Hindi Diwas: गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कन्या गुरुकुल परिसर देहरादून में हिंदी दिवस पर कई कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। इस अवसर पर हिंदी विभाग द्वारा दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया। 13 सितंबर को हिंदी साहित्यकार व लेखक पोर्ट्रेट प्रतियोगिता तथा हिंदी जागरूकता रैली का आयोजन किया गया।
पोर्ट्रेट प्रतियोगिता में जहां, छात्राओं ने कबीर, तुलसीदास, अज्ञेय, नागार्जुन, प्रेमचंद, भारतेंदु, विद्यापति, कृष्णा सोबती और सुभद्रा कुमारी चौहान आदि कालजयी लेखकों एवं साहित्यकारों के पोर्ट्रेट बनाये, वहीं, जागरूकता रैली के दौरान स्लोगन तथा नारों के माध्यम से लोगों को हिंदी के महत्व से अवगत कराया।
परिसर समन्वयक प्रो. हेमन पाठक ने ‘आओ मिलकर प्रण करें, सब हिंदी में काम करें’ तथा ‘भारत माता की जय’ के नारों के साथ रैली को रवाना किया। कॉलेज की छात्राओं ने रैली में न केवल बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया बल्कि ‘भारत मां की बिंदी है, भाषा हमारी हिंदी है’, ‘हिंदी है भारत की आशा हिंदी है भारत की भाषा’ जैसे नारों के साथ राष्ट्रभाषा के प्रति अपने प्रेम तथा स्नेह प्रकट किया। रैली में स्नातक, स्नातकोत्तर छात्राओं के साथ ही पीएचडी शोध अध्येताओं तथा शिक्षिकाओं ने भी भाग लिया।
प्रसिद्ध साहित्यकारों तथा लेखकों से संबंधित पोर्ट्रेट प्रतियोगिता में बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा आर्य दिव्यांशी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। बीए अंतिम वर्ष की छात्राओं क्रमश: राधिका, अभिलाषा ने द्वितीय तथा तृतीय स्थान प्राप्त किया। जबकि बीए तृतीय वर्ष की रूमान अहमद ने प्रतियोगिता में प्रेरणा पुरस्कार प्राप्त किया।
हिंदी दिवस पर आयोजित कार्यक्रमों की श्रृंखला में आज यानी 14 सितंबर को ‘हिंदी का वैश्विक परिदृश्य और नई शिक्षा नीति’ विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ निशा यादव ने बताया कि राजभाषा के रूप में हिंदी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर भारत सरकार इसे हीरक जयंती के रूप में मना रही है, इसलिए यह हिंदी के उत्तरोत्तर विकास को दर्शाता है। ऑनलाइन व्याख्यान में बतौर विशिष्ट वक्ता डॉ. अरविंद कुमार यादव ने भाषा के रूप में हिंदी के भारतीय व वैश्विक परिदृश्य के साथ ही भारतीय साहित्य के वैश्विक महत्व से छात्राओं व शोधार्थियों को अवगत कराया।
उन्होंने बताया कि किस तरह बाजारवाद, भूमंडलीकरण, अनुवाद तथा हिंदी में रचित उच्च कोटि का साहित्य हिंदी को वैश्विक फलक पर स्थापित कर रहा है। इसके साथ ही अपने व्याख्यान में डॉ अरविंद कुमार ने बताया कि 1000 वर्ष से ज्यादा की अपनी यात्रा में आज हिंदी के पास अपना समृद्ध शब्द भंडार है, जो किसी भाषा की व्यापकता एवं समृद्धि के लिए अत्यावश्यक है। उन्होंने कहा कि विश्व भाषा की ओर अग्रसर हिंदी का सबसे बड़ा गुण है कि वो अन्य भारतीय भाषाओं को भी साध या आत्मसात करती हुई आगे बढ़ रही है। यही कारण है कि आज प्रोद्योगिकी व तकनीक के युग में भी हिंदी मजबूती से खड़ी हुई है।
डॉ अरविंद ने बताया कि आज विश्व के अनेक देशों में हिंदी न केवल अध्ययन एवं अध्यापन की भाषा है बल्कि जनसंचार के माध्यमों में भी हिंदी का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है, जो हिंदी के विश्वभाषा की और बढ़ते व मजबूत कदमों को दर्शाते हैं।
भाषाई संरक्षण पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी भाषाओं को आने वाली पीढ़ियों को हस्तगत करें। डॉ अरविंद ने अपने व्याख्यान में नई शिक्षा नीति के भाषिक संदर्भों एवं त्रिभाषा फार्मूला पर भी प्रकाश डाला।
प्रो. हेमन पाठक ने छात्राओं को बताया कि वर्तमान हिंदी का ये विकास भारतीयता व अन्य भारतीय भाषाओं के उत्तरोत्तर विकास की ओर इंगित करता है। अतः इस विकास को और गति देने के लिए हमें हिंदी को अधिक से अधिक व्यवहार तथा ज्ञान – विज्ञान के क्षेत्र में लाना होगा।
कार्यक्रम में शोधार्थियों और छात्राओं के साथ ही प्रो. निपुर सिंह, प्रो. रेणु शुक्ला, डॉ नीना गुप्ता, डॉ रीना वर्मा, डॉ बबिता शर्मा, डॉ अर्चना डिमरी, डॉ अजित सिंह तोमर, डॉ सुनील कुमार, डॉ रचना पांडेय, डॉ रचना चौहान एवं डॉ अंजुलता सहित कई शिक्षिकाएं उपस्थित रहीं।