ADDA Explainer: विपक्षी एकता तार-तार अब मोदी छोड़ विपक्ष में ही आर-पार ?

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  • तीसरे मोर्चे की तान छेड़ बैठे केसीआर
  • मोदी vs विपक्ष या विपक्ष vs विपक्ष?

ADDA Explainer: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में ‘400 दिन शेष – हर तबके तक पहुंच’ का संदेश देकर मिशन 2024 का बिगुल फूंक चुके हैं। उधर मोदी के दिल्ली की सत्ता पर तीसरी बार काबिज होने को निकले विजय रथ को रोकने के लिए राहुल गांधी पहले ही ठंड में टी शर्ट पहनकर पैदल रणक्षेत्र में उतर चुके हैं। लेकिन ये क्या.. मोदी विजय रथ पर ब्रेक लगाने को रणनीति बनती उससे पहले ही विपक्षी एकजुटता का चतुराश्व रथ यानी चार घोड़ों वाला सियासी रथ तेलंगाना के खम्मम में दो फाड़ हो गया है..!

जी हां दो हजार चौबीस में मोदी को सत्ता की चौखट से पहले ही घेर कर शिकस्त देने का विपक्षी मंसूबा, यही हाल रहा तो रिपीट 2019 होकर रह जाएगा ! जरा गौर से तेलंगाना के खम्मम से आई उस तस्वीर को जिसमें मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव यानी केसीआर के बाएं मुख्यमंत्री दाएं मुख्यमंत्री जरूर खड़े हैं, अखिलेश यादव के रूप में सबसे बड़े सियासी सूबे यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री भी नजर आ रहे लेकिन विपक्षी एकता मंच से गायब है।

अब आप कहेंगे जब केसीआर के मंच पर अखिलेश से लेकर अरविंद केजरीवाल, भगवंत मान, पिनराई विजयन और डी राजा सरीखे नेता मौजूद हैं तब विपक्षी बिखराव की बात भला बेमानी बहस नहीं है? मेरा साफ कहना है कि बिलकुल बेमानी नहीं है!
जरा बताइए खम्मम की इस तस्वीर से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहां नदारद हैं !

आखिर कुछ समय पहले बीजेपी से रिश्ता तोड़कर लालू प्रसाद के गले लगे सुशासन बाबू खुद सोनिया गांधी से लेकर शरद पवार, अरविंद केजरीवाल से मुलाकात कर 2024 की एकजुटता के ध्वजवाहक बनते दिख रहे थे। बिहार की राजधानी पटना की उस तस्वीर को भी मत भूलिए जब केसीआर के साथ नीतीश कुमार एक मंच से मोदी के खिलाफ मोर्चा लेने की कसमें खा रहे थे! लेकिन केसीआर ने खम्मम बुलाया तो नीतीश नदारद रहे।

फिर बंगाल को शेरनी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो नीतीश से पहले ही केजरीवाल से लेकर पवार और तमाम विपक्षी आवाजों को ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ का पाठ पढ़ाने निकल चुकी थी। लेकिन अब उन्होंने भी केसीआर के मंच से दूरी बनाकर विपक्षी एकता के इरादे जरूर जाहिर कर दिए हैं।

हां अखिलेश यादव ने जरूर राहुल गांधी के बुलावे पर भारत जोड़ो यात्रा में पश्चिमी यूपी आने की बजाय साउथ में खम्मम पहुंचकर मोदी सरकार की 399 दिन में विदाई का राग अलापा है।

जब ममता ही नहीं पहुंची तब मायावती तो पहले ही एलान कर चुकी कि चौबीस में हाथी अकेला ही चलेगा। अब केजरीवाल और भगवंत मान पहुंच गए थे तो अकाली दल से सुखबीर बादल कैसे आ जाते!

बहरहाल, खम्मम में सजे केसीआर के मंच ने एक मैसेज तो दीवार पर लिखी इबारत की तर्ज पर साफ कर दिया है कि विपक्षी कैंप में चौबीस के सियासी महाभारत से पहले ही दो फाड़ छोड़िए कई फाड़ हो चुके हैं।

केसीआर का खम्मम शक्तिप्रदर्शन बताता है कि 2024 के महामुकाबले को लेकर अब लड़ाई मोदी बनाम विपक्ष की आपने सामने की जंग नहीं होगी बल्कि यह तितरफा तो होगी ही होगी कुछ और कोण निकल आएं इसकी संभावनाओं को नकारा भी नहीं जा सकता है।
2024 को लेकर एक छोर पर सत्ताधारी बीजेपी मोदी मैजिक की ढाल लिए खड़ी है तो दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी कांग्रेस को अपनी भारत जोड़ो यात्रा के बूते राहुल गांधी तैयार कर रहे हैं। जबकि केसीआर तीसरे मोर्चे की तान छेड़ते नजर आ ही रहे हैं। नीतीश कुमार अभी खामोश हैं और अगर जेडीयू और आरजेडी देर सवेर कांग्रेस के करीब नजर आते भी हैं तो ममता बनर्जी और मायावती किस ओर दिखेंगी! मायावती “एकला चलो” का नारा देकर आगे बढ़ रही लेकिन प्रधानमंत्री बनने की महत्वकांक्षा लिए ममता बनर्जी किस तरफ रुख करेंगी यह देखना दिलचस्प होगा।

केसीआर तेलंगाना बचाने को बेचैन या मोदी से महामुकाबले को लेंगे मोर्चा?

