देहरादून/ नैनीताल: तीरथ सरकार हर दूसरे दिन हाईकोर्ट में जनहित के मुद्दों पर अपनी नाकामी के चलते फटकार खा रही है। कभी कुंभ एसओपी पालन में ढिलाई पर डांट तो कभी चारधाम यात्रा और बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर फजीहत! अब ऐसा लग रहा कि हाईकोर्ट में सच बोलने वाले अफसर भी सरकार-शासन को नागवार गुज़र रहे हैं। ताजा मामला इसी सच का खुलासा करता है। आज सुबह हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान रोडवेज एमडी आशीष कुमार चौहान पेश हुए और निगम को मुख्यमंत्री राहत कोष से मिलने वाले 20 करोड़ का सच बता दिया और उसके दो घंटे बाद उनको एमडी रोडवेज पद से हटा दिया गया।
हुआ यूँ कि पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने रोडवेज कर्मचारियों के फरवरी से जून तक के पेडिंग वेतन मामले में एमडी रोडवेज आशीष कुमार चौहान को वर्चुअली तलब किया था। शुक्रवार सुबह कोई 10:30-11 बजे के आसपास चीफ जस्टिस आरएस चौहान की बेंच में मामले की सुनवाई की गई। चीफ जस्टिस ने पिछली बार करीब एक महीने पहले तीरथ सरकार द्वारा परिवहन निगम को 20 करोड रु का सॉफ्ट लोन और 20 करोड़ रु मुख्यमंत्री राहत कोष से देने के वादे पर सवाल पूछा। इस पर एमडी आईएएस आशीष कुमार चौहान को हाईकोर्ट में सच बोलना पड़ा कि अभी तक मुख्यमंत्री राहत कोष से 20 करोड़ रु परिवहन निगम को नही मिल पाए हैं। हाईकोर्ट ने इस पर गंभीर आश्यर्च और एतराज प्रकट करते हुए कहा कि हमारे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के बैंक खाते में क्या लाखों रु होते हैं कि उन्हें फरवरी से जून तक का वेतन नहीं दिया गया और जुलाई आने को है। कोर्ट ने ये भी पूछा कि ये किस तरह का एटीट्यूड है जिसमें कहा गया कि 20 करोड़ देने के बाद अब और 20 करोड़ रु नहीं दिए जाएंगे। हाईकोर्ट ने पूछा कि ऐसे में निगम कहां से बाँटेंगा सेलरी-एरियर?
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अब ये अलग बात है कि सरकार ने न सिर्फ हाईकोर्ट में कहा था कि 40 करोड़ देंगे बल्कि सार्वजनिक मंचों से भी ढिंढोरा पीटा कि रोडवेज को सरकार ने 40 करोड़ रु दिए। लेकिन असल में ऐसा किया नहीं लिहाजा आज हाईकोर्ट में जमकर सरकार की किरकिरी हो गई। सरकारी वकीलों को फटकार लगी सो अलग। हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि या तो 25 जून तक निगम को पैसा मिल जाए अन्यथा 25 को मुख्य सचिव, वित्त सचिव और परिवहन सचिव को तलब किया जाएगा।
अब 25 जून तक सरकार क्या करेगी ये तो आगे पता चलेगा लेकिन कोर्ट में सरकार का सच रखते ही रोडवेज एमडी पद से आईएएस आशीष चौहान को हटा जरूर दिया गया है। सवाल है कि क्या एक आईएएस को कोर्ट के सामने सच नहीं रखना चाहिए था?