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चंडीगढ़ में हरदा की चिन्ता: मोदी सरकार ढहाएगी अत्याचार, रिटायर्ड IAS तीन-तीन दलों के लिए एक साथ कर रहा उगाही, कद्दू कटेगा-बंटेगा सिद्धांत अपना रहे, लड़ते-लड़ते युद्ध भूमि में मेरा दम ही क्यों न निकल जाए पर लड़ूँगा

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चंडीगढ़/देहरादून: अति उत्साह में पंजाब कांग्रेस प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू और चार कार्यकारी अध्यक्षों को ‘पंज प्यारे’ बोलकर फंसे कांग्रेस प्रदेश हरीश रावत ने माफी माँग गुरुद्वारे में झाड़ू निकालने का फैसला कर राजनीतिक विरोधियों के हाथ से मुद्दा भले छीन लिया हो। लेकिन उत्तराखंड की बाइस बैटल में खुद के खिलाफ राजनीतिक विरोधियों के ध्रुवीकरण और मोदी सरकार से मिलने वाले संभावित किसी झटके की आशंका हरदा को बेचैन कर रही है।

चंडीगढ प्रवास के दौरान सोशल मीडिया में एक पोस्ट के ज़रिए हरीश रावत ने अपनी चिन्ताओं का इज़हार करते कहा है कि वे राजनीति में सबकुछ हासिल कर चुके लेकिन अब लड़ाई स्वयं सिद्धि के लिए नहीं बल्कि सिद्धांत, पार्टी, समाज, देश, प्रांत के प्रति समर्पण के मद्देनज़र लड़नी पड़ती हैं। फिर चाहे ऐसी लड़ाई लड़ते-लड़ते युद्ध भूमि में दम ही क्यों न निकल जाए। हरीश रावत कहते हैं कि आज उनके सामने भी पार्टी, पार्टी के सिद्धांत, पार्टी की नेतृत्व उत्तराखंड, उत्तराखंडियत, राज्य आंदोलन के मूल तत्वों की रक्षा का सवाल खड़ा है।


हरीश रावत केन्द्र की मोदी सरकार पर हमलावर होते कहते हैं कि मुझे पुख़्ता आभास है कि केन्द्र में सत्तारूढ़ दल मेरे ऊपर कई तरह के अत्याचार ढहाने की कोशिश करेगा लेकिन उसी आभास से चुनाव में लड़ने की संकल्प शक्ति भी बढ़ती जा रही। हरदा एक रिटायर्ड आईएएस के एक्टिव होने की ओर इशारा करते कह रहे हैं कि एक रिटायर्ड नौकरशाह सत्ताधारी दल से लेकर तीन-तीन दलों के लिए राजनीतिक उगाही कर रहा है और खनन की उगाही भी बँट रही है। वहीं कांग्रेस नेता हरीश रावत आम आदमी पार्टी पर भी इशारों-इशारों में हमला बोलने से नहीं चूकते हैं।


यहाँ पढ़िए हुबहू हरदा ने क्या-क्या कहा:-

चंडीगढ़ में हूंँ, आज सुबह बहुत जल्दी आंख खुल गई थी। मन में बहुत सारे अच्छे और आशंकित करने वाले, दोनों भाव आये। कभी अपने साथ लोगों के द्वेष को देखकर मन करता है कि सब किस बात के लिये और फिर मैं तो राजनीति में वो सब प्राप्त कर चुका हूंँ जिस लायक में था। फिर मन में एक भाव आ रहा है, सभी लड़ाईयां चाहे वो राजनैतिक क्यों न हों, वो स्वयं सिद्धि के लिए नहीं होती हैं। सिद्धांत, पार्टी, समाज, देश, प्रांत कई तरीके के समर्पण मन में उभर करके आते हैं, कुछ लड़ाईयॉ उसके लिए भी लड़नी पड़ती हैं, चाहे उसको लड़ते-2 युद्ध भूमि में ही दम क्यों न निकल जाय! मेरे सामने भी पार्टी, पार्टी के सिद्धांत, पार्टी का नेतृत्व उत्तराखंड, उत्तराखंडियत, राज्य आंदोलन के मूल तत्वों की रक्षा आदि कई सवाल हैं। मैं जानता हूंँ कि केंद्र में सत्तारूढ़ दल, मेरे ऊपर कई प्रकार के अत्याचार ढहाने की कोशिश करेगा, उसकी तैयारियां हो रही हैं, मुझे आभास है और पुख्ता आभास है, मगर ज्यों-2 ऐसा आभास बढ़ता जा रहा है, चुनाव में लड़ने की मेरी संकल्प शक्ति भी बढ़ती जा रही है। एक नहीं, कई निहित स्वार्थ जो अलग-अलग स्थानों पर विद्यमान हैं, मेरे राह को रोकने के लिए एकजुट हो रहे हैं। क्योंकि जिस तरीके का उत्तराखंड मैंने बनाने की कोशिश की है, वो बहुत सारे लोगों के राजनैतिक व आर्थिक स्वार्थों पर चोट करता है। एक रिटायर्ड नौकरशाह आजकल सत्तारूढ़ दल ही नहीं बल्कि तीन-तीन राजनैतिक दलों के लिये एक साथ राजनैतिक उघाई कर रहे हैं, खनन की उघाई भी बट रही है। उत्तराखंड में बहुत सारे लोगों के आर्थिक स्वार्थ जुड़े हुए हैं, उन लोगों को भी एकजुट करने का प्रयास हो रहा है ताकि वो कुछ मदद सत्तारूढ़ दल की करें और तो कुछ कद्दू कटेगा-बटेगा के सिद्धांत पर कुछ आवाजों को बंद करने के लिए उनमें बांट दें। यदि सत्तारूढ़ दल मुझे युद्ध भूमि में राजनैतिक अस्त्रों से प्रास्त करने के बाद अन्यान्य अस्त्रों की खोज में है तो दूसरी तरफ एक राजनैतिक दल किसान और कुछ राजनैतिक स्वार्थों के साथ राजनैतिक दुरासंधि हो रही है, कहीं-कहीं 22 नहीं तो 2027 की सुगबुगाहट भी हवाओं में है। मगर चंडीगढ़ का यह एकांत मुझे प्रेरित कर रहा है कि जितनी शक्ति बाकी बची है, उससे उत्तराखण्ड और उत्तराखंडियत की रक्षा व पार्टी की मजबूती के लिए जो मैं अपने व्यक्तिगत कष्ट, मान-अपमान और यातनाओं को झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए और जब मैं अपने भावों के स्पंदन को विराम दे रहा हूंँ तो राजनैतिक संघर्ष का संकल्प मेरे मन में और होकर मुझे प्रेरित कर रहा है। “जय हिंद” जय उत्तराखंड_जय_उत्तराखंडियत

हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखंड

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