ADDA ANALYSIS..तो उत्तराखंड में उपचुनाव को लेकर न था कोई संवैधानिक संकट और न ही कोरोना बनता बाधक! ममता तो सिर्फ थी बहाना बीजेपी को तीरथ था हटाना

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चुनाव आयोग का ऐलान 30 सितंबर को होंगे उपचुनाव: ममता तो बहाना असल में था तीरथ को निपटाना! टीएमसी ने पैरवी की हो रहे चुनाव बीजेपी ने चुनाव आयोग की जाने की बजाय तीरथ को चलता कर उत्तराखंड पर थोपा नेतृत्व परिवर्तन

दिल्ली/देहरादून: भारतीय निर्वाचन आयोग ने आज ऐलान किया है कि ओडीशा की एक विधासनभा सीट और पश्चिम बंगाल की तीन विधासनभा सीटों पर 30 सितंबर को उपचुनाव कराया जाएगा। पश्चिम बंगाल में जिन तीन सीटों पर उपचुनाव होगा उसमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जहां से चुनाव लड़ेंगी वह भबानीपुर विधानसभा सीट भी शामिल हैं। ममता बनर्जी विधानसभा चुनाव प्रचंड बहुमत से जीतने के बावजूद बीजेपी उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी के हाथों नंदीग्राम में हार गई थी। लिहाजा ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री की शपथ के छह माह के भीतर पश्चिम बंगाल विधानसभा की सदस्यता लेनी है, जो समयसीमा पांच नवंबर को खत्म होगी। 30 सितंबर को पश्चिम बंगाल की दो और सीटों समसेरगंज और जंगीपुर सीट के साथ-साथ ओडीशा की पिपली विधानसभा सीट पर भी वोटिंग होगी। 3 अक्तूबर को मतगणना होगी।


जाहिर है ममता बनर्जी के उपचुनाव को लेकर बनी ऊहापोह की स्थिति को देखते हुए टीएमसी सांसदों-नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने दो बार चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया था। टीएमसी की चिन्ता केन्द्र सरकार के साथ चलते उसके टकराव को देखते हुए बढ़ी हुई थी और कोरोना के कहर में चुनाव आयोग उपचुनाव को तैयार नहीं दिख रहा था। लेकिन अब कोरोना के हालात क़ाबू में और टीएमसी का तरफ से लगातार बढ़ती माँग के बीच आयोग ने उपचुनावों का ऐलान कर दिया है।

चुनाव आयोग की घोषणा के साथ ही उत्तराखंड के राजनीतिक गलियारे में चर्चा तेज हो रही कि क्या अगर बीजेपी ने चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया होता तो क्या सितंबर से पहले तीरथ सिंह रावत की सीएम कुर्सी बचाने को आसानी से उपचुनाव नहीं हो सकता था! उत्तराखंड में पिछले दो माह में लगातार कोरोना केस घटते आए हैं जबकि बंगाल में आज भी कोरोना के दैनिक मामले सैंकड़ों में आ रहे।


पश्चिम बंगाल में शुक्रवार को 686 कोरोना पॉजीटिव मिले। 2 सितंबर को 695, 1 सितंबर को 679 और 31 अगस्त को 546, 30 अगस्त को 510, जबकि 29 अगस्त को 650 कोरोना पॉजीटिव पाए गए। इसके मुकाबले उत्तराखंड में जुलाई से लगातार केस घटते गए हैं और अगस्त में हालात काफी कंट्रोल में आ गए. सितंबर में भी अगस्त की तरह दैनिक केस 40 से नीचे ही आ रहे हैं।

जाहिर है न कोरोना न संवैधानिक संकट बीजेपी को रोक रहा था, असल में 2022 की जीत को लेकर पसीना-पसीना पार्टी नेतृत्व ने अपने इंटरनल सर्वे में तीरथ राज में अपनी स्थिति का आकलन कर लिया था और इसी जुगत में राज्य में नए सिरे से राजनीतिक अस्थिरता को हवा देकर चार माह पहले ही चेहरा बदल दिया। चुनाव आयोग ने ममता बनर्जी के बढ़ते दवाब और कोरोना के घटते मामलों के मद्देनज़र उपचुनाव कराने का ऐलान कर दिया है। जाहिर है पिछले दो माह में उत्तराखंड में भी कोरोना के हालात लगातार सुधरे हैं और इस दौरान सरकार के मुखिया की कुर्सी पर मँडराते संवैधानिक संकट से उबरने को आसानी से उपचुनाव हो सकता था।


बहरहाल अब कांग्रेस इसे लगातार हर मंच से मुद्दा बना रही है कि बीजेपी ने उत्तराखंड को अपनी पॉलिटिकल लैबोरेट्री बना डाला है। बीजेपी नेतृत्व पर विपक्ष की यह तोहमत इसलिए भी सटीक बैठती हैं क्योंकि चंद माह की अंतरिम सरकार में दो-दो मुख्यमंत्री देने से लेकर पहली चुनी सरकार में भी खंडूरी-निशंक -खंडूरी में तीन बार कुर्सी की अदला-बदली चली और 2017 में प्रचंड बहुमत की सरकार बनने के बाद भी बीजेपी ने अब तक तीन मुख्यमंत्री बदल डाले हैं।

बीजेपी सरकार में लगातार जल्दी-जल्दी मुख्यमंत्री बदलने का नतीजा यह है कि दो रोज पहले कैबिनेट मंत्री ने अपने बगल में मंचासीन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को संबोधन में पूर्व मुख्यमंत्री कह दिया तो उसके बाद मंत्री की जरा सी फिसली जुबान पर वहाँ मौजूद भाजपा नेता-कार्यकर्ताओं में जमकर ठहाके लगने शुरू हुए ही, प्रदेश के पॉवर कॉरिडोर्स में यह चुटकुला बनकर दौड़ गया कि क्या अब किसी भी दिन मुख्यमंत्री पद से पुष्कर सिंह धामी की भी विदाई होने वाली है क्या! दरअसल यह प्रहसन पहाड़ पॉलिटिक्स में मोदी-शाह के बावजूद बीजेपी नेतृत्व के गलत फैसलों की ऐसी कहानी कह रहा जिसे प्रदेश का बच्चा-बच्चा तक समझ गया है।


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