दृष्टिकोण: पुरोला के मिथक ने बंद करवाए मालचंद के लिए कांग्रेस के दरवाजे! जानिए इस सीट पर क्यों हर पार्टी चाहती है हारना

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  • उत्तरकाशी की पुरोला सीट का मिथक, जिस पार्टी का प्रत्याशी जीता उसकी पार्टी बैठती रही विपक्ष में
  • कांग्रेस विधायक राजकुमार के भाजपा में जाने के बाद पूर्व भाजपा विधायक मालचंद ने दी थी हरीश रावत आवास में दस्तक

देहरादून (पंकज कुशवाल): उत्तराखंड की राजनीति में एक मिथक है कि यदि गंगोत्री विधानसभा सीट जीते तो राज्य में सरकार। यह मिथक बीस साल पुराना नहीं बल्कि तब से बना हुआ है जब यह राज्य उत्तर प्रदेश का हिस्सा था और गंगोत्री विधानसभा का विस्तार यमुनोत्री, पुरोला और धनोल्टी विधानसभा के कुछ हिस्सों तक था। राज्य बनने के बाद भी गंगोत्री सीट का यह मिथक पिछले चार विधानसभा चुनावों से बना हुआ है। जबकि, उत्तराखंड बनने के बाद उत्तरकाशी की ही पुरोला सीट का भी मिथक पिछले चार सालों से बना हुआ है कि जिस पार्टी का विधायक यहां से निर्वाचित हुआ उस पार्टी का विपक्ष में बैठना तय है और ऐसा ही कुछ रानीखेत विधानसभा के साथ भी है।


2002 में भाजपा की ओर से मालचंद ने पहला विधानसभा चुनाव कांग्रेस प्रत्याशी को हराकर जीता और राज्य बनाने वाली पार्टी भाजपा विपक्ष में बैठने को मजबूर हो गई। 2007 में पुरोला विधानसभा से कांग्रेस के राजेश जुवांठा मालचंद को हराकर विधानसभा पहुंचे तो अबकी बार विपक्ष में बैठने की बारी कांग्रेस की थी। 2012 में ‘खंडूरी है जरूरी’ के नारे के साथ फिर से भाजपा के उम्मीदवार मालचंद ने कांग्रेस के राजेश जुवांठा को हराकर पुरोला विधानसभा फतह की तो कांग्रेस सत्ता में आ गई और मालचंद समेत भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा। 2017 में चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में शामिल हुए राजकुमार ने भाजपा विधायक मालचंद को हराया तो राजकुमार समेत पूरी कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ा।

अब कांग्रेस के विधायक राजकुमार ने भाजपा में घर वापसी कर ली है तो दो बार के विधायक रहे मालचंद की दावेदारी भी खतरे में पड़ती दिखाई दे रही है। हालांकि, माना जा रहा था कि राजकुमार के भाजपा में घर वापसी के बाद मालचंद कांग्रेस के हो जाएंगे। लेकिन मालचंद सोमवार को बयान देकर यह साफ कर दिया है कि वह भाजपा के सिपाही है और रहेंगे और पार्टी उन्हीं को टिकट देगी। अब यह सवाल इसलिए उठा कि पुरोला से बीते रविवार को कांग्रेस विधायक राजकुमार भाजपा के हो गए हैं। उधर भाजपा से दो बार विधायक रहे मालचंद भी उसी दिन हरीश रावत से मिलने जा पहुंचे थे।

हालांकि, 2012 से लेकर 2017 तक जब मालचंद विधायक थे तो हरीश रावत के मुख्यमंत्री बनते ही उन दोनों की खूब पटती रही। मालचंद भाजपा के विधायक तो थे लेकिन शायद ही कोई काम हो जो उनका रूका हो। तब भी माना जा रहा था कि मालचंद 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के हो सकते हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत व भाजपा विधायक मालचंद का इतना घनिष्ठ साथ था कि हर रोज अखबारों व सोशल मीडिया पर इस खबर पर नजर रहती थी कि आज मालचंद कांग्रेस में गये कल गये। खैर, चुनाव सिर पर थे और भाजपा ने बिना नानुकूर के मालचंद को ही पुरोला विधानसभा का टिकट थमा दिया।

