देहरादून: चुनावी दौर में नेताओं का एक दल से दूसरे दल में आना-जाना आम बात है लेकिन कुछ नेताओं का जाना किसी के लिए तगड़ा झटका तो दूसरे के लिये ताकत बन जाता है। पहाड़ पॉलिटिक्स में धामी सरकार में मंत्री रहे यशपाल आर्य का अपने विधायक पुत्र संजीव आर्य के साथ कांग्रेस में घर वापसी करना इसी का ताजा उदाहरण है। जहां आर्य पिता-पुत्र के जाने से बीजेपी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है तो एक दलित चेहरे के तौर पर आर्य की एंट्री को कांग्रेस अपने लिए एक बड़ी बढ़त मान रही है।
सोमवार को पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य घर वापसी के बाद पहली बार कांग्रेस मुख्यालय राजीव भवन पहुँचे तो उनके ज़ोरदार स्वागत में उमड़ी भारी भीड़ और तमाम कैंपों के नेताओं का आर्य के साथ मंच पर जुटना कांग्रेस के उत्साह का साफ संकेत देता है। यानी आर्य की कांग्रेस में एंट्री को जहां हरदा कैंप झूम रहा है तो प्रीतम कैंप भी इससे नए जोश में हैं। कांग्रेस मुख्यालय राजीव भवन में हरीश रावत, प्रीतम सिंह और गणेश गोदियाल ने कुछ इसी अंदाज में आर्य को वेलकम कहा। हरदा ने तो यहाँ तक कह दिया कि आर्य के भाजपा छोड़कर आने से सत्ताधारी दल में भूचाल आ गया है और अब लोग लाइन में खड़े हैं कांग्रेस ज्वाइन करने को।
कांग्रेसियों के ज़ोरदार स्वागत से गदगद आर्य ने भावुक होकर कहा कि साढ़े चार साल तक सिर्फ मेरा शरीर भाजपा में था लेकिन आत्मा कांग्रेस के साथ ही रही। आर्य ने कहा कि भाजपा में केवल तानाशाही है और 2022 में सबक सिखाएंगे।
आर्य ने कहा कि अब मेरा धर्म-कर्म है कि कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो और कांग्रेस में ही लोकतंत्र है और अगर कांग्रेस मजबूत होगी तो लोकतंत्र मजबूत होगा। दरअसल आर्य 2017 के चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। इससे पहले आर्य सात साल तक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके थे और बहुगुणा से रावत सरकार तक कैबिनेट मंत्री भी रहे। आर्य 1989 में पहली बार खटीमा-सितारगंज विधासनभा सीट से विधायक चुने गए थे और उसके बाद से छह बार विभिन्न सीटों से यूपी व उत्तराखंड विधानसभा पहुँचते रहे हैं।
अब पांच साल बाद कांग्रेस मुख्यालय पहुँचे आर्य की एंट्री ने पार्टी कॉरिडोर्स में तो सियासी हलचल पैदा कर ही दी है, सत्ताधारी दल के भीतर भी भारी बेचैनी पैदा कर दी है। बेचैनी इसलिए भी कि बाकी बागी भी ऐसा कदम न उठा लें और इससे ज्यादा बेचैनी इसे लेकर कि आर्य के जाने से प्रदेश का एक बड़ा दलित वोटबैंक फिर से कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो सकता है। दरअसल भाजपा की यही बेचैनी देखकर कांग्रेसी गदगद हैं और दावा किया जा रहा है कि कुमाऊं के पर्वतीय जिलों से लेकर तराई-मैदान तक यशपाल आर्य 17-18 फीसदी दलित वोट को पंजे के पक्ष में लामबंद करेंगे ही कई दूसरे तबक़ों के वोटर्स भी छिटकेंगे।
कांग्रेस अध्यक्ष रहते आर्य के खाते में जहां 2009 की पांच की पांच लोकसभा सीटों पर जीत का रिकॉर्ड है तो 2012 में भाजपा पर एक सीट की बढ़त से बनी कांग्रेस सरकार का श्रेय भी जुड़ता है। करीब सात साल प्रदेश अध्यक्ष रहे आर्य बाइस बैटल को लेकर कांग्रेस की सियासी बिसात पर रणनीतिक दांव-पेंच में अहम भूमिका निभा सकते हैं। इतना ही नहीं आर्य हरदा वर्सेस प्रीतम कैंप वॉर के शांत कराने में भी कड़ी का काम कर सकते हैं। इतना ही नहीं आर्य के संपर्क में ऐसे कई नेता हैं जो पालाबदल की स्थिति में भाजपा के जहाज से छलांग लगाने तो तैयार बैठे हैं।
पिछले दिनों गोविंद सिंह कुंजवाल ने बगावत को आतुर जिन छह विधायकों का जिक्र किया उसमें दो-तीन ऐसे नाम हैं जो आर्य की घर वापसी के बाद छलांग मारने को तैयार बैठे हैं। जाहिर है आर्य की एंट्री से कांग्रेसियों का जोश हाई दिख रहा लेकिन अब बाइस बैटल में कांग्रेस को भाजपा पर इक्कीस साबित करने को लेकर दबाव न केवल हरदा-प्रीतम पर है बल्कि आर्य के सामने भी उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती है।