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चौबेजी छब्बेजी बनने चले थे कहीं दुबेजी बनकर न लौटें! चार दिन बाद भी हरक के लिए कांग्रेस ने नहीं खोले दरवाजे, आज भी ज्वाइनिंग नहीं तो समझा जाए ‘नो एंट्री’? क्या अब राजनाथ के जरिए भाजपा में लौटने की हड़बड़ी में हरक ?

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देहरादून/दिल्ली: अपने राजनीतिक जीवन में ऐसे दोराहे पर शायद ही कभी हरक खड़े नजर आए हों। भाजपा ने कांग्रेस में एंट्री के इनपुट पर छह साल के लिए निष्कासित कर डाला और उधर कांग्रेस है कि एंट्री देने को तैयार ही नहीं है! रविवार को दिल्ली पहुँचे हरक सिंह रावत को अचानक भाजपा ने सरकार से बर्खास्त कर दिया और पार्टी से भी छह साल के लिए निष्कासित कर दिया। लेकिन कांग्रेस में ज्वाइनिंग के रास्ते पूर्व सीएम हरीश रावत चट्टान बनकर खड़े हो गए।

ऐसे में जब प्रीतम सिंह अरसे से कांग्रेस में हरक की वापसी की कोशिशें कर रहे थे और इस बार तो पुराने मित्र और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल भी पूरी ताकत से घर वापसी कराने में जुट गए लेकिन दरवाजे खुलते नहीं दिख रहे।

अब मीडिया में नए सिरे से यह खबर दौड़ रही कि थक हारकर हरक सिंह रावत भाजपा में लौटने का मन बना रहे हैं। सवाल है कि क्या कांग्रेस से चार दिन बाद भी सकारात्मक संकेत न आता देखकर हरक सिंह रावत को अपने राजनीतिक भविष्य पर संकट मँडराता नजर आने लगा है और वे किसी भी तरह भाजपा में लौट जाना चाह रहे हैं? या फिर भाजपा नेताओं से संपर्क की खबर उड़ाकर कांग्रेसियों के कानों तक अपना संदेश पहुँचाना चाह रहे ताकि एंट्री पर फैसले की घड़ी जल्दी आए क्योंकि कहीं बहुत देर न हो जाए।

हालाँकि अभी भी भाजपा ने कोटद्रार सीट पर प्रत्याशी तय नहीं किया है लेकिन दिवंगत सीडीएस जनरल बिपिन रावत के भाई कर्नल विजय रावत को भाजपा ज्वाइन कराई गई है और उनको कोटद्वार से चुनाव लड़ाने की चर्चा है। भाजपा ने केदारनाथ सीट पर भी पहली लिस्ट में प्रत्याशी नहीं उतारा है यानी हरक के लिए यहाँ भी गुंजाइश बाकी है। लेकिन लैंसडौन जहां से हरक अपनी बहू के लिए टिकट मांग रहे थे वहाँ सिटिंग विधायक महंत दलीप रावत को टिकट दे दिया गया है।

किसी भाजपाई सूत्र ने दावा किया कि राजनाथ सिंह के जरिए टेलिफ़ोन पर संवाद का चैनल हरक सिंह रावत ने खोला है। अब हरक की राजनीति में कितने ट्विट एंड टर्न आने बाकी हैं इसका ठीक ठीक अंदाज़ा तो हरक सिंह रावत को भी नहीं ही होगा। लेकिन इतना तय है कि अगर यह हरक का कांग्रेस का ध्यान खींचने का दांव नहीं हुआ और उनकी भाजपा में वापसी हो जाती है तो यह अपने आप में राजनीतिक इतिहास की अनोखी व अविश्वसनीय घटना ही होगी। जो एक राजनीतिक किस्से के तौर हमेशा याद की जाती रहेगी।

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