2012 में निर्दलीय ताल ठोकर कर हार चुके राजकुमार को उम्मीद थी कि 2017 में भाजपा उन्हें टिकट देगी क्योंकि वह 2007 से 2012 तक सहसपुर से भाजपा विधायक रह चुके थे। लेकिन, भाजपा ने मालचंद को ही फिर से टिकट देना बेहतर समझा तो नाराज राजकुमार भी कांग्रेस के पास पहुंच गये। 2017 का चुनाव इस तरह का था कि कांग्रेस से सिर्फ लोग जा रहे थे जैसे कि आज भी हो रहा है आने वाला कोई नहीं था तो राजकुमार को द्वारे पर खड़ा देख कांग्रेस ने भी उन्हें अपना प्रत्याशी बना दिया।
मोरी क्षेत्र से दुर्गेश लाल के साथ उमड़ी क्षेत्रवादी लहर ने मालचंद की जीत की राह रोक दी और कांग्रेस के राजकुमार से वह कुछ एक-डेढ़ हजार वोटों से हार गये।


अब जब बीते दिनों राजकुमार के भाजपा में जाने की खबर उड़ने लगी तो मालचंद भी हरीश रावत के घर दस्तक दे आए। उम्मीद जताई जा रही थी कि वह कांग्रेस में शामिल होकर कांग्रेस का चेहरा होंगे पुरोला में। लेकिन, मालचंद ने साफ किया कि वह भाजपा के सिपाही हैं और रहेंगे और 2022 के लिए भाजपा से दावेदारी करेंगे।


अब इससे एक बात तो साफ होती है कि या तो हरीश रावत ने मालचंद को टका सा जवाब दे दिया। या फिर अभी पुरोला को लेकर कांग्रेस वेट एंड वॉच की स्थिति में रहना चाहती है और शायद यही संदेश मालचंद को भी दिया गया क्योंकि बीजेपी कॉरिडोर्स में हल्ला है कि राजकुमार देहरादून की राजपुर रोड सुरक्षित सीट पर समझौता कर बीजेपी आए हैं, जहां खजानदास को कमजोर विकेट पर समझा जा रहा है।

माना जा रहा है कि मौजूदा विधायक राजकुमार से पुरोला विधानसभा के लोग खुश नहीं है और लगातार उनके खिलाफ पिछले चार सालों से कांग्रेसी कार्यकर्ता मुखर रहे। ऐसे में उनके चुनाव जीतने पर लगातार संशय बना हुआ था तो साढ़े चार सालों से क्षेत्र में सक्रिय मालचंद ने खूब पसीना बहाया तो माना जा रहा था कि मालचंद 2022 में पुरोला से अपनी तीसरी जीत हासिल कर सकते हैं। लेकिन, फिलहाल जो परिदृश्य सामने हैं उसके हिसाब से दोनों राष्ट्रीय पार्टियों का विजयी होने की संभावना वाले प्रत्याशी को खुद से दूर करने की रणनीति दिख रही है।

इसके पीछे के कारण वही मिथक माना जा रहा है जिसके अनुसार जो प्रत्याशी पुरोला विधानसभा जीता उसकी पार्टी का विपक्ष में बैठना तय है। राजनीति में नेता अंधविश्वास पर बहुत विश्वास करते हैं। और हरीश रावत का अंधविश्वास पर कितना विश्वास है यह उनके ‘राइट हैंड’ और उनके दौर के सुपर सीएम माने जाने वाले नेता भी बता चुके हैं।


कुल जमा राजकुमार का भाजपा का खुले दिल से स्वागत करना और कांग्रेस का मालचंद को न अपनाना इस बात की पुष्टि तो करता ही है कि दोनों ही दल पुरोला विधानसभा सीट के उस मिथक को नकारने का जोखिम नहीं ले सकते हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार निजी हैं)


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