देहरादून/दिल्ली: उत्तराखंड का ‘अगला मुख्यमंत्री कौन होगा?’ इस सवाल का जवाब 10 मार्च से खोजा जा रहा लेकिन 19 की विधायक दल बैठक से पहले सही-सही उत्तर मिलता नहीं दिख रहा है। फैसले का इंतजार बढ़ रहा है तो सीएम की कुर्सी के दावेदार भी बढ़ रहे हैं। अब तो हर दूसरा विधायक मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए खुद को सबसे उपयुक्त करार दे रहा है। गणेश जोशी, प्रेमचंद अग्रवाल से लेकर रेखा आर्य तक तमाम विधायक अपने अनुभव, कई बार चुनाव जीतने और विकास कार्यों की फेहरिस्त गिनाते फिर रहे हैं।
खैर मुख्यमंत्री की दौड़ में पिछड़ते कार्यवाहक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आखिरी दांव खेल दिया है। यूं तो धामी के लिए पांच छह विधायक, जिनमें भाजपा के अलावा निर्दलीय विधायक भी शामिल हैं, अपनी सीट छोड़ने का ऑफर दे चुके लेकिन लगता है इसका भाजपा आलाकमान पर खास असर पड़ता दिख नहीं रहा। लिहाजा अब आखिरी दांव के तौर पर विपक्षी पार्टी कांग्रेस में सेधमारी का रोडमैप रख दिया गया है। सूत्रों ने आपके THE NEWS ADDA पर खुलासा किया है कि धामी से सहानुभूति रखने वाले दो विधायक कांग्रेस में चिन्हित कर लिए गए हैं।
अब अगर भाजपा आलाकमान धामी को ही सीएम बनाता है तो पार्टी विधायकों या किसी निर्दलीय की बजाय कुमाऊं के अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के एक विधायक से सीट खाली कराई जाएगी। भाजपा में धामी के रणनीतिकार इसकी पूरी पटकथा लिख चुके हैं और यह विधायक समय आने पर धामी के लिए अपनी सदसयता की शहादत देने को तैयार बताया जा रहा है।
दरअसल, उत्तराखंड में दिल्ली से सांसदों को मुख्यमंत्री बनाकर भेजे जाने की राजनीतिक रवायत पुरानी रही है और सीएम बनकर आए ऐसे दिग्गजों ने विधानसभा सदन में दाख़िल होते विरोधी दल में सेंधमारी कर सदस्यता हासिल की है। कम से कम दो बार राज्य की राजनीति में ऐसी सेंधमारी हो चुकी है। शुरुआत भाजपा ने की थी तो जवाब कांग्रेस ने दिया।
हुआ यूं कि 2007 में भाजपा आलाकमान ने पौड़ी गढ़वाल सांसद जनरल बीसी खंडूरी को 2007 ने उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाकर भेजा। जनरल खंडूरी को छह महीने के भीतर विधायक बनना था और जब पौड़ी विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक यशपाल बेनाम ने सीएम खंडूरी के लिए सीट छोड़ने से इंकार कर दिया तो भाजपा रणनीतिकारों ने प्लान बी के तहत कांग्रेस में सेंधमारी कर डाली। तब धूमाकोट से कांग्रेस विधायक लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) टीपीएस रावत ने सीएम खंडूरी के लिए सीट छोड़ दी थी। खंडूरी विधासनभा सदन पहुँचे और टीपीएस रावत उनकी छोड़ी सीट से उपचुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच गए।
कांग्रेस ने भाजपा की सेंधमारी का हिसाब 2012 में सरकार बनाकर तब किया जब तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा सितारंगज से भाजपा विधायक किरण मंडल की सीट खाली कराकर विधानसभा पहुँचे।
अब अगर भाजपा आलाकमान खटीमा से हारे पुष्कर सिंह धामी को ही दोबारा मुख्यमंत्री बनाने का फैसला करता है तो धामी के पास 2012 का जवाब देने का रोडमैप तैयार है। हालांकि धामी की हार के बाद भाजपा आलाकमान की उलझन बहुत बढ़ गई है क्योंकि अगर धामी को मौका दिया गया तो इसके एक नई परिपाटी के तौर पर चल निकलने का डर पैदा हो जायेगा। अब तो जीते विधायकों में ही मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर मारामारी मचती है और इस फैसले के बाद तमाम राज्यों में हारे हुए नेता भी सीएम कुर्सी के दावेदार हो जाएंगे।
चुनौती यह भी है कि अगर हारने के बाद भी धामी को सीएम बना दिया गया तो चंद माह बाद चुनाव होने वाले राज्य में भाजपा समर्थक पूछेंगे कि पांच साल पहले ऐसा तत्कालीन सीएम फेस प्रेम कुमार धूमल के साथ क्यों नहीं हुआ!
बहरहाल यह चुनौती भाजपा आलाकमान के सामने है लेकिन यह तय है कि अगर धामी को मौका मिला तो कांग्रेसी कुनबे में कुमाऊं से सेंधमारी की स्किप्ट तैयार होगी।