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इंद्रेश मैखुरी ने डीजीपी से पूछा- क्या उत्तराखंड पुलिस बन गई बीजेपी कैडर?

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Haldwani: भाकपा (माले एल) के राज्य सचिव और राज्य आंदोलनकारी इंद्रेश मैखुरी ने डीजीपी दीपम सेठ को खुला पत्र लिखकर पूछा है कि क्या मित्र पुलिस बीजेपी कैडर बनकर अब प्रदेश में व्यवहार कर रही? इंद्रेश मैखुरी ने हल्द्वानी में 27 मई को बागजाला की जनता की समस्याओं को लेकर हो रही चेतावनी रैली के प्रचार में जुटे कार्यकर्ताओं-नेताओं को पुलिस द्वारा रोकने, धमकाने के मामले के मामले में पत्र लिखकर कई सवाल खड़े किए हैं।

यहाँ पढ़िए इंद्रेश मैखुरी का खुला पत्र

प्रति,
श्रीमान पुलिस महानिदेशक महोदय,
उत्तराखंड पुलिस, देहरादून

महोदय,
हल्द्वानी के नजदीक स्थित बागजाला के निवासियों की समस्याओं के समाधान की मांग पर 27 मई को बुधपार्क हल्द्वानी में होने वाली पूर्व घोषित चेतावनी रैली के लिए पर्चा वितरण, जनसंपर्क करने के लिए आज सुबह के समय भाकपा (माले) के केंद्रीय कमेटी सदस्य डॉ. कैलाश पांडेय, अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेश अध्यक्ष कामरेड आनन्द सिंह नेगी के साथ व किसान महासभा बागजाला कार्यकारिणी के सदस्य बागजाला गांव में भ्रमण कर रहे थे। तभी अचानक भारी पुलिस फोर्स और आरएएफ के जवान उनके सामने आकर खड़े हो गए। इस फोर्स का नेतृत्व कर रहे पुलिस अधिकारियों ने इस शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक अभियान को तत्काल रोकने, बैनर समेटने, प्ले कार्ड हटाने को कहा। जब अभियान में शामिल लोगों ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि आप इस तरह गांव में प्रचार नहीं कर सकते। साथियों के यह कहने पर कि हम बागजाला गांव की पेयजल, सड़क, विकास व निर्माण कार्यों पर लगी रोक हटाने की मांग पर 27 मई को बुधपार्क हल्द्वानी में होने वाली चेतावनी रैली की तैयारी का प्रचार करने निकले हैं जो इस गांव की समस्याओं के समाधान की मांग पर होनी है, इस पर उनका कहना था कि 27 मई को है तो 27 को जाना अभी तुम ऐसे गांव में बैनर, तख्तियां लेकर नारे लगाते हुए नहीं घूम सकते। साथियों के यह कहने पर कि हम प्रचार करेंगे तभी तो लोग पहुंचेंगे, उन्होंने कहा बिल्कुल नहीं। गौरतलब है कि वे इतनी बड़ी फोर्स के साथ “गांव में किरायेदारों का सत्यापन अभियान चलाने” पहुंचे थे और उसका नेतृत्व रामनगर सीओ कर रहे थे। जब अभियान में शामिल लोगों ने कहा कि आप बिना कारण हमें रोक रहे हैं हमें अपना प्रचार करने दीजिए और आप अपने सत्यापन अभियान चलाएं। उनका जवाब बड़ा ही दिलचस्प था, उन्होंने कहा कि हम भले ही सत्यापन अभियान चलाने आए हैं लेकिन सामने कोई चोरी हो रही हो, कोई झगड़ा घपला चल रहा हो तो हम उसको अनदेखा थोड़ी करेंगे, उसको भी रोकेंगे। प्रचार अभियान में शामिल लोगों के यह कहने पर कि हमने कौन सा घपला किया है, कौन से नियम का उल्लंघन किया है? संविधान या कानून के किस प्रावधान का उल्लंघन किया है तो उनका कहना था ये हम चलने नहीं देंगे, वीडियो बनाओ इनका, नाम बताओ तुम, बैकग्राउंड चेक करो इनका, तुम अभी जानते नहीं हो मुकदमा दर्ज करेंगे, चालान काटेंगे और भी पूरा धमकाने के अंदाज में बोलते रहे। प्रचार अभियान में शामिल लोगों ने कहा गांव की समस्याएं हैं, वो दूर हों तो इसकी नौबत ही न आए, उसके लिए आप भी सहयोग करें, तो बोले मैं अभी इसी गांव से इन्हीं सवालों के खिलाफ पचास लोग इकट्ठे कर दूंगा तब क्या होगा? प्रचार अभियान में शामिल लोगों ने कहा कर दीजिए, अगर वो विरोध करेंगे तो ये उनका लोकतांत्रिक अधिकार है, हमारा अपनी मांगों को रखने और जनता के बीच प्रचार का अपना लोकतांत्रिक अधिकार है। लोकतंत्र में पुलिस का मुख्य काम शान्ति व्यवस्था या कानून व्यवस्था सुनिश्चित रखने का होना चाहिए लेकिन इसके उलट 50 लोगों को गांव के हक – हकूकों और मूलभूत सुविधाओं के लिए आवाज उठाने वालों के खिलाफ उतारने की बात पर सवाल यह उठता है कि पुलिस की ड्यूटी लोगों की सुरक्षा की है या इस बात की कि वे जनता के सवालों को उठा रहे लोगों के खिलाफ “पचास लोगों को खड़ा कर दूंगा” जैसे फिल्मी डायलॉग सुनाएं, जनता के एक हिस्से के खिलाफ दूसरे हिस्से को विरोध में खड़ा करनी की धमकी दें। ऐसे अधिकारी को तो पुलिस से इस्तीफा देकर किसी राजनीतिक पार्टी में भर्ती होकर जन आंदोलन के खिलाफ लोगों को खड़ा करने की ड्यूटी निभानी चाहिए, अच्छी तरक्की होगी। इसके बाद भी अपना आक्रामक तेवर दिखाते हुए वे कुछ न कुछ धमकाते ही रहे। ज्ञात हुआ है कि निरंतर आक्रामक और धमकाने वाला व्यवहार करने वाले अधिकारी श्री राजेश यादव हैं, जो हल्द्वानी के शहर कोतवाल हैं. यह तो पूर्व में उल्लेख किया ही जा चुका है कि उनके साथ पुलिस क्षेत्राधिकारी रामनगर एवं अन्य पुलिस कर्मी व आर ए एफ के जवान थे.
क्या आंदोलन के बल पर बने इस उत्तराखण्ड राज्य में जनता को अपने सवालों पर लोकतांत्रिक ढंग से अपनी आवाज भी किस तरह, कब, कितनी उठानी है, कहां उठानी है और कब-कहां नहीं उठानी है इसके लिए पुलिस के हिसाब से चलना होगा, उनकी धमकी सहनी होगी?

