देहरादून (पवन लालचंद): 14 फरवरी को उत्तराखंड में बमुश्किल वोटिंग खत्म ही हुई थी कि सत्तारूढ़ भाजपा में अंदर ही अंदर चल रहा कुरुक्षेत्र चौराहे पर आ गया। हरिद्वार जिले की लक्सर सीट से दो बार के विधायक संजय गुप्ता एक वायरल वीडियो में आरोप लगाते दिखे कि प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने ही उनको हराने के लिए पार्टी से ग़द्दारी कर डाली। इसके बाद संगठन से समर्थन न मिलने और भीतरघात के आरोप चंपावत से भाजपा विधायक कैलाश गहतोड़ी और काशीपुर से विधायक हरभजन सिंह चीमा ने भी लगा दिए।
गहतोड़ी खुद प्रत्याशी हैं तो विधायक चीमा के बेटे त्रिलोक सिंह चीमा ने चुनाव लड़ा है। लेकिन चीमा और गहतोड़ी का दर्द बिना किसी का नाम लिए छलका लिहाजा उससे पार्टी के सामने असहज होने जैसी स्थिति नहीं बनी। लेकिन जिस आक्रामक अंदाज में विधायक संजय गुप्ता ने मोर्चा खोला है, वह न केवल भाजपा को असहज कर गया बल्कि पार्टी विद ए डिफरेंस का दम भर अनुशासन का सख्त हंटर दिखाती मोदी-शाह दौर की नई भाजपा का मुँह भी चिढ़ा रहा है।
विधायक संजय गुप्ता ने न केवल मदन कौशिक को पार्टी का ग़द्दार कहा है बल्कि एक सामान्य दूध के कारोबारी से सैंकड़ों करोड़ के साम्राज्य का स्वामी करार देते हुए भ्रष्टाचार के संगीन आरोप भी लगाए हैं। सवाल है कि क्या पांच साल में जीरो टॉलरेंस का दम भरती डबल इंजन भाजपा सरकार में भ्रष्टाचार इस कदर हावी रहा कि अब जब चुनाव खत्म हो गए तो हार के डर से पार्टी विधायक ही अपने प्रदेश अध्यक्ष को एक्सपोज कर रहा?
बड़ा सवाल यह भी कि क्या ‘खंडूरी है जरूरी’ का नारा बुलंद करती रही भाजपा सरकार में 2007 से 2012 तक मंत्री रहे मदन कौशिक ने भ्रष्टाचार कर धन संग्रह किया? अगर भाजपा विधायक संजय गुप्ता के आरोपों को सत्य मानें तो खंडूरी-निशंक-त्रिवेंद्र-तीरथ राज में मंत्री रहते मदन कौशिक भ्रष्टाचार करते रहे और तत्कालीन मुख्यमंत्री मुँह फेरे रहे?
या फिर भाजपा विधायक संजय गुप्ता ने पार्टी के भीतर चल रहे ज़बरदस्त कलह कुरुक्षेत्र का अपनी चुनावी हार के डर से भंडाफोड़ कर दिया? भाजपा की राजनीति को अंदर से समझने वाले भली-भांति जानते हैं कि मोदी-शाह की सख्ती के बावजूद प्रदेश भाजपाई सत्ता संघर्ष में एक-दूसरे को निपटाने के लिए किस तरह का शह-मात खेल खेल रहे थे। लेकिन यह भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व की अनदेखी का नतीजा है या फिर ‘सूबे में पार्टी क्षत्रप कुछ भी करते रहें चुनाव तो मोदी मैजिक से जीत लेने का अति-आत्मविश्वास ‘ कि यहां नेताओं को चुनाव में भी आपसी दंगल लड़ने से रोका नहीं गया।
इसलिए यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या विधायक संजय गुप्ता अपनी हार के डर से बौखला कर प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक को कटघरे में खड़ा कर रहे? एक जमाने में विधायकों की तिकड़ी बनकर पुष्कर सिंह धामी, स्वामी यतिश्वरानंद और संजय गुप्ता सचिवालय से लेकर विधानसभा और बाकी जगह साथ घूमते नजर आते थे। राजनीतिक पहिया घूमा तो धामी को सरकार का नेतृत्व करने का मौका मिला और स्वामी उनके सबसे करीबी और ताकतवर मंत्री बन गए। जबकि विधायकों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर में टिकट कटने की बात चली तो लक्सर विधायक का नाम भी इस लिस्ट में शुमार था लेकिन अब इसे सीएम धामी से दोस्ती का असर कहेंगे या दूसरी वजह संजय गुप्ता टिकट पा गए।
