New Parliament inauguration by PM Modi: रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत बनाए नए संसद भवन का उद्घाटन कर इसे राष्ट्र की समर्पित कर दिया है। यूं तो दक्षिण भारत के सबसे बड़े राज्य तमिलनाडु के अधीनम मठ द्वारा सौंपे गए सेंगोल को साष्टांग प्रणाम कर प्रधानमंत्री मोदी ने नए संसद भवन के लोकसभा सदन में इसे स्थापित कर दिया है। लेकिन उसी लोकसभा सदन में सांसदों को बढ़ी हुई सिटिंग कैपेसिटी दक्षिण भारत के राज्यों के लिए चिंता का सबब भी बनती दिखाई दे रही है।
दरअसल नई संसद के लोकसभा सदन में 543 नहीं बल्कि 888 सांसद बैठ सकेंगे। तो क्या 1976 के बाद से रुका परिसीमन आबादी को आधार मानकर आने वाले समय में जल्द होता दिखाई देगा? इस तरह की चर्चा और सवालों ने दक्षिण भारत के राज्यों को चिंता में डाल दिया है।
दक्षिण भारत के राज्यों की शिकायत इस बात को लेकर है कि गुजरे चार पांच दशकों में इन राज्यों ने परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण को लिंक सोशल सेक्टर में देश को बेहतर परिणाम दिए लेकिन अब अब उनको पॉलिटिकल रूप से कमजोर करने की कोशिश हो रही हैं। ज्ञात हो कि दक्षिण के राज्यों में औसत आबादी वृद्धि दर 12.1 प्रतिशत है जबकि उत्तर भारत के राज्यों में औसत आबादी वृद्धि दर 21.6 प्रतिशत। दैनिक भास्कर ने एक कैलकुलेशन पेश किया है जिसके तहत अगर जनसंख्या को आधार मानकर परिसीमन हुआ तो उत्तर भारत के हिंदी पट्टी के राज्यों के मुकाबले दक्षिण भारत के राज्यों की लोकसभा के सीटें करीब आधी रह जाएंगी।
अगर परिसीमन हुआ तो दक्षिण के पांच राज्यों की लोकसभा सीटें 42 प्रतिशत बढ़ेंगी जबकि उत्तर भारत के आठ हिंदी भाषी राज्यों की सीटें करीब दोगुना यानी 84 प्रतिशत तक बढ़ जाएंगी।
आज उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं और परिसीमन के बाद 67 सीटें बढ़कर 147 हो जाएंगी, जो 84 प्रतिशत बढ़ोतरी होगी। इसी तरह बिहार की 40 सीटें बढ़कर 76, मध्यप्रदेश की 29 से बढ़कर 53 सीटें, राजस्थान की 25 सीटें बढ़कर 50, झारखंड की 14 सीटें बढ़कर 24, छत्तीसगढ़ की 11 सीटें बढ़कर 18, हरियाणा की 10 सीटें बढ़कर 18,दिल्ली की 7 सीटें बढ़कर 12 हो जाएंगी।
इस तरह इन आठ राज्यों की सीटों में 84.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी और इसका मतलब होगा वर्तमान 216 सीटों में 182 सीटों की वृद्धि यानी परिसीमन के बाद 398 सीटें।
इस आधार पर उत्तर भारत के दूसरे राज्यों- उत्तराखंड की 5 सीटें दो की वृद्धि के बाद 7, हिमाचल प्रदेश की 4 सीटें एक बढ़कर 5 हो जाएंगी। जबकि पंजाब की 13 सीटें बढ़कर 20 और जम्मू कश्मीर की 5 सीटें 9 हो जाएंगी।
जबकि अगर इसी आधार पर देखें तो दक्षिण के पांच राज्यों में तमिलनाडु की मौजूदा 39 सीटें 14 बढ़कर 53 हो जाएंगी। कर्नाटक की 28 सीटें बढ़कर 45, आंध्र प्रदेश की 25 सीटें 37, केरल की 20 सीटें बढ़कर 24 और तेलंगाना की 17 सीटें बढ़कर 25 हो जाएंगी। यानी दक्षिणी राज्यों की वर्तमान 129 सीटें 55 सीटों की वृद्धि के साथ 184 हो जाएंगी और ये बढ़ोतरी महज 42.6 प्रतिशत की ही होगी।
ज्ञात हो कि 1976 में जब आखिरी बार 1971 की जनगणना को आधार मानकर परिसीमन हुआ था तब देश की कुल आबादी थी 54 करोड़ और हर 10 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सीट तय की गई थी। कोविड के चलते 2021 की जनगणना अभी तक हुई नहीं है और अगर 2011 की जनगणना को आधार बनाया जाए तो देश की आबादी करीब 121 करोड़ थी। इसके आधार पर 2026 में परिसीमन हुआ तो प्रति 10 लाख पर एक लोकसभा सीट के फॉर्मूले के तहत देश ने 1210 सीटें होंगी।
हालांकि नई लोकसभा में सांसदों की सिटिंग कैपेसिटी 888 ही है। लिहाजा अगर इसी को परिसीमन का आधार मानकर 1210 सीटों के साथ एडजेस्ट करते हैं तो उत्तर भारत के यूपी को 147 सीटें और दक्षिण के कर्नाटक को 45 सीटें मिलेंगी। बाकी राज्यों में भी इसी आधार पर सीटें बढ़ेंगी।
हालांकि संविधान कहता है कि सदन में 550 से अधिक निर्वाचित सदस्य नहीं होंगे। लिहाजा सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 81 में संशोधन भी करना होगा।
जाहिर है उत्तर भारत की गऊ पट्टी में बीजेपी को मोदी राज में सबसे अधिक ताकत मिलती दिखाई देती है और अगर भविष्य में जनसंख्या आधारित परिसीमन हुआ तो बीजेपी को इसका सबसे अधिक सियासी फायदा मिल सकता है। वहीं दक्षिण भारत पर फोकस कर रही मुख्य विपक्षी कांग्रेस सहित दक्षिण के अन्य सियासी दलों के लिए यह खतरे की घंटी हो सकती है।