अड्डा Analysis: कुछेक राज्यों में गठबंधन सरकारें छोड़ दें तो देश की ग्रैंड ओल्ड पार्टी की सत्ता अब महज दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही बची है। लेकिन अब कांग्रेस के सामने बचे-खुचे इन दो राज्यों को बचाने की भी चुनौती आन खड़ी हुई है। मध्यप्रदेश के साथ साथ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और राजस्थान में कांग्रेस के लिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव ने चुनौती और बढ़ा दी है। जी हां कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव राजस्थान में सत्ता की लड़ाई में उसके लिए जी का जंजाल बन गया है। आपको ऐसा नहीं लग रहा तो फिर आइए समझ लेते हैं कि हमें ऐसा क्यों लग रहा।
जैसा कि आप जान ही चुके हैं कि साढ़े 3000 किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा पर निकले राहुल गांधी सिर्फ राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव ही नहीं लड़ रहे बल्कि 24-30 सितंबर के दरम्यान जब दिल्ली में कांग्रेस प्रेजिडेंट इलेक्शन का नॉमिनेशन होगा तब वे दिल्ली में ही नहीं रहेंगे। हां, राहुल 23 सितंबर को यात्रा से ब्रेक लेकर अपनी मां सोनिया गांधी से जरूर मिलकर जाएंगे। अब संभव है कि प्रेजिडेंट इलेक्शन को लेकर वो कोई अपनी बात कहकर जाएं!
यानी इतना अब साफ साफ दिख रहा कि करीब 24 साल बाद कांग्रेस संगठन की कमान किसी गैर गांधी के हाथ में जा रही है क्योंकि 1998 में सीताराम केसरी से कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी छीनकर सोनिया गांधी को मिली थी जिसके बाद बीच में
2017-2019 तक राहुल वरना सोनिया गांधी ही पार्टी की मुखिया रहीं। लेकिन अब लड़ाई में दो गैर गांधी आमने सामने आते दिख रहे हैं, एक गांधी परिवार के वफादार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और दूसरे असंतुष्ट गुट ग्रुप 23 में शुमार केरल से सांसद शशि थरूर।
शशि थरूर लोकतांत्रिक मूल्यों की दुहाई देते चुनावी दंगल में पारदर्शी सांगठनिक मुखिया की लड़ाई के हिमायती हैं तो अशोक गहलोत न सिर्फ गांधी परिवार के वफादार बल्कि 40 साल के सांगठनिक तजुर्बेकार भी ठहरे। फिलहाल राजस्थान के मुख्यमंत्री हैं और पार्टी आलाकमान ने उनको चार साल पहले सचिन पायलट के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर चुनावी जीत के हकदार होने के बावजूद तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाया था। कांग्रेस क्या पंजाब की तर्ज पर राजस्थान भी लुटा बैठेगी इस सवाल की नींव इसी पेंच से पड़ने लगती है।
वो सीन सभी को याद होगा जब सीएम न बन पाने से आहत सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों को लेकर मानेसर लैंड कर गए थे। फिर राहुल प्रियंका से बात बनी तो बगावत टली लेकिन अदावत पूरी आज भी बरकरार है। अब अगर गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नामांकन कर रहे हैं तो जीत भी पक्की ही समझिए क्योंकि शशि थरूर केरल से ही समर्थन जुटा पाएं इसकी संभावना न्यून ही है। अब जब गहलोत अध्यक्ष बन रहे तो पायलट ने बोल दिया है कि कांग्रेस में एक व्यक्ति दो पद नहीं चलेंगे।
तो क्या गहलोत कांग्रेस बचाने के लिए कुर्सी अपने प्रतिद्वंद्वी को तोहफे में सजाकर दे देंगे? जाहिर है सवाल खत्म हो उससे पहले ही इसका जवाब कोई भी दे देगा कि सवाल ही पैदा नहीं होता। अब अगर गहलोत दिल्ली गए और तब भी पायलट घर बैठकर भविष्य में कुर्सी मिलेगी इस तरह के हसीन सपनों के जहाज उड़ाते रहेंगे तब तो ठीक है वरना वे गहलोत के डमी को राजस्थान का मुख्यमंत्री स्वीकार करने से रहे।
जबकि गहलोत कहेंगे कि साहब दिल्ली में जब मैं गांधी परिवार का डमी बनकर अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठ रहा हूं तो पहले तो राजस्थान के मुख्यमंत्री की कुर्सी भी मेरे पास ही रहे और एक व्यक्ति एक पद का डंडा है तो सीएम वही जो मेरे मन भाए। बस पहले गहलोत के हाथों और उसके बाद अगर उनके प्यादे के हाथों भी मात खाने को मिलेगी तो भला सचिन पायलट इसे पचा पाएंगे ये उनके सब्र के डायजेशन के परीक्षण का वक्त होगा।
वैसे भी गहलोत ने जब आज तक मुख्यमंत्री रहते विधायकों को पायलट कैंप के पास फटकने नहीं दिया तब राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उनके सीएम बनने के सपने को निष्कंटक पूरा होने देंगे इसकी उम्मीद कम ही है फिर भी आप करना चाहे तो कर सकते हैं।
अब अगर गहलोत दिल्ली में संगठन और उनकी पसंद का मुखौटा राजस्थान को सत्ता पर काबिज हो जायेगा तो मरू भूमि पर कांग्रेस वर्सेज भाजपा का महाभारत होगा या फिर पहले कुरुक्षेत्र गहलोत वर्सेज पायलट होगा सहज कल्पना कर सकते हैं।
अब बताइए पंजाब में क्या हुआ था? ठीक चुनाव से पहले नवजोत सिंह सिद्धू को अध्यक्ष और कैप्टन अमरिंदर सिंह से मुख्यमंत्री की कुर्सी लेकर चरणजीत सिंह चन्नी की ताजपोशी की गई थी लेकिन उसके बाद क्या दुर्गति हुई इसका किसी को कहां अंदाजा रहा था। कहने को तब चन्नी को दलित और सिद्धू को जट सिख चेहरा बनाकर जीत का फॉर्मूले का दावा ठोका गया था।
अब राजस्थान की राजनीतिक लड़ाई तो वैसे भी बेहद कठिन है। जहां हर बार बारी बारी सत्ता में भागीदारी भाजपा और कांग्रेस में दशकों से होती आ रही वहां गहलोत को दिल्ली में दायित्व और पायलट को असंतुष्ट करना मतलब भाजपा की जीत की राह आसान बनाना होगा।
सवाल है कि क्या पंजाब पार्ट टू दोहराने से बच पाएगी कांग्रेस? जवाब, भारत जोड़ो यात्रा से फुरसत मिलेगी तो शायद राहुल गांधी जरूर तलाश कर पाएंगे। अब जैसे एक दर्जन से ज्यादा राज्यों की कांग्रेस ने अध्यक्ष बनने को लेकर अभी भी राहुल गांधी से ही उम्मीद लगाई है उसी तरह राजस्थान में सरकार बचाने की फिक्र और तुरूप चाल उनके पास होगी ऐसी खुशफहमी तो कम से कम पाल ही सकते हैं।