देहरादून: उत्तराखंड की सियासत में वैसे भी मार्च का महीना गुज़रे सालों में ख़ासा अहमियत रखता है। यह वह महीना है जब 2016 में हरीश रावत की सरकार कांग्रेस में हुई बगावत के बाद चली गई थी और राष्ट्रपति शासन लग गया था। यह मार्च का ही महीना था 2020 में कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही पांच दिवसीय दौरे में फीडबैक लेकर गए जेपी नड्डा मोदी-शाह तक जमीनी हालात की रिपोर्ट पहुँचा चुके थे और एक्शन की पटकथा की चर्चा प्रदेश की सियासी फ़िज़ाओं में तैर गई थी।
इसी मार्च महीने में देश में कोविड महामारी ने ख़तरनाक दस्तक दी और लॉकडाउन के दौर ने टीएसआर राज को कुछ और आयु बख़्श दी थी। और यह इस साल मार्च महीने की नौ तारीख थी कि विधानसभा के बजट सत्र के बीच ही त्रिवेंद्र सिंह रावत को राजभवन पहुंचकर इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन आज भी न त्रिवेंद्र सिंह रावत और न ही उनके समर्थकों को यकीन हो पाया है कि आखिर वह कौनसी वजह थी जो चार साल के जश्न की तैयारियों के बीच वज्रपात बनकर टूट पड़ी। लेकिन अब जब मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे को छह महीने होने को आए तो त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मोदी-शाह-नड्डा के फैसले पर सवाल उठाए हैं। दिप्रिंट को दिए इंटरव्यू में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बीजेपी आलाकमान के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा,” उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से मुझे हटाने की फैसला सही नहीं था। यह फैसला असामयिक भी था।”
इस इंटरव्यू में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि उनकी सरकार प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा नेतृत्व की उम्मीदों पर खरी उतरी। रावत ने कहा कि उन्हें हटाए जाने का फैसला असामयिक था लेकिन पार्टी नेतृत्व का निर्णय था जो उन्होंने स्वीकार कर लिया। त्रिवेंद्र रावत ने PM मोदी के उनकी सरकार की परफ़ॉर्मेंस पर खुश न होने के सवाल पर कहा कि पीएम ने हाड़ कँपा देने वाले हालातों में 12 महीने चलते रहे केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्यों को लेकर सरकार की सराहना की।
त्रिवेंद्र रावत ने देवस्थानम बोर्ड की एक बार फिर वकालत करते हुए कहा,’ बोर्ड को खत्म करने का कोई मतलब नहीं क्योंकि यह 120 करोड़ हिन्दुओं की ज़रूरतों और माँगों के अनुरूप बनाया गया था न कि अकेले उत्तराखंड की। मुख्यमंत्री (धामी) खुद भी उस विधानसभा का हिस्सा थे जिसने बोर्ड बनाया।’