BJP-JDU Alliance reaching to the dead end! मोदी सरकार द्वारा सेना में 4 साल के कॉन्ट्रैक्ट पर भर्ती को लेकर लांच की गई Agni path Scheme के विरोध में कई राज्यों में युवा सड़कों पर हैं जिसका सबसे ज्यादा असर बिहार में दिख रहा है। अब बिहार के सत्ताधारी गठबंधन पर भी अग्निपथ योजना की आंच आती दिख रही हैं। BJP और JDU के वरिष्ठ नेता एक दूसरे पर जुबानी अग्नि वर्षा कर ही रहे हैं, अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS के मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने भी नीतीश कुमार के सुशासन की पोल खोलना शुरू कर दिया है। सुशासन बाबू के सुशासन की धज्जियां उड़ाते बड़े आर्टिकल अब आरएसएस मुखपत्र में छप रहे हैं।
पिछले हफ्ते आरएसएस मुखपत्र कहलाने वाले ऑर्गनाइजर मैं नीतीश कुमार सरकार के सुशासन की पोलखोल करता तीखा आर्टिकल प्रकाशित हुआ। ऑर्गनाइजर के लेख में स्वास्थ्य, शिक्षा, लॉ एंड ऑर्डर और रोजगार जैसे तमाम मोर्चों पर पिछले 17 सालों के जवाब लेते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नाकाम करार देते हुए कटघरे में खड़ा किया गया। आरएसएस मुखपत्र में नीतीश सरकार के सुशासन को कुशासन बताने के लिए बाकायदा आंकड़ों का पूरा पुलिंदा पेश किया गया है।
ऑर्गनाइजर के लेख में नीतीश कुमार को बिहार के आर्थिक विकास, ढांचागत विकास और पलायन रोकने के मोर्चे पर भी विफल करार दिया है। इधर अग्निपथ योजना लांच होने के बाद JDU और BJP नेताओं में जुबानी अग्नि बरसना भी शुरू हो गई है। अग्निपथ योजना का विरोध कर रहे उग्र प्रदर्शनकारियों ने बिहार में भाजपा नेताओं पर भी हमला किया जिसके बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल ने बिहार पुलिस की कार्य प्रणाली पर ही सवाल खड़े कर दिये। जायसवाल ने सीधे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निशाने पर लेते कहा कि जब उपद्रवियों ने भाजपा नेताओं पर हमला बोला तो राज्य की पुलिस मुंह देखती रही। ज्ञात हो कि उपमुख्यमंत्री रेणु देवी और भाजपा अध्यक्ष जायसवाल के आवास पर भी हमला हुआ।
जब बिहार भाजपा अध्यक्ष जायसवाल ने नीतीश कुमार की पुलिस को निशाने पर लेकर मुख्यमंत्री पर हमला बोला तो पलटवार करने को जदयू अध्यक्ष ललन सिंह आगे आए। ललन सिंह ने जिस तल्खी के साथ पलटवार किया शायद उस लहजे में राजद भाजपा नेताओं में काम ही बाद वार पलटवार हुआ हो। जदयू अध्यक्ष ने कहा कि बिहार भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं।
दरअसल अग्निपथ योजना पहला मौका नहीं जब भाजपा और जदयू की राह और विचार जुदा दिखे हों। इतिहास दोबारा लिखने के गृहमंत्री अमित शाह के बयान के उलट नीतीश कुमार का बयान आ चुका है। जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर भी भाजपा और जदयू में खटास बढ़ी है। एन्टी कन्वर्जन लॉ को भी नीतीश कुमार बिहार में खारिज कर चुके हैं जबकि बिहार भाजपा नेता इसकी जब मौका मिलता है वकालत करते हैं और राज्य में ऐसे कानून की मांग करते हैं।
सवाल है कि क्या नीतीश कुमार अब भाजपा से दूर जाने का मन बना चुके हैं? क्या बिहार में फिर से राजद और जदयू के सियासी रिश्ते परवान चढ़ेंगे? क्या नीतीश कुमार राष्ट्रपति चुनाव से पहले पलटी मार प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री शाह की मुश्किलें बढ़ाएंगे? या फिर भाजपा और जदयू में पैदा होती खाई कोई नहीं सियासी सूरत लेकर आने वाली है? आने वाले दिनों में जो भी हो लेकिन आरएसएस मुखपत्र ने नीतीश सरकार के सुशासन की पोलखोल का मोर्चा खोल भविष्य की राजनीतिक तस्वीर दिखा दी है।