मुख्यमंत्री, मंत्रियों और विधायकों के बाद अब क्या ब्यूरोक्रेसी के बिग बॉस संधू भी मान चुके नौकरशाही नकारा !

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  • क्या उत्तराखंड की अफसरशाही वाकई हो गई है नकारा या फिर पॉलिटिकल क्लास की पॉइंट स्कोरिंग का शिकार !
  • मुख्य सचिव एसएस संधू को ब्यूरोक्रेसी के मंदिर LBSNA में क्यों लेक्चर देना पड़ा आईएएस अफसरों को?

Chintan Shivir @ LBSNA: सूबे की पुष्कर सिंह धामी सरकार आज से तीन दिन के लिए चिंतन मंथन करने पहाड़ों की रानी मसूरी पहुंची हैं। एक सूत्री एजेंडा है कि उत्तराखंड जब अपनी स्थापना के रजत जयंती वर्ष में प्रवेश करे तो उसके माथे पर देश के सर्वश्रेष्ठ राज्य का तमगा हो। होना भी चाहिए आखिर हिमालयी राज्य उत्तराखंड भारत का भाल है फिर शिक्षा, स्वास्थ्य, बेहतर सड़कों से लेकर पेयजल और आर्थिकी के मोर्चे पर देशभर के बाकी राज्यों से परफॉर्मेंस इंडेक्स में पिछड़ता क्यों दिखे।

हाल में आई मोदी सरकार की पीजीआई रिपोर्ट यानी परफॉर्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स रिपोर्ट में राज्य का नीचे से तीसरे पायदान पर होना साफ बताता है कि भले चिंतन शिविर में प्रदेश के मुख्य सचिव डॉ एसएस संधू कह रहे हों कि पिछले 22 वर्षों में उत्तराखंड यूपी से कहीं आगे निकल गया है। जबकि ये रिपोर्ट ही बताती है कि ना अब यूपी बीमारू रहा और ना नवोदित उत्तराखंड उस तरह से परफॉर्मेंस दे रहा कि हम दूसरे हिमालयी राज्य हिमाचल प्रदेश के रास्ते पर दौड़ रहे हों। लिहाजा जमीन पर उतरकर राज्य की माली हालत से लेकर तमाम पहलुओं पर रोशनी डालने की दरकार है।

कायदे से तो मसूरी चिंतन शिविर से खबर ये निकाlलकर आनी चाहिए थी कि विकास के मोर्चे पर उत्तराखंड कुलांचे कैसे भरे, कर्ज का मर्ज क्या हो और पहाड़ से पलायन का तोड़ कैसे निकलेगा। लेकिन चिंतन शिविर के पहले दिन मसूरी से खबर यही आ रही है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अफसरों को पाठ पढ़ाया कि 10 से 5 की ड्यूटी कल्चर से बाहर निकलिए। अधिकारी देहरादून में बैठकर योजनाएं ना बनाएं बल्कि सीमावर्ती क्षेत्रों में जाकर रोडमैप बनाएं और योजनाओं को धरातल पर उतारा जाए।

अब सवाल है कि अधिकारी 10 से 5 बजे की ड्यूटी कल्चर से बाहर निकलें तो यह संदेश तो माफ कीजिए मुख्यमंत्री जी, यह साफ संदेश तो आप पिछले कई दिनों से न केवल देहरादून बल्कि प्रदेशभर में घूम-घूमकर दे रहे। मसूरी से तो हम रोडमैप की राह देख रहे ना कि अफसर संंभलें, जिम्मेदारी तय होगी वगैरह वगैरह!

सीएम साहब कह रहे सो कह रहे, मसूरी में मुख्य सचिव डॉ एसएस संधू ने भी आईएएस अधिकारियों को टाइट करने की मंशा से कहा कि आप लोगों को काम को NO कहने की तनख्वाह नहीं मिलती है बल्कि रास्ता निकालने के खातिर मिलती है। सीएस संधू ने खुलासा जैसा बयान देते कहा कि IAS अधिकारी फाइल पर नो करना ईगो समझते हैं। सीएस ने कहा कि काम करने की बजाय अधिकारी ना कहने में ही अपनी पॉवर समझते हैं।

सीएम से ज्यादा सीएस का अफसरशाही पर भड़ास निकालना गहरे निहितार्थ लिए हुए है। सवाल है कि आखिर अफसरशाही का बबॉस भी क्यों इस कदर अपने आईएएस अफसरों से निराश हो चुका है? क्या नौकरशाही के बॉस की भी ये स्थिति है कि अधिकारियों को यूं पब्लिकली लताड़ना पड़ रहा है? आखिर ऐसी कौनसी फाइलें हैं जिनको आईएएस NO कह कर लौटा दे रहे? कितने विधायक और मंत्री अफसरों पर उलटे सीधे कामों को लेकर दबाव बनाते रहे हैं,अतीत के कई मामलों में देखा गया है। आखिर कमीशनखोरी की जिस बीमारी का जिक्र पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत कर गए, वह तो वजह नहीं कि अफसरों की कलम NO लिखने को मजबूर कर देती होगी!

बड़ा सवाल यही है कि आखिर क्या पूरा सरकारी अमला मसूरी इसलिर चढ़ा है कि अखिकारियों को कोस कर निकला जाए! क्या चुनी हुई सरकारों के प्रतिनिधियों ने अपनी कमजोरियों को छिपाने और राजनीतिक पॉइंट स्कोरिंग का शिकार नौकरशाही बना दी जा रही? अगर ऐसा नहीं होता तो इसी बीजेपी की हरियाणा की खट्टर सरकार ट्रांसफर एक्ट को इतना मजबूती से लागू कर डालती है कि आज विपक्षी भी तारीफ कर रहे। अगर यूपी में अफसर नकारा साबित हो जाता है तो उसे नापते सीएम योगी आदित्यनाथ देरी नहीं लगने देते हैं जिसका मैसेज नीचे तक पहुंचता है।

इसके उलट उत्तराखंड की सरकारों ने समय समय पर अफसरों को न केवल ऑन जॉब गले लगाया बल्कि रिटायरमेंट के बाद भी आईएएस का बोझ यह इस राज्य के करदाताओं पर डाला जाता रहा है। अगर नजर उठाकर देखेंगे तो हर दूसरा निगम, आयोग रिटायर्ड अफसरों का ठिकाना नजर आएगा। जिस राज्य में रिटायर होने से पहले मुख्य सचिव अपने अगले पांच सात साल सरकारी खर्च पर पलने का जुगाड़ तलाश लेते हों वहां आज मुख्य सचिव संधू को दर्द है कि आईएएस काम नहीं करता बल्कि NO कहकर ईगो की मसाज करने में लगे रहते हैं।


जाहिर है बातों से उत्तराखंड 2025 में न सशक्त और न सर्वश्रेष्ठ बन पाएगा बल्कि जमीनी काम करके दिखाने होंगे और इसके लिए 10 से 5 ड्यूटी शिफ्ट कल्चर पर लेक्चर देते रहने की बजाय अधिकारियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही फिक्स करनी होगी। देखना होगा चिंतन शिविर के अमृत मंथन के बाद मुख्यमंत्री एक्शन देते दिखते हैं या फिर अगले किसी मंच पर 10 से 5 का मन जाप ही चलता रहता है।


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