महोदय, क्या नैनीताल जिले के बागजाला गांव में धारा 144 (भारतीय न्याय संहिता की धारा 163) लगा दी गई है या उत्तराखण्ड पुलिस ने भाजपा के कैडर के रूप में व्यवहार करना शुरू कर दिया है ? क्या जन संपर्क करना, प्ले कार्ड, बैनर लेकर किसान महासभा, भाकपा (माले) नेताओं का दस बारह ग्रामीणों के साथ गांव का भ्रमण करना गैर कानूनी है?
जनता के संघर्ष में साझीदार लोगों को डराने- धमकाने, भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 में प्रदत्त वाक्, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण एकत्र होने की स्वतंत्रता को बाधित करने के लिए सीओ रामनगर, शहर कोतवाल हल्द्वानी श्री राजेश यादव के विरुद्ध जांच करके दंडात्मक कार्रवाही करने की कृपा करें. साथ ही आम जन के साथ इस तरह उग्र- आक्रामक बर्ताव करने वाले उक्त पुलिस अधिकारियों को तत्काल सार्वजनिक पदों से हटाने की मांग भी हम, महोदय से करना चाहते हैं. यह भी सुनिश्चित किया जाए कि कोई भी पुलिस कर्मी आम जन से अनावश्यक उग्र व्यवहार न करे और आम जन की गरिमा, प्रतिष्ठा और संवैधानिक अधिकारों का सम्मान करे.

धन्यवाद
सहयोगाकांक्षी
इन्द्रेश मैखुरी,
राज्य सचिव, भाकपा (माले)
उत्तराखंड

(यह पत्र ई मेल से भेज दिया गया है)

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