई अहसान करने आये हों! बाकायदा प्रभारी का प्रोग्राम जारी होगा ताकि एयरपोर्ट पर उनके स्वागत सत्कार में नेताओं-कार्यकर्ताओं का एक हुजूम पहुंचे जिसके बाद प्रभारी की ‘शान की सवारी’ निकले। इसके मुकाबले सत्ताधारी दल भाजपा के प्रभारी कब आकर अपनी बैठकें और जिलों से फीडबैक ले जाते हैं किसी को न भनक लगती न फर्क पड़ता। 

आप कल्पना कर सकते हैं जब पता चले कि CM धामी यानी भाजपा को 58 हज़ार से ज्यादा और निर्मला गहतोड़ी यानी कांग्रेस को महज 3233 वोट मिल पाए। ज़ाहिर है अब तक के कांग्रेस इतिहास का यह सबसे कम स्कोर है। ऐसे में यशपाल आर्य से लेकर करन माहरा भले सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का रूटीन आरोप लगाकर इस शर्मनाक शिकस्त के ज़ख्म को सहलाना चाह रहे हों लेकिन असल स्थिति को जानकर मंथन कब करेंगे? अब भले निर्मला गहतोड़ी को दबाव में लेकर कहलवाया जा रहा हो कि अमर उजाला अखबार ने झूठी ख़बर छाप दी वरना सब प्रचार में आए थे और सबने पसीना बहाया। 

अगर सबने पसीना बहाया था तो फरवरी में मिले 27 हज़ार से अधिक वोटों में से 24 हज़ार वोट कहाँ चले गए? ठीक है उपचुनाव था और सत्ताधारी दल की तरफ से खुद मुख्यमंत्री उम्मीदवार थे लेकिन आपके तमाम नेता पसीना कहाँ बहा रहे थे जब आपके अपने सारे वोट शिफ्ट हो चुके थे? असल में तो कांग्रेस उसी दिन हार चुकी थी जब 20 साल से हार हो या जीत चम्पावत सीट कब्जाए बैठे हेमेश खर्कवाल उपचुनाव से भाग खड़े हुए थे। महिला सशक्तिकरण के नाम पर एक महिला नेता को बलि का बकरा बना दिया गया। निर्मला गहतोड़ी कैसे चुनाव लड़ेंगी न इसकी कोई व्यूहरचना बनी न ही नेताओं ने समय रहते प्रचार का मोर्चा संभाला। हरदा आखिर के हफ़्ते में पहुंचे, ऐसे ही माहरा अपना गढ़वाल दौरा करके पहुँचेम फिर नेता मंथन करने उदयपुर शिविर पहुंच गए। गहतोड़ी ने ‘अपनों से मिले धोखे’ को लेकर अपना दर्द काउंटिंग से एक दिन पहले अमर उजाला में बयां कर हकीकत बता दी थी। 

सवाल है कि क्या इसी गुटबाज़ी और माहरा-आर्य के कमजोर नेतृत्व और प्रभारी देवेंद्र यादव की अड़ियल अगुवाई में ही कांग्रेस पंचायत चुनाव से लेकर स्थानीय निकाय और फिर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ेगी?  

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The News Adda

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