- क्या 10 नाम भेजकर सीएम धामी और प्रदेश अध्यक्ष कौशिक ने छुड़ाया पिंड
- न कोई फ़ॉर्मूला न तीन या पांच नामों का पैनल जिसके किया दावा आलाकमान को भेज दिया नाम
- जब फैसला भाजपा आलाकमान को ही करना तो 10 नाम भेजने की कसरत भी क्यों की?
- पैनल न बनाकर बड़े-छोटे, अनुभवी- नए नवेले सबके नाम भेजे दिए राज्यसभा के लिए
- संभवतया प्रदेश नेतृत्व नहीं बनना चाहता किसी के लिए बुरा!
देहरादून: प्रदेश भाजपा नेतृत्व ने राज्यसभा की खाली हो रही एक सीट के लिए 10 नामों का पैनल बनाकर पार्टी के केन्द्रीय आलाकमान को भेज दिया है। आमतौर पर पैनल का मतलब 3 या 5 नामों की लिस्ट होता है लेकिन ऐसा लगता है कि प्रदेश नेतृत्व को जो उचित लगा या जिस भी छोटे-बड़े नेता ने दावेदारी पेश की उसी का नाम पैनल में जोड़कर दिल्ली भेज दिया। इसे एक तरह से सारे झगड़े से पिंड छुड़ाना भी कह सकते हैं। या फिर ये कहिए कि इतने नाम भेज दो कि आलाकमान ही सिर पकड़ कर बैठ जाए और लंबी चौड़ी लिस्ट से तौबा कर नया ही नाम तय कर दिया जाए।
सवाल उठता है कि क्या प्रदेश नेतृत्व चाहता ही नहीं कि प्रदेश के नेता को संसद के ऊपरी सदन जाने का मौका मिले। यानी किसी बाहरी चेहरे को राज्य से संसद भेजने का रास्ता साफ हो जाए। जाहिर प्रदेश नेतृत्व से आशय प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक से तो स्वाभाविक तौर पर हैं ही, पार्टी की सरकार के मुखिया के नाते मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी इससे बाहर नहीं समझे जा सकते हैं। ऐसे में क्या यह न मान लिया जाए कि धामी-कौशिक के स्तर पर राज्यसभा के मुद्दे पर नामों का पैनल तैयार करने में बिलकुल भी मेहनत या गंभीरता नहीं दिखाई गई!
अगर आप प्रदेश से गए 10 नामों पर गौर करेंगे तो ऊपर के तमाम सवाल आपको वाजिब लगेंगे। 10 नामों में जहां चार साल तक मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह, सांगठनिक व्यूहरचना के धुरंधर पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष ज्योति प्रसाद गैरोला जैसे नाम शामिल हैं तो प्रदेश महामंत्री कुलदीप कुमार और भाजपा अनुशासन समिति के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष केदार जोशी का नाम भी है और कल्पना सैनी, श्यामवीर सैनी, आशा नौटियाल और स्वराज विद्वान के नाम शुमार हैं। इस जंबो पैनल में पूर्व सीएम विजय बहुगुणा और सीएम धामी के लिए सीट छोड़ने वाले पूर्व विधायक कैलाश गहतोड़ी का नाम नहीं बताया जा रहा है।
चंपावत उपचुनाव का नतीजा तीन जून को आएगा जिससे विधानसभा में संख्याबल में मामूली बदलाव होगा। लेकिन इससे राज्यसभा चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि राज्यसभा की खाली हो रही एक सीट पर 10 जून को चुनाव प्रस्तावित है और आज के दिन भी 46 विधायकों के बूते ही भाजपा की जीत सुनिश्चित है। सवाल है कि राज्यसभा के लिए किस नाम पर भाजपा आलाकमान मुहर लगाता है क्योंकि प्रदेश नेतृत्व ने अपनी ज़िम्मेदारी बचते हुए गेंद आलाकमान के पाले में ही फेंक दी है।
सवाल है कि जब आम तौर पर तीन से पांच नामों का पैनल भेजने की परिपाटी रही है तो कोई फ़ॉर्मूला बनाकर पैनल को छोटा करने की ज़हमत क्यों नहीं उठाई गई? क्या प्रदेश के नेतृत्व को राज्य के किसी योग्य और मजबूत नेता को राज्यसभा भेजे जाने पर नए समीकरण बनने का रिस्क रोक दे रहा था नामों पर होमवर्क करने से? क्या आलाकमान ने केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल या किसी और नाम को लेकर पहले से मन बना रखा है। लिहाजा जिसने दावा किया उसी का नाम शामिल कर बड़ा पैनल बनाकर भेज दिया गया?
बहरहाल वजह जो भी हो लेकिन यह तय है कि राज्यसभा की एक सीट को लेकर प्रदेश नेतृत्व ने खुद को कमजोर साबित कर दिया है। प्रदेश नेतृत्व की कमजोरी झलकने से अब तय है कि केन्द्रीय नेतृत्व फैसला लेते स्थानीय पक्ष पर बहुत गौर नहीं करना चाहेगा क्योंकि राज्य नेतृत्व ने तीन या पांच नामों की बजाय 10 नाम भेजकर खुद को फैसले से दूर खड़ा कर लिया है।
वरना प्रदेश नेतृत्व छोटा पैनल भेजता और उसके पीछे का फ़ॉर्मूला और समीकरण भी रखता। यह सही है कि राज्यसभा सीट जैसे मसलों पर कोई भी दल रहे अंतिम फैसला केन्द्रीय नेतृत्व ही करता है। लेकिन तर्कपूर्ण ढंग से तीन या पांच नाम भेजकर प्रदेश नेतृत्व संदेश दे सकता था कि वह न केवल कॉम्पिटेंट है बल्कि होमवर्क में पसीना भी बहाना जानता है। शायद प्रदेश नेतृत्व जानबूझकर इस तरह का मैसेज देने से चूक गया!