देहरादून: कांग्रेस के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा आज दोपहर साढ़े 12 बजे अधिकारिक तौर पर पदभार ग्रहण करेंगे। इससे पहले करन माहरा का प्रदेश प्रभारी देवेन्द्र यादव के साथ जौलाग्रांट एयरपोर्ट से लेकर राजीव भवन तक स्वागत कार्यक्रम निर्धारित है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष के भव्य स्वागत और पदभार ग्रहण समारोह में न केवल 19 में से अधिकतर विधायक मौजूद रहेंगे बल्कि पूर्व सीएम हरीश रावत, पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह और नए नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य,पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल सहित तमाम पार्टी के वरिष्ठ नेता मौजूद रहेंगे। देखना होगा कांग्रेस के मौजूदा हालात के मद्देनज़र अपने भविष्य की चिंता में बाग़ी तेवर अपनाए हरीश धामी और मदन सिंह बिष्ट पहुँचते हैं कि नहीं। वैसे कहा जा रहा है कि कुछ विधायक क्षेत्र के पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों के चलते पार्टी मुख्यालय में हो रहे माहरा के ‘शो ऑफ स्ट्रेंथ’ से नदारद दिख सकते हैं। लेकिन दिग्गजों की उपस्थिति अनिवार्य तौर पर तस्वीरों में दिखेगी और संभव है कि इशारों-इशारों या खुलकर वार-पलटवार का ‘विशुद्ध कांग्रेसी आंतरिक लोकतंत्र’ का नजारा भी देखने को मिल जाए!
जानकार सूत्र दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस से बगावत और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए धारचूला का विकास कराने के नाम पर सीट छोड़ने का हरीश धामी का बयान पार्टी आलाकमान को नागवार गुज़रा है। इसी के बाद पूर्व सीएम हरीश रावत ने बागी तेवर दिखा रहे अपने करीबी धामी को समझाबुझा दिया है और खुद हरदा ने भी एक हफ्ते बाद ही सही करन माहरा के साथ सोशल मीडिया पर अपनी और पत्नी रेणुका रावत की फोटो शेयर की है। ज्ञात हो कि करन माहरा, यशपाल आर्य और भुवन कापड़ी को मिली नई ज़िम्मेदारियों का ऐलान पिछले रविवार की शाम ही हो गया था। लेकिन हरदा ने अब जाकर शनिवार शाम यानी एक हफ्ते बाद करन माहरा संग फोटो साझा की है यानी गुस्से और गुबार के साथ साथ ‘दस विधायक छोड़कर चले जाएंगे’ का डर भी कांग्रेस आलाकमान को दबाव में नहीं ला पाया। नतीजा यह है कि अब करन माहरा अपनी नई पारी का आज से दमदार आगाज कर रहे हैं और हरदा-प्रीतम सहित तमाम ख़फ़ा-खुश दिख रहे नेताओं को एकजुटता दिखानी होगी। उधर यशपाल आर्य सोमवार को नेता प्रतिपक्ष के रूप में पदभार ग्रहण करेंगे।
दरअसल, करन माहरा का ऐलान बहुत सोच-विचार के साथ किया गया है। करन माहरा हरदा के करीबी रिश्तेदार हैं, फिर भले मौजूदा राजनीति में पटरी बहुत उनके साथ न बैठ रही हो लेकिन हरदा के लिए माहरा विरोध आसान न होगा। जबकि कांग्रेस के सियासी महाभारत में माहरा को प्रीतम सिंह और रणजीत रावत के करीबी गिना जा रहा। यानी खुद के नेता प्रतिपक्ष न बन पाने पर नाराजगी दिखा रहे प्रीतम भी अपने कैंप के दूसरे नेता के आगे बढ़ने का विरोध किस आधार पर कर सकते हैं। इतना ही नहीं उपनेता प्रतिपक्ष बनाए गए भुवन कापड़ी को भी प्रीतम कैंप से जोड़कर देखा जाता है। ऐसे में हार के बाद हरदा-प्रीतम-गोदियाल’ में किसी को पद न देने का फ़ॉर्मूला अपनाया गया लेकिन अभी भी मौका हरदा-प्रीतम कैंपों से ही दूसरे लोगों को दिया गया है।
ऐसे में जानकार मानते हैं कि इन दोनों दिग्गजों की नाराजगी को इनकी अपनी निजी राजनीतिक महत्वाकांक्षा ही समझा जा सकता है। जबकि हरीश धामी या मदन बिष्ट की अगुआई में दस विधायक भाजपा चले जाए ऐसा भी फिलहाल नामुमकिन सा लगता है। हाँ इतना जरूर है कि दो-एक विधायकों अपने राजनीतिक भविष्य और उससे कहीं अधिक कारोबारी हितों की रक्षा के लिए सत्ताधारी भाजपा मुफीद लग सकती है।आखिर पांच सरकार चलाने के बाद भाजपा को फिर पांच साल के लिए सत्ता मिल गई है। लिहाजा तीन खाली पड़े मंत्रीपदों में जगह मिले न मिले कम से कम कारोबार सत्ता के संरक्षण में बेरोकटोक परवान चढ़ता रहे यह क्या कम बड़ी बात नहीं होगी! वैसे भी क्या पता मोदी लहर बनी रही तो 2027 में पांच साल और मौका मिल गया तो पौ-बारह! ऐसे में कुछेक कांग्रेसी विधायकों को आने वाले वक्त में क्षेत्र के विकास की चिन्ता ज्यादा सताने लगे तो आश्चर्यचकित न हों क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व ने तो करन माहरा को आगे कर संदेश दे ही दिया है।