अब बसपा के मो० शहजाद से चुनावी मुकाबले में पिछड़ने के डर ने गुप्ता कौशिक पर हमलावर हो गए हैं। यह भी सच है कि शहजाद की कौशिक से नजदीकी रही है और माना जा रहा है कि अगर भाजपा को किसी एकाध बाहरी विधायक की दरकार हुई तो इस दोस्ती का फायदा भी मिल सकता है। शहजाद के घर सीएम रहते टीएसआर पहुंचे थे तो संजय गुप्ता ने ‘झोटा बिरयानी’ बयान देकर बवाल काट दिया था।
क्रोनोलॉजी समझिए कि अगर भी सिर्फ संजय गुप्ता ही बोल रहे हैं तो स्वामी कब मुँह खोलेंगे और खुद सीएम धामी भी कुछ बोलेंगे कि नहीं? क्योंकि अगर संजय गुप्ता को लक्सर में अपनी हार के पीछे वजह मदन कौशिक नजर आ रहे तो यह राग नतीजों के बाद और भी कई पकड़ते दिखेंगे। हरिद्वार ग्रामीण में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी को भी तो कौशिक का करीबी बताया जा रहा है, तो खुद मुख्यमंत्री धामी की टीम को भी खटीमा में भीतरघात का डर सता रहा। आखिर चुनाव के दौरान सियासी गलियारे में खटीमा को लेकर यह चर्चा टीम धामी में ही खूब होती रही कि एक कद्दावर कैबिनेट मंत्री, संगठन के कई नेता और पूर्व सीएम से लेकर दिल्ली में दखल रखने वाले नेता धामी की हार सुनिश्चित करने में लगे थे।
फिर इस तथ्य को भी तो समझिए कि पूरे चुनाव के दौरान सबसे ज्यादा शराब हरिद्वार शहर सीट पर ही क्यों पकड़ी गई? क्या प्रदेश की 69 सीटों पर शराब नहीं बांटी गई होगी? या फिर हरिद्वार पुलिस प्रशासन से लेकर पॉवर कॉरिडोर में लगातार होती रही इस चर्चा में वाकई दम है कि ऊपर से साफ निर्देश थे कि एक प्रत्याशी विशेष की शराब बंटने न पाए!
दरअसल कौशिक को पूर्व सीएम टीएसआर का करीबी माना जाता है और संजय गुप्ता सीएम धामी के खासमखास हैं। ऐसे में क्या टीएसआर वर्सेस धामी कॉल्ड वॉर का विस्तार संजय गुप्ता का मदन कौशिक पर हमला माना जा सकता है!
ऐसा लगता है कि इस बार भाजपा ने कांग्रेसी अंदाज में चुनाव लड़ा जिसमें घर के भीतर ही ‘अपनों’ को निपटाने का हर संभव दांव आज़माया गया और यह खेल हरिद्वार शहर से लेकर हरिद्वार ग्रामीण, लक्सर से होते हुए काशीपुर, खटीमा तक खेला गया। गहतोड़ी का दर्द इशारा करता है कि पहाड़ पर भी ‘अपनों’ को निपटाने का खेल चला है।
घर के भीतर से ही ‘अपनों’ को निपटाने के इसी संभावित खतरे को भांपकर खटीमा में घिरे पुष्कर सिंह धामी न सरकार के मुखिया के नाते प्रदेशभर में भाग-दौड़ करते नजर आए और न ही प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक संगठन के मोर्चे से लड़ाई लीड करते दिखे। यही वजह है कि भाजपा का सारा चुनावी जीत का दारोमदार मोदी मैजिक पर रहा है और अगर नतीजों में 10 मार्च को ये जादू फीका पड़ता दिखा तो संजय गुप्ता का ‘एकल सुर’ कोरस में तब्दील होना तय है।