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उत्तराखंड मुक्त विवि में नियमों से ‘मुक्त’ होकर तो नहीं हो रही लगातार नियुक्तियां! विवादित VC की पॉवर 2 नवंबर को सीज़ फिर 22 को बहाल क्यों? भाकपा (माले) के गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी ने पत्र लिखकर राज्यपाल से की ये मांग

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देहरादून: उत्तराखंड खासकर पर्वतीय क्षेत्रों तक दूरस्थ शिक्षा के प्रसार के मकसद से हल्द्वानी में स्थापित किया गया उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय पिछले कुछ सालों से नियुक्तियों में अनियमितता और भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर सुर्ख़ियाँ बंटोरता रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा की गई 56 नियुक्तियों में फर्जीवाड़े के आरोपों पर पूर्व गवर्नर बेबी रानी मौर्य द्वारा जांच तक बिठा दी गई थी। हालाँकि इसके कुछ दिन बाद गवर्नर पद से बेबी रानी मौर्य की छुट्टी हो गई तो ऐसा लगता है कि जांच झुनझुना बनकर किसी फाइल का हिस्सा हो गई? विश्वविद्यालय पर नियुक्तियों में फर्जीवाड़े, आरक्षण रोस्टर से छेड़छाड़ कर एससी, एसटी, ओबीसी और महिला आरक्षण जैसे गम्भीर आरोप अखबारों की सुर्ख़ियाँ बनते रहे हैं।

ताजा विवाद राजभवन सचिवालय द्वारा 2 नवंबर को वीसी प्रो ओपीएस नेगी के रिटायरमेंट के तीन माह शेष रहने पर नियुक्तियों और कार्य परिषद की बैठकें आयोजित करने जैसे तमाम अधिकार सीज करने के निर्देश जारी किए गए थे लेकिन 24 नवंबर के पत्र में फिर से उनके अधिकार बहाल कर दिए गए। इस पर विवाद गहराने लगा है और भाकपा (माले) के गढ़वाल सचिव और राज्य आंदोलनकारी इंद्रेश मैखुरी ने राज्यपाल को पत्र लिखकर बीते समय नियुक्तियों आदि को लेकर वीसी और विश्वविद्यालय प्रशासन पर लगे आरोपों की हाईकोर्ट रिटायर्ड जस्टिस की अगुआई में एसआईटी गठित कर जांच की मांग की है।

इंद्रेश मैखुरी, भाकपा (माले) के गढ़वाल सचिव और राज्य आंदोलनकारी

यहां पढ़िए उत्तराखंड के गवर्नर लेफ़्टिनेंट जनरल( रिटायर्ड) गुरमीत सिंह को लिखा पत्र हूबहू:

प्रति,
महामहिम राज्यपाल महोदय,
उत्तराखंड शासन, देहरादून.

महामहिम,
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी की स्थापना तो उत्तराखंड में दूरस्थ शिक्षा के प्रसार के लिए की गयी थी। लेकिन बीते कुछ अरसे से इस विश्वविद्यालय में यदि किसी चीज के प्रसार के लिए चर्चित रहा है तो वो है- भ्रष्टाचार और अनियमितता का।
अगस्त 2021 में समाचार पत्रों में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में 56 फर्जी नियुक्तियों की खबर आई। समाचार पत्रों ने यह भी लिखा कि उक्त फर्जी नियुक्तियां ऑडिट ने एक साल पहले पकड़ ली थी, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गयी। आप से पूर्व उत्तराखंड के राज्यपाल पद पर आसीन श्रीमति बेबी रानी मौर्य जी ने बयान दिया था कि उक्त नियुक्तियां उनकी संस्तुति के बगैर की गयी हैं और वे निरस्त की जाएंगी। उन्होंने उक्त नियुक्तियों की जांच के आदेश भी दिये थे। उनके पदमुक्त होने के बाद उक्त जांच का क्या हुआ, ज्ञात नहीं है !

महामहिम, इसके अलावा विश्वविद्यालय में क्षेत्रीय निदेशकों की नियुक्तियों के मामले में गड़बड़ियों के आरोप लगे, प्राध्यापकों की नियुक्तियों के मामले में गड़बड़ियों के आरोप लगे आरक्षण के रोस्टर में गड़बड़ियों के गंभीर आरोप भी समाचार पत्रों की सुर्खियां बने। प्रोफेसरों के नियुक्ति में महिला आरक्षण पूरी तरह गायब कर दिया गया और अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के आरक्षण में मनमाने तरीके से छेड़छाड़ करने का गंभीर आरोप लगा।
महामहिम, इस पृष्ठभूमि के उल्लेख करने का कारण बीते दिनों आपके सचिवालय द्वारा जारी दो पत्र हैं।

महामहिम, 02 नवंबर 2021 को आपके सचिवालय द्वारा पत्रांक संख्या 2288 / जी.एस. / शिक्षा / C 7 -12 (1) / 2017, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ओपीएस नेगी को भेजा गया। उक्त पत्र में स्पष्ट निर्देश था कि कुलपति महोदय का कार्यकाल तीन महीने शेष है, इसलिए वे कार्यपरिषद की बैठकें, नियुक्ति हेतु चयन समिति/साक्षात्कार न करें। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति महोदय के कार्यकाल में सामने आए विवादों को देखते हुए यह पत्र एकदम सही और उचित वक्त पर जारी किया गया था।
लेकिन पता नहीं घटनाक्रम में अचानक ऐसा क्या परिवर्तन हुआ महामहिम कि 24 नवंबर 2021 को उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय को कुछ पदों पर नियुक्ति और कार्यपरिषद की बैठक करने की अनुमति दे दी गयी ! महामहिम इस विशेष अनुमति को अपवाद स्वरूप दी गयी अनुमति कहा गया। लेकिन नियुक्तियों के मामले में कुलपति महोदय के विवादास्पद रिकॉर्ड को देखते हुए, कार्यकाल के अंतिम महीनों में उन्हें नियुक्ति की विशेष अनुमति देना, एक तरह से उनके जाल (trap) में फँसने जैसा था।

महामहिम, अब ज्ञात हुआ कि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति महोदय, अपने कार्यकाल के अंतिम महीनों में नियुक्ति के बाद दीक्षांत समारोह भी करने जा रहे हैं। महामहिम जिन पदों पर नियुक्ति के लिए कुलपति महोदय ने कार्यकाल के अंतिम महीनों में विशेष अनुमति मांगी, न तो वे ऐसी थी कि उनके तत्काल न होने से विश्वविद्यालय का सुचारु संचालन बाधित हो जाता और ना ही दीक्षांत समारोह इतना आवश्यक है कि उसके लिए कुछ महीनों बाद नियुक्त होने वाले नए कुलपति की प्रतीक्षा न की जा सके। दीक्षांत के नाम पर नियम-कायदों के अंत की अनुमति कतई नहीं दी जानी चाहिए।
महामहिम, अंत में उक्त तमाम तथ्यों के आलोक में निवेदन है कि कार्यकाल के अंतिम महीनों में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ओपीएस नेगी को दी गयी विशेष अनुमति को रद्द किया जाये, दीक्षांत समारोह और कार्यपरिषद की बैठक की अनुमति न दी जाये। साथ ही विशेष अनुमति लेकर की गयी नियुक्तियों समेत कुलपति प्रो.ओपीएस नेगी के कार्यकाल में की गयी समस्त नियुक्तियों की जांच, उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में / विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा करवाई जाये।
सधन्यवाद,
सहयोगाकांक्षी,
इन्द्रेश मैखुरी
गढ़वाल सचिव
भाकपा(माले)

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