ADDA INSIDER भाजपा का ‘अबकी बार 60 पार’ का नारा, भितरघात पर अब तक चार विधायकों का हाई पारा: क्या ‘अपनों’ के सितम से चंद विधायक ही ‘घायल’ या फिर सीएम पुष्कर सिंह धामी से लेकर प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक तक कई दिग्गज ‘लहुलुहान’?

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देहरादून: वोटिंग खत्म होते ही भितरघात और ‘अपनों’ की ग़द्दारी को लेकर लक्सर विधायक संजय गुप्ता के रोना रोने के बाद भाजपा विधायकों की नाराजगी का जो सिलसिला शुरू हुआ वो आज तक लगातार जारी है। अब तक चार विधायकों का भितरघात को लेकर गुस्सा फूटा है लेकिन भाजपा कॉरिडोर्स में चर्चा है कि बाइस बैटल में विधायक तो विधायक सीएम पुष्कर सिंह धामी से लेकर प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक सहित कई दिग्गज ‘अपनों’ के सितम से चुनावी मैदान में दुश्मन से लोहा लेने से पहले ही ‘लहुलुहान’ हुए हैं।

संजय गुप्ता ने हार स्वीकार करते सीधे प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक पर हमला बोला तो चंपावत विधायक कैलाश गहतोड़ी और विधायक हरभजन सिंह चीमा ने पार्टी के भीतर से उनके बेटे और काशीपुर प्रत्याशी त्रिलोक सिंह चीमा के खिलाफ भितरघात करने का आरोप लगाया। अब शनिवार को देहरादून भाजपा कार्यालय पहुँचे यमुनोत्री विधायक केदार सिंह रावत ने भी आरोप लगा दिया है कि उनकी उनके विधानसभा क्षेत्र में संगठन के पदों पर बैठे लोगों ने भितरघात किया। हालाँकि केदार रावत ने दावा किया है कि पार्टी संगठन से हुई इस भितरघात के चलते अंतर भले कम हो जाए लेकिन वे चुनाव जीत जाएंगे।

कहने को भाजपा संगठन की तरफ से तमाम पार्टी विधायकों और प्रत्याशियों को हिदायत दी गई है कि चुनावी रिपोर्ट और भितरघात की बातें पार्टी फ़ोरम में ही रखें लेकिन एक के बाद एक विधायकों का दर्द समझिए या गुस्सा, मीडिया के सामने ही फूट रहा है। लेकिन क्या भितरघात से कुछेक विधायक ही ‘घायल’ हुए हैं या फिर पार्टी के सीएम पुष्कर सिंह धामी से लेकर प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक तक कई ‘लहुलुहान’ हैं?

भाजपा गलियारे में चल रही यह चर्चा कोरी अफ़वाह या किसी नेता-कार्यकर्ता की दिमाग़ी उपज भर नहीं हैं बल्कि सत्तारूढ़ दल के दिग्गजों के कैंप का वो सियासी डर है जो उनकी नींद उड़ाए है और बेसब्री से इंतजार सिर्फ 10 मार्च का है। दरअसल, बाइस बैटल को प्रदेश भाजपा ने या तो प्रधानमंत्री मोदी के मैजिक की आस में बेहद बेफ़िक्री से लड़ा या फिर इस चुनाव में क्षत्रपों ने जंग में विरोधी से पहले ‘अपनों’ को निपटाने वाले कांग्रेसी दांव का जमकर इस्तेमाल किया है! अब इसे पार्टी के दोबारा सत्ता हासिल करने पर मुख्यमंत्री की कुर्सी कब्जाने की आंतरिक जंग समझें या कुछ और, दिग्गज नेताओं ने अपना चुनाव जीत लेने और दूसरे दावेदारों को ढेर कर देने की नीति अपनाए रखी।

अगर ऐसा न होता तो प्रदेशभर में शराब को लेकर सबसे ज्यादा छापेमारी सिर्फ हरिद्वार शहर में देखने को नहीं मिलती! कौशिक कैंप में यहाँ तक चर्चा चली कि हरिद्वार ही नहीं छापेमारी दस्ते देहरादून तक से भेजे गए। तो क्या सीएम धामी और मंत्री स्वामी की दोस्ती का असर था ये या सिर्फ कौशिक कैंप के कुछ नादान सिपहसालारों की खामख्याली! फिर हरिद्वार ग्रामीण सीट पर AAP प्रत्याशी के कौशिक से कनेक्शन की चर्चा कहां से चुनाव भर चलती रही! यह भी कोई छिपी बात नहीं रही कि हरिद्वार शहर में टीम मदन एक तरफ बाकी सब दूसरी तरफ का नजारा रहा।

उधर खटीमा में टीम धामी को भी लगातार ‘अपने’ ही कई दिग्गजों के तीरों को लेकर भी सतर्क होना पड़ा। एक चर्चा चुनाव के आखिरी दौर में यह भी जोर से होती रही कि वह कौनसा कद्दावर मंत्री है जिसने धामी के प्रतिद्वन्द्वी को मदद पहुँचाई है। ‘अपनों’ के सितम से श्रीनगर में धन सिंह रावत जूझे तो चौबट्टाखाल में पूरे परिवार के साथ महीनेभर मंत्री महाराज को भी इसी डर के चलते कैंप करना पड़ा।

देहरादून जिले की कई सीटों पर भी भाजपाई प्रत्याशी दम साधे चुप पड़े हैं वरना भितरघात और ‘अपनों’ का सितम कोई कम नहीं झेलना पड़ा है। सवाल है कि क्या भितरघात पर भाजपाई प्रत्याशियों का दर्द छलकता रहेगा और असर फोड़ा 10 मार्च के नतीजे देखने के बाद भी फूटेगा!


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