जिस तरह से के चंद्रशेखर राव नॉन बीजेपी नॉन कांग्रेस की बिसात बिछा रहे हैं उससे सवाल उठते हैं कि उनका सियासी मकसद दिल्ली है या फिर तेलंगाना का किला बचाए रखने को शक्ति बंटोरना!

दरअसल, केसीआर के लिए 2024 की लड़ाई से पहले 2023 में असल अग्निपरीक्षा होनी है। तेलंगाना विधानसभा चुनाव में केसीआर की कल तक टीआरएस जो अब बीआरएस बन चुकी है, को कांग्रेस से ही दो दो हाथ करना है और बीजेपी मुकाबले को त्रिकोणीय बनने को जान झोंके पड़ी है। यही केसीआर की सियासी मजबूरी है कि उसे बीजेपी और कांग्रेस यानी मोदी और राहुल दोनों से समान दूरी बनाकर लड़ाई लड़नी है।


यही वजह है को केसीआर के मंच पर ऐसे दल दिखे जिनको भी बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस से मुकाबला करना है। अखिलेश यादव की सपा को यूपी के रण में बीजेपी से जूझना है तो कांग्रेस, बसपा से भी लड़ना होगा। यही हाल अरविंद केजरीवाल का है जिनको दिल्ली कांग्रेस, बीजेपी के साथ साथ पंजाब में अकालियों से भी भिड़ना है। वामपंथी पार्टियां को पश्चिम बंगाल में TMC और केरल में कांग्रेस से टकराना है।

क्या समझा जाए कि केसीआर के तीसरे मोर्चे में वही दल जुट रहे जिनको अपने अपने पॉलिटिकल अखाड़े में कांग्रेस और बीजेपी, दोनों से द्वंद्व करना है। तो क्या खम्मम में जुटे दल सीटों के तालमेल या चुनाव पूर्व गठजोड़ की बजाय अपने अपने अखाड़े (राज्यों में) में विरोधियों से अकेले लड़ेंगे और नतीजों में जिसे जितनी ताकत मिलेगी उस लिहाज से एक साथ आकर दिल्ली के तख्त पर ताजपोशी के लिए जोर आजमाइश करेंगे?

जाहिर है इससे इन क्षत्रपों में चुनाव पूर्व “प्रधानमंत्री कौन ?” वाली जंग तो नहीं ही छिड़ेगी लेकिन विपक्षी वोटों के बंटवारे का जोखिम मोदी के लिए कितना मददगार होगा इसका अंदाजा राजनीतिक पंडित जरूर लगा रहे होंगे!

हालांकि चलते चलते 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 2018 में कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में एचडी कुमारस्वामी के शपथग्रहण में खम्मम की तर्ज पर विपक्षी एकजुटता की एक तस्वीर और आई थी जिसमें सोनिया, राहुल ही नहीं ममता, पवार, चंद्रबाबू नायडू से लेकर अखिलेश, केजरीवाल और बहुत से क्षत्रप नजर आए थे। लेकिन 2019 की जंग छिड़ी तो विपक्षी धड़े से कोई यहां बिखरा कोई वहां बिखरा वाला हाल नजर आया था।

इसलिए केसीआर का खम्मम शक्तिप्रदर्शन तेलंगाना का अपना किला बचाने की लड़ाई अधिक और दिल्ली तख्त को लेकर विपक्षी दावेदारी को नई हिम्मत देने का सियासी मूव कम जान पड़ता है!

जाहिर है राहुल गांधी इस हकीकत से पहले से वाबस्ता हैं इसलिए भारत जोड़ो यात्रा के बहाने कांग्रेस को रूट्स से जोड़ने के अभियान पर निकले हुए हैं। जानते प्रधानमंत्री मोदी भी बखूबी हैं कि विपक्षी वार से अधिक जनता के प्रहार से बचने की दरकार है।

शायद इसीलिए 400 दिन की याद दिलाकर 400 सीटों पर दम दिखाने का बिगुल फूंक मोदी ने बीजेपी कैडर को “पठान” के “बेशरम रंग” के भूलभुलैया से निकलकर हर तबके तक (अक्लियत यानी मुसलमान भी शामिल) पहुंचने का मैसेज दिया है। दिल थाम कर बैठिए “चौबीस की चुनौती” तक भारतीय राजनीति अभी कई करवट लेगी, कई रंग बदलेगी! इंतजार करिए!


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