ADDS ANALYSIS: कहते है लोकतंत्र में चुनावी जीत ही किसी भी नेता और दल की पॉपुलैरिटी का अंतिम पैमाना होती है। इस लिहाज से रविवार को आए छह राज्यों के सात विधानभा सीटों के उपचुनाव नतीजे कांग्रेस और इसके नए नवेले राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए खतरे की घंटी बजाने वाले रहे हैं। दक्षिण भारत में कामयाब बताई जा रही कांग्रेस की “भारत जोड़ो यात्रा” के बावजूद एक सीट पर हार के बाद राहुल गांधी पर भी उठ रहे हैं।
दरअसल विधानसभा उपचुनाव नतीजों में बीजेपी ने सात में से चार सीट जीतकर मुकाबला अपने नाम कर लिया तो आरजेडी, शिवसेना उद्धव गुट और टीआरएस ने भी एक एक सीट जीत अपना दमखम दिखा दिया है लेकिन कांग्रेस के हिस्से करारी हार लगी है। इन उपचुनावों में कांग्रेस ने अपने दो मजबूत गढ़ लूटा दिए हैं।
पहला हरियाणा की आदमपुर सीट, जहां पूर्व सीएम भजन लाल के पोते भव्य बिश्नोई ने बीजेपी के टिकट पर कांग्रेस को शिकस्त दी है। दूसरा झटका तेलंगाना की मुनुगोडे सीट गंवाकर कांग्रेस को लगा है। इन दोनों ही सीटों कर पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की थी लेकिन गुटबाजी और झगड़े के चलते दोनों विधायक पालाबदल गए और उपचुनाव में दोनों सीटें कांग्रेस गंवा बैठी।
हरियाणा में तो कांग्रेस फाइट में दिखी भी लेकिन तेलंगाना की मुनुगोडे सीट पर तो पार्टी कैंडिकेट पलवई गोवर्धन रेड्डी की जमानत ही जब्त हो गई है। जबकि पिछले ही चुनाव में कांग्रेस ने यह सीट 37 हजार वोटों के अंतर से जीती थी। चिंताजनक यह भी है कि इस सीट पर तब उपचुनाव प्रचार ही रहा था जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी तेलंगाना में ही “भारत जोड़ो यात्रा” निकाल रहे थे।
अब एक तरफ राहुल गांधी की यात्रा में दिख रहा लोगों का उत्साह और दूसरी तरफ अपने गढ़ में ही हार जीत से कहीं दूर जमानत जब्त होने की नौबत! यह वहीं तेलंगाना राज्य है जिसको बनाने का श्रेय कांग्रेस और सोनिया गांधी को दिया जाता रहा है लेकिन उपचुनाव में पार्टी के गढ़ में आपने सामने का मुकाबला राज्य की सत्ता पर काबिज TRS और केंद्र की सत्ता पर काबिज BJP के उम्मीदवारों के बीच देखने को मिला।
कांग्रेस ने इन उपचुनाव में तीसरी सीट ओडिशा की धामपुर पर हुए उपचुनाव में भी उम्मीदवार उतारा था लेकिन यहां भी लड़ाई BJP वर्सेज BJD रही और तमाशबीन बनकर कांग्रेस चौथे स्थान पर सिमट गई। यानी सात सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के हिस्से सिफर आया है और इसी से नए नवेले राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने आसन्न चुनौतियों की कल्पना की जा सकती है।
खड़गे का अध्यक्षीय डेब्यू तीन सीटों पर न केवल हार के साथ हुआ है बल्कि कहीं अपने गढ़ में जमानत जब्त तो कहीं चौथे स्थान पर खिसक जाने जैसे नतीजों के साथ हुआ है। अकेले खड़गे ही नहीं तेलंगाना में राहुल गांधी की मौजूदगी भी मुनुगोडे का गढ़ बचाने के काम नहीं आई उससे अकेले यात्रा के भरोसे 2024 या आगामी विधानसभा चुनाव जीत लेने की कल्पना करना भी बेमानी होगा।