…तो क्या CM धामी के लिए हरीश धारचूला सीट छोड़ेंगे और कांग्रेस से जवाब देने हरदा उपचुनाव लड़ने उतरेंगे?

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देहरादून: पहाड़ पॉलिटिक्स बेहद दिलचस्प मोड़ पर है। हालाँकि चुनाव बीत चुके हैं और भाजपा दोबारा सत्ता पर क़ाबिज़ हो चुकी है लेकिन 2014 से लगातार चुनाव दर चुनाव शिकस्त खा कही कांग्रेस में अंदरूनी कलह कुरुक्षेत्र थमने की बजाय खुलकर सड़क पर आ चुका है। अब तो कांग्रेस के तीन बार के विधायक हरीश धामी ने ऐलान कर दिया है कि जनता के विकास के लिए 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के लिए सीट छोड़ दी थी, अब सीएम पुष्कर सिंह धामी के लिए भी धारचूला सीट से इस्तीफा देने को तैयार हूँ। हैं न रोचक मोड़ पर पहाड़ पॉलिटिक्स! फरवरी-मार्च में भाजपा के खिलाफ वोट माँगा और चुनाव जीते अब अप्रैल आते ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए सीट छोड़ने को व्याकुल हो उठे हैं हरीश धामी!

“मैं आहत हूं। 2014 में एक बार मैंने अपने क्षेत्र के विकास के लिए अपनी विधायकी छोड़ी थी। अगर एक बार फिर मेरे इलाके की जनता कहेगी तो मैं फिर इस्तीफा दे सकता हूं। पुष्कर धामी के लिए भी इस्तीफा देने के लिए तैयार हूं।”

अगर विधायक धामी की मन की मुराद सीएम धामी पूरी कर देते हैं तो क्या सीएम रहते धारचूला से विधायक बने हरीश रावत को में कांग्रेस जवाब देने के लिए उपचुनाव में उतारेगी? जाहिर है अभी हरीश धामी का ऑफर हवा में है लिहाजा यह सवाल भी हवाई ही है लेकिन जैसी खबरें लगातार आ रही कि अपने कारोबारी हितों की रक्षा को कुमाऊं से दो कांग्रेस विधायक सीएम धामी की हाँ के इंतजार में जेब में इस्तीफा लिए घूम रहे, उस हालात में आज की अटकलें, हवाई बातें कौन जाने कल हकीकत हो जाएँ!

दरअसल कांग्रेस में प्रीतम-हरदा कैंप में झगड़ा नया नहीं लेकिन करारी चुनावी हार के बाद रार चौराहे पर आ गई प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष और उपनेता प्रतिपक्ष का ऐलान होने के बाद। कहने को 19 में से 11 सीट कांग्रेस को कुमाऊं से मिली तो भाजपा की तर्ज पर कांग्रेस ने भी गढ़वाल इग्नोर कर फोकस उधर ही शिफ्ट कर दिया। लेकिन ऐसा लगता है कि तीनों पदों प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष और उपनेता प्रतिपक्ष पर जिनकी ताजपोशी हुई है उससे न प्रीतम खुश हैं और न हरदा!

नेता प्रतिपक्ष पद को लेकर अपनी दावेदारी पक्की मानकर चल रहे प्रीतम सिंह गुटबंदी के आरोप से चूक गए तो कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल और प्रभारी देवेन्द्र यादव को चुनौती दे डाली कि आरोप साबित करें तो वे विधायकी छोड़ देंगे। उधर हरदा कैंप की तरफ से मोर्चा हरीश धामी संभाले हुए हैं। हरीश धामी नई नियुक्तियों के ऐलान से पहले ही नेता प्रतिपक्ष पद पर दावेदारी ठोक चुके थे लेकिन हरदा-प्रीतम कैंप कलह में पार्टी आलाकमान ने फ़ॉर्मूला ऐसा निकाला कि दोनों ही कैंपों से न उगलते बन रहा न निगलते!

यूं करन माहरा पूर्व सीएम हरीश रावत के रिश्तेदार ठहरे यानी कहने को करीबी की ताजपोशी हुई प्रदेश अध्यक्ष पद के रूप में लेकिन माहरा से हरदा की पटरी काफी वक्त से बैठ नहीं रही। ऐसे ही यशपाल आर्य भी कांग्रेस में घर वापसी हरदा से बेहतर रिश्ते बनाकर हुई लेकिन आर्य खुद पुराने खांटी कांग्रेसी और एनडी तिवारी के करीबी रहे लिहाजा हरीश धामी जैसे किसी करीबी की नेता प्रतिपक्ष पद पर ताजपोशी हरदा को ज्यादा रास आती। ऊपर से सीएम पुष्कर सिंह धामी को धूल चटाकर विधानसभा पहुँचे भुवन कापड़ी की उपनेता प्रतिपक्ष पद पर नियुक्ति ने हरदा कैंप के कई विधायकों के जले पर नमक छिड़कने का काम कर डाला है।

अब नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने तमाम कांग्रेसियों को अपनी नाराजगी पार्टी फ़ोरम में ही रखने का संदेश दिया है। सवाल है कि क्या हरीश धामी से लेकर तमाम असंतुष्ट इसे मानेंगे भी? सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर सीएम पुष्कर सिंह धामी के लिए अपनी सीट खाली कर क्षेत्र के विकास को लालायित कांग्रेसी विधायकों की संख्या क्या सिर्फ हरीश धामी तक ही सीमित है या फिर कुमाऊं में ऐसे विकास की गंगा बहाने वालों की तादाद एक से ज्यादा है? वैसे किसी ने कहा सीएम धामी कतई नहीं चाहेंगे कि वे धारचूला के विकास का ऑफर स्वीकार करें क्योंकि वहां के विकास का ज़िम्मा हरदा भी 2014-2017 तक संभाल चुके लिहाजा उपचुनाव में ताल न ठोक दें!


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