देहरादून: पहाड़ पर डॉक्टर चढ़ाने को लेकर भले त्रिवेंद्र सिंह रावत सीएम रहते अपने 4 साल बनाम 17 साल का ढिंढोरा पीटते रहे हो। या तीरथ सिंह रावत से लेकर पुष्कर सिंह धामी सरकार तीसरी लहर को लेकर अपनी तैयारियों के ढोल बजा रही हो लेकिन एक RTI में हकीकत सामने आ गई है। देहरादून की एसडीसी फ़ाउंडेशन द्वारा सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से खुलासा हुआ है कि राज्य में स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स के आधे से भी अधिक पद रिक्त हैं। पौड़ी, चमोली और टिहरी जैसे पर्वतीय जिलों के हालात बेहद खराब हैं जबकि पौड़ी से दो-दो मुख्यमंत्री रहे हैं पिछले साढ़े चार साल में।
ऐसे समय जब देश तीसरी लहर के खतरे से निपटने की तैयारियां करने में जुटा है, तब उत्तराखंड में स्वीकृत पदों के मुकाबले आधे भी विशेषज्ञ डॉक्टर्स का न होना राज्यवासियों की जान से खिलवाड़ से कम नहीं है। चिन्ता तब और बढ़ जाती है जब पर्वतीय जिलों में निजी अस्पतालों का भी अभाव हो और सरकारी अस्पतालों में एक्सपर्ट डॉक्टर्स न हों तो बदतर स्थिति का अंदाज़ा आप खुद लगा सकते हैं।
एसडीसी फाउंडेशन द्वारा RTI के तहत माँगी गई सूचना में खुलासा हुआ है कि राज्य के 13 जिलों में स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की 15 अलग-अलग कैटेगरी में मात्र 43 फीसदी डॉक्टर्स ही हैं याना 57 फीसदी स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स के पद रिक्त पड़े हैं।
RTI के तहत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग द्वारा मुहैया कराए डेटा के तहत 30 अप्रैल 2021 तक राज्य में स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स के कुल 1147 स्वीकृत पदों के मुकाबले महज 493 डॉक्टर्स ही तैनात हैं, बाकी के 654 पद रिक्त पड़े हैं।
ग़नीमत समझिए कि राजधानी देहरादून में 92 फीसदी स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स के पद भरे हैं, दूसरे नंबर पर रूद्रप्रयाग में 63 फीसदी स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स हैं लेकिन बाकी पर्वतीय जिलों में स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे है। पर्वतीय जिले टिहरी में स्वीकृत पदों के मुकाबले मात्र 13 फीसदी, चमोली में 27 फीसदी और पौड़ी में 28 फीसदी स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स ही तैनात हैं। अब आप कल्पना कर सकते हैं कि इन जिलों में खुद स्वास्थ्य व्यवस्था कितनी बीमार अवस्था में होगी!
