SUPER EXCLUSIVE नकारापन श्रीदेव सुमन विवि का और ठीकरा कॉलेजों के सिर! एडमिशन-एग्जाम Scam के अकेले दोषी कॉलेज नहीं, विवि भी बराबर का जिम्मेदार, छात्रों का हित ही नहीं अपनी ख़ामी के चलते रिजल्ट जारी करना पड़ रहा

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देहरादून: हरिद्वार और देहरादून के 14 निजी व एडेड कॉलेजों द्वारा तय सीटों से 700 से ज्यादा छात्रों को एडमिशन देने के मामले में श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय ने छात्रों के हित में रिजल्ट जारी करने का फैसला किया है। दरअसल श्रीदेव सुमन विवि से एफिलेटेड 14 कॉलेजों पर नियम विरुद्ध तय सीटों से 700 से ज्यादा बच्चोें को एडमिशन दे दिया था, मामला सामने आने के बाद इन छात्रों की परीक्षा पर प्रश्नचिह्व खड़े हो गए थे। विश्वविद्यालय ने अपने स्तर पर जाँच का दम भरा तो शासन स्तर पर भी जांच का ढोल पीटा गया।

उच्च शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत के जांच के आदेश के बाद श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर डॉ पीपी ध्यानी जांच कर रहे हैं। कॉलेजों को नोटिस दिया गया है और उनका संतोषजनक जवाब न आने पर वीसी ने इनकी एफिलिएशन रद्द करने की बात कही है। हालांकिविवि ने छात्रों के हित का हवाला देते हुए कॉलेजों की ग़लती की सजा छात्रों को न देते हुए उनका रिजल्ट जारी करने का फैसला किया है।


असल में नियम विरुद्ध छात्रों के दाख़िला मामले में अकेले ये 14 कॉलेज दोषी नहीं हैं बल्कि विश्वविद्यालय की ख़ामी भी इसके पीछे बड़ी वजह है जिसे विवि छिपा गया और इसे कॉलेजों द्वारा एडमिशन घोटाला करार दे दिया गया। दरअसल परीक्षा फ़ॉर्म कॉलेज नहीं भरते बल्कि छात्र विवि की वेबसाइट पर जाकर भरता है। उदाहरण के लिए अगर कोई छात्र बीए में इकोनॉमिक्स सब्जेक्ट चुन लेता है और फ़ॉर्म भरते समय वह खुद ही इकोनॉमिक्स को छोड़कर इतिहास विषय कर देता है तो संबंधित छात्रों की संख्या पर तो फर्क नहीं पड़ता लेकिन उन विषयों के छात्र-छात्राओं की संख्या जरूर बदल जाती है। ऐसी स्थिति में कॉलेज के पास इसे रोकने का कोई तंत्र नहीं है।

जाहिर है अगर परीक्षा फ़ॉर्म भरे जाने वाले सॉफ्टवेयर में ही ऐसी व्यवस्था हो कि निर्धारित से अधिक संख्या में फॉर्म भरे ही न जा सकें। ज्ञात हो कि ऐसी व्यवस्था एचएनबी गढ़वाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर ने की हुई है। जाहिर है तकनीकी तौर पर ऐसा सिस्टम न विकसित कर पाया श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय अपनी ग़लती को ढकने के लिए कॉलेजों के सिर ठीकरा फोड़ रहा है।


एक विवाद इस बात को लेकर भी है कि किसी भी कॉलेज में सीटों की कुल उपलब्ध संख्या को गिना जाना चाहिए। जैसे बीए में तीन विषय हैं और तीनों विषयों को अलग-अलग गिन कर छात्रों का निर्धारण कैसे किया जाएगा? जबकि विश्वविद्यालय इस बात पर जोर दे रहा है कि छात्रों की संख्या का निर्धारण अलग-अलग विषयों में होगा न कि बीए, बीएससी या बीकॉम आदि उपाधियों के आधार पर होगा। इसी से संख्या को लेकर सारा कंफ्यूजन पैदा हो रहा है।

साथ ही यह सवाल भी है कि शासन और उच्च शिक्षा निदेशालय के निर्देश के बावजूद ईडब्ल्यूएस की सीटें ने देने का जिम्मेदार कौन है? संभव है कुछ कॉलेजों ने सीटें मिलने की उम्मीद में एडमिशन किए हों। कई सारे विषयों में 2 वर्ष पूर्व पैनल गठित होने के बावजूद अभी तक कॉलेजों को अनुमति न देने के मामले को लेकर भी विवि सवालों के घेरे में हैं।

नए विषयों एव उपाधियों की स्वीकृति के लिए पैनल निरीक्षण कराए जाने के बाद दो-तीन साल तक अनुमति न दिया जाना केवल प्राइवेट कॉलेजों तक सीमित नहीं है, बल्कि राजकीय कॉलेजों के मामले में भी विश्वविद्यालय का यही हाल।

इन सभी उपाधियों में भी विश्वविद्यालय से सीटें मिलने की प्रत्याशा में ही एडमिशन किए गए हैं। इनकी परीक्षा भी हो रही है और इनके परिणाम भी घोषित किए जा रहे हैं। इनमें से कई कॉलेज तो ऐसे हैं जहां चार-पांच सत्रों से यह सब चल रहा है। जाहिर है अगर कॉलेजों को तय सीटों से अधिक दाख़िले का ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है तो अपनी कई व्यवस्थागत ख़ामियों पर कुंभकर्णी नींद सोए विश्वविद्यालय प्रशासन की लापरवाही भी साफ-साफ परिलक्षित हो रही है। राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत को इस दिशा में भी जांच करानी चाहिए।


अब बात उच्च शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत की साढ़े 4 साल की ‘उपलब्धि’ की:


उच्च शिक्षा पर दावे अपनी जगह लेकिन जमीनी सच्चाई समझनी हो तो श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय का उदाहरण लिया जा सकता है। विश्वविद्यालय में कुलपति के अलावा कोई भी बड़ा अधिकारी पूर्णकालिक रूप से कार्यरत नहीं है। इस समय न रजिस्ट्रार पूर्णकालिक है और ना ही परीक्षा नियंत्रक। सारी व्यवस्थाएं तदर्थ तौर पर चल रही हैं। खुद कुलपति की व्यस्तता का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि उनके पास श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के अलावा उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति का भी दायित्व है। इन दोनों विद्यालयों के बीच की दूरी लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर है। ऐसी स्थिति में सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि कुलपति दोनों विश्वविद्यालयों को कितना समय दे पाते होंगे और किस स्तर पर संभालते होंगे! उम्मीद है उच्च शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत का ध्यान इस ओर जरूर जाएगा।

इन कॉलेजों पर नियमों के विरुद्ध सीटों से ज्यादा प्रवेश देने का आरोप:

  • हरि ओम सरस्वती डिग्री कॉलेज, हरिद्वार.
  • विद्याविकासनी डिग्री कॉलेज, रुड़की.
  • आशा देवी डिग्री कॉलेज, हरिद्वार.
  • राघवमल ओम प्रकाश गोयल डिग्री कॉलेज, रुड़की.
  • स्वामी विवेकानंद कॉलेज ऑफ एजुकेशन, रुड़की.
  • डीडी कॉलेज, देहरादून.
  • अपेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक.
  • रघुराज इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज.
  • फोनिक ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट, रुड़की.
  • भारतीय महाविद्यालय, रुड़की.
  • सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी, रुड़की.
  • चमनलाल महाविद्यालय, मंगलौर रोड हरिद्वार.
  • हरीश चंद्रा रामकली डिग्री कॉलेज, लक्सर.
  • एचईसी ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट जगजीतपुर, हरिद्वार.

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