दृष्टिकोण ( पंकज कुशवाल): पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री बनने के लिए सारे घोड़े दौड़ा रखे हैं, हो सकता है कि युवा होने के नाते उन्हें मौका मिले लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी का एक नियम है कि वह चुनाव में जीत का श्रेय किसी को खाने नहीं देते। योगी इसमें अपवाद है, पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाने का मतलब होगा कि उत्तराखंड में हुई अप्रत्याशित जीत का सेहरा पुष्कर सिंह धामी के सिर बांधना! अब तक चुनाव अभियान, जीत का श्रेय, मुख्यमंत्री बनाने, मंत्रिमंडल चुनने से लेकर राज्य के तमाम फैसले नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने खुद तक केंद्रित कर लिए हैं। इसलिए पुष्कर सिंह धामी को मौका मिलेगा इसकी संभावनाएं न्यून हैं।
इसका परीक्षण पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में हो चुका है। हिमाचल में पिछले चुनाव में प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया गया था लेकिन ठीक धामी की तरह वे खुद चुनाव हार गए और भाजपा जीत गई। इसके बाद मोदी-शाह ने पूर्व मुख्यमंत्री धूमल के नाम को नकारकर जयराम ठाकुर की ताजपोशी कर दी। हालाँकि तब भी लंबे समय तक चर्चा चलती रही कि धूमल को ही मुख्यमंत्री बनाया जाएगा और उनके लिए कई विधायक अपनी सीट कुर्बान करने को यूं ही तैयार होते दिख रहे थे जैसे पुष्कर सिंह धामी के लिए अपनी जनता द्वारा दिए गए समर्थन की कुर्बानी देने को उत्तराखंड के विधायक तैयार हैं।
दूसरा, पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री न बनाया गया तो किसी सांसद का नंबर भी नहीं आएगा। वैसे तो मोदी-शाह अपने फैसलों से सबको चौंकाते आए हैं और ऐसे में उम्मीद है कि रविवार को संभावित विधायक दल की जब बैठक में मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा होगी तो वह भी सब की उम्मीदों से परे होगा, इसके पूरे आसार हैं।
वैसे अगर विधायकों की बात करें तो पिछले पांच सालों में सतपाल महाराज मुख्यमंत्री बनने के लिए सबसे ज्यादा तैयार दिखते रहे हैं या कहिए कि आतुर दिखे हैं। लेकिन महाराज प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के उस पैमाने पर खरे नहीं उतरते जो पैमाना दोनों नेताओं ने राज्य के मुख्यमंत्रियों को नियुक्त करने के लिए तैयार कर रखा है उस पैमाने पर बात फिर बात।
कहा जा रहा है कि डॉ. धन सिंह रावत भी मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में हैं। संघ और संगठन के बेहद करीब धन सिंह रदो बार मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में सबसे आगे माने जाते रहे हैं और उन्हें राज्य मंत्री से कैबिनेट के प्रमोशन में ही मन-मसोसकर रहना पड़ा है। इस बार उन्हें मुख्यमंत्री बनाए जाने की उम्मीद इतनी कम है कि वह भी ज्यादा भाग-दौड़ करते नहीं दिख रहे हैं। इसके पीछे के कारण बताए जा रहे हैं कि उनके अपने क्षेत्र में कम लोकप्रियता और पुष्कर सिंह धामी के हारने की जमीन तैयार करने में उनकी भूमिका की भी यदा-कदा चर्चा सियासी गलियारे में होती रही है। इसके साथ ही विधानसभा चुनाव में अपने प्रतिद्वंदी से बेहद कम अंतर से जीतने को भी उनकी राह की रूकावट बताया जा रहा है। लेकिन यदि हाईकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की ठान ली होगी तो यह बातें उनकी राह की रूकावट बनने से रही।
इन नामों के अलावा हर जीता हुआ विधायक मुख्यमंत्री मानिए! किसी की भी किस्मत का ताला खुल सकता है! बस दो-चार नाम हैं जिनके मुख्यमंत्री बनने की संभावनाएं न्यून हैं, उनमें से एक हैं मुन्ना सिंह चौहान। उत्तराखंड विधानसभा के मौजूदा विधायकों में सबसे योग्य माने जाने वाले मुन्ना सिंह चौहान को लेकर संघ और संगठन की राय एक सी नहीं मानी जाती है। यही कारण रहा कि पिछली विधानसभा में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की इच्छा के बावजूद मुन्ना सिंह चौहान को कैबिनेट में शामिल करने पर संघ तैयार नहीं हुआ। लिहाजा त्रिवेंद्र ने भी कैबिनेट विस्तार आखिर तक टाले रखा।
बाकी जो भी होगा इसके लिए कल तक का इंतजार किया ही जा सकता है, हो सकता है कि सोमवार को ही खुलासा हो!
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और विचार निजी हैं।)