एसडीसी फाउंडेशन ने ‘State of Specialist Doctors in Uttarakhand 2021’ रिपोर्ट में राज्य के स्वास्थ्य का एक्सरे पेश किया है। सारे तथ्य सूचना के अधिकार तहत सरकार से प्राप्त किए गए हैं लिहाजा दावों और हकीकत की पड़ताल बहुत आसानी से की जा सकती है।
राज्य में फोरेंसिक स्पेशलिस्ट के कुल स्वीकृत 25 पदों में से केवल एक फोरेंसिक स्पेशलिस्ट है। स्किन डिजीज के 38 और साइक्रेटिस्ट के 28 पद स्वीकृत हैं, जबकि इन दोनों पदों पर केवल चार-चार स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की ही नियुक्ति की गई हैं। ऐसे वक्त में जबकि कोविड-19 तीसरी लहर का खतरा मंडरा रहा है, उत्तराखंड में जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ मात्र 14 प्रतिशत और बाल रोग विशेषज्ञ केवल 41 प्रतिशत हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञ केवल 36 प्रतिशत हैं।
एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल कहते हैं कि यह कमी बेहद चिंताजनक है, खासकर ऐसे समय में जबकि हम महामारी के दौर से गुजर रहे हैं। वे राज्य सरकार से आग्रह करते हैं कि वह जल्द से जल्द विशेषज्ञ डाॅक्टरों के खाली पदों पर नियुक्तियां करने के उपाय शुरू करे। उनका कहना है कि स्वास्थ्य सुविधाओं की उचित व्यवस्था न होने से कोविड-19 के दौर में किये जाने वाले हमारे प्रयास बेअसर साबित हो सकते हैं। इन स्थितियों का ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों पर अधिक असर पड़ता है, जिसे अनदेखा किया जाता है। अनूप नौटियाल ने उम्मीद जताई कि यह अध्ययन राज्य सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में निर्णय लेते समय मदद करेगा।
उनका कहना है कि कुछ दिन पहले कई विधायक नवनिर्वाचित स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत से मिले थे और राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती का मुद्दा उठाया था। इससे पहले 2018 में नीति आयोग की एक रिपोर्ट में विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति के मामले में भी उत्तराखंड को तीन सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों की श्रेणी में रखा गया था, इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
एसडीसी फाउंडेशन की अध्ययन टीम के सदस्य और शोधकर्ता विदुष पांडे कहते हैं कि राज्य के जिला अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के लगभग 60 प्रतिशत पद खाली हैं। राज्य के नवनिर्वाचित सीएम और स्वास्थ्य मंत्री को इस तरफ तुरंत ध्यान देने की जरूरत हैं। पर्याप्त स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की नियुक्ति से न सिर्फ हमें कोविड-19 के संक्रमण जैसे कठिन वक्त से निपटने में मदद मिलेगी, बल्कि इससे हमारी स्वास्थ्य प्रणाली भी मजबूत होगी। खासकर ग्रामीण और पर्वतीय क्षेत्रों को इससे लाभ मिलेगा।
एसडीसी फाउंडेशन के रिसर्च एंड कम्युनिकेशंस हेड ऋषभ श्रीवास्तव कहते हैं कि फाउंडेशन ने पहले राज्य में पूर्णकालिक स्वास्थ्य मंत्री के लिए अभियान चलाया था। नए सीएम पुष्कर सिंह धामी की नियुक्ति के बाद राज्य को पूर्णकालिक स्वास्थ्य मंत्री मिल चुके हैं। वे कहते हैं कि राज्य में स्त्री रोग विशेषज्ञों की केवल 36 प्रतिशत उपलब्धता दर्शाती है कि हालात बेहद खराब हैं और इसका सीधा प्रभाव महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। वे कहते हैं कि महिलाओं के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों तक पहुंचना राज्य में पहले से ही कठिन है। ऋषभ ने उम्मीद जताई कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नए नेतृत्व में सरकार तत्काल इस दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय लेगी।
फाउंडेशन ने राज्य के जिलों में विशेषज्ञ डॉक्टरों का विस्तृत विश्लेषण तैयार किया है। आने वाले कुछ हफ्तों में इसके अन्य हिस्सों को साझा किया जाएगा।
टिहरी में मात्र 13 प्रतिशत विशेषज्ञ डॉक्टर
एसडीसी ने अपनी पहली रिपोर्ट में टिहरी जिले का डेटा साझा किया। विशेषज्ञ डाॅक्टरों की उपलब्धता के मामले में टिहरी उत्तराखंड का सबसे खराब जिला बना हुआ है।
टिहरी जिले में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के स्वीकृत कुल 98 पदों में से केवल 13 पर नियुक्ति है। 85 पद खाली हैं। जिले में एक भी सर्जन, ईएनटी, फॉरेंसिक, स्किन, माइक्रोबायोलॉजी और मनोरोग विशेषज्ञ नहीं है। यहां बालरोग विशेषज्ञ, फिजिशियन और जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ के केवल एक-एक पद पर नियुक्ति हुई हैं, जबकि स्वीकृत पदों की संख्या क्रमशः 14, 15 और 12 है। इसके अलावा, जिले में 15 स्वीकृत में से केवल दो स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं।