देहरादून: 2014 से देवभूमि के हर दंगल में चुनावी शिकस्त खाते आ रही कांग्रेस 22 बैटल में जीत का परचम लहराने के सुनहरे ख़्वाब बुन रही है। लेकिन चुनावी तैयारियों के लिहाज से कांग्रेस भाजपा से कोसों दूर खड़ी नजर आ रही है। टिकट बँटवारे ने यह एक बार फिर साबित कर दिया है। दिसंबर से हरीश रावत से लेकर तमाम कांग्रेसी नेता दावा करते फिर रहे कि 40-45 टिकट फाइनल हैं और कहा जा रहा था कि जनवरी में चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही पहली लिस्ट जारी कर दी जाएगी। लेकिन टिकट बँटवारे में बाजी भाजपा ने मार ली है। कांग्रेस के तमाम नेता कई दिनों से दिल्ली में डेरा डालें है लेकिन प्रत्याशियों की सूची पहले जारी कर एडवांटेज लेने का अवसर पार्टी ने गँवा दिया है।
जबकि ऐसा भी नहीं कि कांग्रेस दिखावे के लिए यह कह रही कि उसकी 40-45 सीटों पर कोई विवाद नहीं है और ये अधिकतर सिंगल नाम वाली सीट हैं। अगर कांग्रेस चुनावी तैयारियों का मुज़ाहिरा कराना चाहती तो ‘सुपर 36’ यानी बहुमत के जादूई आंकड़े लायक प्रत्याशी मैदान में उतार सकती थी। लेकिन भाजपा ने 57 विधायकों के संख्याबल में टिकट काटने से उपजने वाले विरोध-विद्रोह की परवाह किए बिना न्यूनतम बगावत के लिहाज से समीकरण बिठाकर प्रत्याशी उतार दिए हैं। हार और जीत के समीकरण को साधने में भाजपा आलाकमान ने पूर्व सीएम बीसी खंडूरी की बेटी व विधायक ऋतु खंडूरी का टिकट काटने से भी गुरेज़ नहीं किया और न ही नए चेहरों के तौर पर सुरेश गड़िया से लेकर धन सिंह धामी पर दांव खेलने में देरी की। दो दिन पहले कांग्रेस से आई सरिता आर्य को टिकट देने का फैसला हो या पुरोला में कांग्रेस छोड़कर आए राजकुमार को झटका देकर गुरुवार को ही पार्टी में शामिल हुए दुर्गेश्वर लाल को टिकट देने का फैसला करना रहा हो। भाजपा ने बेहतर होमवर्क, तैयारी और जोखिम उठाकर पहले टिकट बांटने का मैसेज दे दिया है।
बची हुई 11 सीटों में भी डोईवाला और कोटद्वार त्रिवेंद्र सिंह रावत और हरक सिंह रावत के चलते रोकनी पड़ी हैं। जबकि लालकुआं और हल्द्वानी में ठाकुर-ब्राह्मण के कॉम्बिनेशन के चलते टिकट रोका गया है और अगर बहुत उलटफेर न हुआ तो विधायक नवीन दुमका को फिर टिकट मिल सकता है। ऐसे में जोगेन्द्र रौतेला के लिए भी रास्ता साफ हो जाएगा। इसी कड़ी में ठुकराल वर्सेस अरोड़ा में फँसी रुद्रपुर सीट पर भी सिटिंग गेटिंग फ़ॉर्मूला दोहराया जा सकता है। झबरेड़ा में विधायक देशराज कर्णवाल की पत्नी वैजयन्ती को अवसर मिल सकता है। जबकि जागेश्वर में मोहन सिंह माहरा और रघुनाथ सिंह चौहान में माहरा को तवज्जो मिल सकती है। कोटद्वार में सीडीएस जनरल बिपिन रावत के भाई कर्नल विजय रावत को टिकट देकर फौजी वोटों के नज़रिए से बड़ा दांव खेला जा सकता है। डोईवाला और रानीखेत में कुछ उलटफेर दिख सकता है।
साफ है टिकट बँटवारे को लेकर भाजपा ने ज्यादा आक्रामक होकर कसरत की है और यूपी में भगदड़ न मची होती तो पार्टी कई और विधायकों को बेटिकट कर सकती थी। लेकिन सभी विधायकों को टिकट देने से लेकर पिछली बार चुनाव लड़े और कम अंतर से हारे अधिकतर प्रत्याशियों-पूर्व विधायकों को आज़माने जा रही कांग्रेस पहले टिकट घोषित करने का साहस नहीं जुटा पाई। अभी भी उसके सामने चुनौती यही बनी हुई है कि हरक सिंह रावत को एंट्री दी जाए कि न दी जाए। इसी में हरदा एक छोर पर नजर आ रहे तो प्रीतम-गोदियाल दूसरे छोर पर खड़े दिखाई दे रहे। आलम यह है कि अब तो फिर से भाजपा नेताओं से हरक की गुफ़्तगू की खबरें तैरने लगी हैं।