हाई कोर्ट का हंटर: कोर्ट में पैरवी लचर या मची थी खनन लूट जो कोर्ट ने कर दी चोट? क्या मशीनों से चीरा जा रहा था नदियों का सीना, सीज करने का क्यों देना पड़ा आदेश

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High Court hunter on Dhami Govt mining policy, no heavy machine mining in rivers, seize order: उत्तराखंड हाई कोर्ट ने धामी सरकार की खनन नीति के मौजूदा इंप्लीमेंटेशन में खोट बताती एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए प्रदेश में बड़ी मशीनों की मदद से किए जा रहे खनन पर तत्काल रोक लगाने के आदेश जारी किए हैं। साथ ही नैनीताल हाई कोर्ट ने सभी जिलाधिकारियों को नदी तल पर लगी मशीनों को सीज करने का आदेश भी दिया है। जाहिर है यह धामी सरकार के लिए बड़ा सेटबैक माना जा रहा है।

आखिर हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस आरसी खुल्बे की बेंच ने नदियों में मशीनों से खनन करने पर रोक लगाई है। चीफ जस्टिस की बेंच का फैसला धामी सरकार के लिए किसी सख्त संदेश से कम नहीं माना जा सकता है। ज्ञात हो कि हल्द्वानी के हल्दूचौड़ निवासी गगन पराशर तथा अन्य की जनहित याचिका पर कोर्ट सुनवाई कर रहा था। याचिका ने कहा गया था कि उत्तराखंड में मशीनों से खनन की अनुमति नहीं थी फिर भी प्रदेश भर में भारी मशीनों के साथ खनन किया जा रहा है। खनन नियमावली में मैन्यूली खनन की अनुमति है, इस पर रोक लगाई जाए।

जाहिर है यह एक सीरियस मामला था जिसके बाद कोर्ट ने समस्त जिलाधिकारियों को सख्त आदेश देकर मशीन से खनन पर तत्काल रोक और मशीनों को सीज करने को कह दिया है।

जानकार बता रहे हैं कि नदियों के तल पर भले तमाम बड़ी मशीनों से खनन की अनुमति की दलीलें दी जाती हों लेकिन अक्सर सबसे अधिक खनन की लूट का खेल भी इन्हीं बड़ी मशीनों के जरिए खेला जाता है। अक्सर आपने भी सुना होगा कि इन्हीं बड़ी मशीनों के जरिए दो मीटर के नाम पर 20 मीटर भी डीप खनन कर दिया जाए तो कहां कौन पकड़ पाता है। वैसे भी खनन के खेल में सरकार राजस्व का अपना सालाना टारगेट पूरा करे ना करे खनन माफिया वारे न्यारे जरूर कर लेता है। शायद यही वजह है कि बीजेपी हो या कांग्रेस उत्तराखंड की राजनीतिक के कई बड़े खिलाड़ी खनन कारोबार से कनेक्टिड रहते हैं।

ऐसे में हाई कोर्ट द्वारा नदी तल पर लगी मशीनों से खनन पर रोक और इन्हें तत्काल सीज करने के आदेश देने के बाद दो ही सवाल उठते हैं। पहला सवाल क्या मौजूदा धामी सरकार में भी खनन का खेल जारी था? दूसरा, अगर खनन का खेल नहीं चल रहा था तो क्या फिर हर मामले की तरह खनन के इस केस में भी सरकारी वकील लचर पैरवी कर सरकार की भद पिटवाने में “कामयाब” रहे?

जानकार बता रहे कि संभव है कि रॉयल्टी को लेकर सही की सही तथ्य अदालत के सामने ना रखे गए हों जिन्हे 12 जनवरी की अगली सुनवाई में दुरुस्त कर लिया जाए लेकिन मशीनों से खनन पर रोक एक झटका जरूर है। ज्ञात हो कि मीडिया रिपोर्ट्स में आया है कि अदालत ने खनन सचिव से प्रश्न किया है कि जब वन विकास निगम की वेबसाइट पर प्रति कुंतल रॉयल्टी 31 रुपए है तब प्राइवेट खनन वालों की वेबसाइट पर 12 रुपए प्रति कुंतल कैसे? इस पर शपथपत्र के साथ में माइनिंग सेक्रेटरी को जवाब देना है।

बहरहाल खनन वो काजल की कोठरी ठहरी जिसने हरेक सरकार के दामन पर कम या ज्यादा लेकिन कालिख जरूर पोती, अब हाई कोर्ट का हंटर धामी सरकार के लिए संभलने का बड़ा संदेश लिए है। सवाल है कि क्या युवा मुख्यमंत्री धामी इस काजल की कोठरी से बेदाग निकलना चाहेंगे भी? जाहिर है आने वाला वक्त ही इस सवाल का जवाब देगा।


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