हक-हकूकधारी और देवस्थानम बोर्ड बदरीनाथ धाम में पूजा काल को लेकर आमने-सामने,बढ़ते विवाद पर तीरथ सरकारी की ख़ामोशी से उठे सवाल

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भगवान बदरी विशाल की मंदिर में अभिषेक पूजा को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। ताजा विवाद देवस्थानम बोर्ड द्वारा जारी किए गए एक प्रेस नोट से उपजा है जिसमें लिखा गया है कि आदि गुरु शंकराचार्य की शास्त्र सम्मत परंपरा का पालन किया जा रहा है। देवस्थानम बोर्ड श्री बदरीनाथ पूजा नियमावली 26 मार्च 1970 के अनुसार 1975 से पहले प्रातः 7:30 बजे खुलते थे पट। कहा गया है कि 1975 में श्री बदरीनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के समय यात्रियों के प्रातःकाल भगवान बदरी विशाल की निर्वाण दर्शन हों, इसलिए मंदिर खुलने का समय ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 4:30 बजे किया गया। देवस्थानम बोर्ड के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी बीडी सिंह एवं पूर्व धर्माधिकारी जगदंबा प्रसाद सती ने तथ्यों की पुष्टि की है।
प्रेस नोट में कहा गया है कि कोरोना महामारी के दौरान मंदिर को प्रातः 7:00 बजे से शाम 7:00 बजे खोलने की व्यवस्था की गई थी।
कठिन समय ,परिस्थिति, आपदा और महामारी में संपूर्ण देश के प्रतिष्ठित मंदिरों में दर्शन सामूहिक पूजा, भजन-कीर्तन, प्रसाद चढ़ाना, कपाट महीनों से बंद हैं।

देवस्थानम बोर्ड ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान बोर्ड द्वारा चारधाम यात्रा हेतु 3 मई को जारी मानक प्रचालक विधि यानी SOP के अनुसार श्री बदरीनाथ मंदिर के कपाट प्रातः 7:00 बजे खुलने शाम 7:00 बजे बंद होने के समय से शास्त्रीय नियम का उल्लंघन नहीं हुआ है बल्कि आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित धार्मिक नियम परंपरा के अनुसार ही पूजा-अर्चना का विधान लगातार चल रहा है।
श्री डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत में देवस्थानम बोर्ड के निर्णय का स्वागत किया है। कहा कि श्री बदरीनाथ मंदिर में व्यवस्थाएं सुचारू चल रही हैं। कहीं कुछ ऐसा नहीं है जिसमें परंपराएं टूट रही हो। बताया गया है कि दशकों पहले तत्कालीन समय में भारी बर्फबारी विकट परिस्थिति मौसम की अनुकूलता को देखते हुए मंदिर के कपाट प्रातः 7:30 बजे खोलते थे।
26 मार्च 1970 में जारी श्री बदरीनाथ पूजा नियमावली तथा उससे पहले भी धाम के कपाट खुलने का समय 7:30 बजे था ।

टिहरी महाराज के परामर्श के बाद श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति की बोर्ड बैठक में इस संबंध में सर्वसम्मति से प्रस्ताव भी पारित हुआ था। वर्ष 1975 में जब श्री बदरीनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था, तब यात्रियों की सुविधा के लिए मंदिर को ब्रह्म मुहूर्त में प्रातः 4:30 बजे खोलने का प्रस्ताव पास हुआ था जिसका तत्कालीन समय के रावल जी एवं धर्म अधिकारी द्वारा विरोध भी किया गया। लेकिन श्रद्धालुओं की अधिक संख्या, अनुकूल मौसम कम बर्फबारी को देखते हुए मंदिर प्रातः 7:30 बजे के बजाय प्रातः 4:30 बजे खोलना शुरू हुआ।
वर्तमान समय में कोरोना महामारी को देखते हुए मंदिर को खोलने का समय प्रातः 7:00 रखा गया जिसका तीर्थ पुरोहित समाज के कुछ सदस्यों ने विरोध किया तथा इसे धार्मिक मान्यताओं का विरोध बताया। देवस्थानम बोर्ड के सूत्रों ने बताया कि श्री बदरीनाथ मंदिर में प्रातःकालीन पूजा भगवान बदरी विशाल के महा विषयक एवं अभिषेक हेतु गाय के दूध की भी जरूरत होती है जिसे पंचगव्य बनाया जाता है उसकी उपलब्धता भी समय पर नहीं हो पा रही थी। मीडिया प्रभारी डॉ हरीश गौड़ ने बताया कि उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी बीडी सिंह, श्री बदरीनाथ धाम के पूर्व धर्माधिकारी जगदंबा प्रसाद सती, डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत ने धाम में से चल रही पूजा परंपराओं एवं पूजा के समय की पुष्टि की है। उन्होंने कहा है कि परंपराओं का कहीं उल्लंघन नहीं हुआ है। श्री डिमरी धार्मिक केंद्र पंचायत के अध्यक्ष पंकज डिमरी, सचिव राजेंद्र डिमरी, ज्योतिष डिमरी ,संयुक्त सचिव दिनेश डिमरी ,कोषाध्यक्ष नरेंद्र देव ने जारी बयान में कहा कि श्री बदरीनाथ धाम में पूजा समय पर हो रही हैं।


वर्तमान डिमरी पंचायत का क्या है तर्क


वहीं दूसरी तरफ केंद्रीय डिमरी पंचायत ने इस पूरे मामले का खंडन करते हुए कहा है कि देवस्थानम बोर्ड के कुछ अधिकारी इस विवाद से अपने आप को बचाना चाहते हैं। उन्होंने बदरीनाथ धाम के मंदिर में पूजा परंपराओं के साथ छेड़खानी की है। उन्होंने कहा कि अनावश्यक प्रेस नोट जारी करके अब अपने आप को बचाने का प्रयास किया जा रहा है। डिमरी पंचायत ने सरकार से मांग की है कि ऐसे अधिकारियों पर सख्त से सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए जो बद्रीनाथ धाम की परंपराओं के साथ छेड़खानी कर रहे हैं।
पंचायत के अध्यक्ष राकेश कुमार डिमरी और कार्यकारिणी अध्यक्ष विनोद डिमरी श्री राम ने कहा कि ऐसे अधिकारियों के ऊपर सख्त से सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
उन्होंने यहां तक कहा कि अगर तत्काल समय में परंपराओं के साथ बदलाव हुआ था तो क्यों नहीं उस समय के रावल, धर्माधिकारी, वेदपाठी ने परंपराओं को जीवित रखा।

1970 से लेकर 2020 तक क्यों इन परंपराओं पर चर्चा नहीं की गई। उन्होंने कहा कि जो परंपरा शंकराचार्य द्वारा बनाई गई है और ब्रह्म मुहूर्त में कपाट खोलने की परंपरा है, उससे छेड़खानी कर देवस्थानम बोर्ड के कुछ अधिकारी अपना बचाव कर रहे हैं। लेकिन उन्होंने कहा कि अगर इसी तरीके से देवस्थानम बोर्ड के उच्च अधिकारी मनमाना रवैया भगवान बदरी विशाल के कपाट खुलने से लेकर अभिषेक पूजन में करेंगे तो उनके खिलाफ पूरी डिमरी पंचायत विरोध करेगी। और सरकार से मांग करेगी कि ऐसे अधिकारियों पर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए।
रिपोर्ट: नितिन सेमवाल, पत्रकार, जोशीमठ


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